नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का उद्देश्य ‘गुणवत्तापूर्ण शिक्षा’ प्रदान करना

punjabkesari.in Saturday, Aug 15, 2020 - 03:14 AM (IST)

गत दिवस घोषित ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020’ (एन.ई.पी.-2020) का उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण, सस्ती व समावेशी शिक्षा प्रदान करते हुए स्कूल-शिक्षा में उत्कृष्टता प्राप्त करना है तथा इस बीच समाज के सामाजिक व शैक्षणिक पक्ष से वंचित रहे समूहों के बच्चों पर विशेष बल दिया गया है। यह ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के निर्माण की ओर एक भविष्योन्मुखी उद्यम है। 

विगत शिक्षा नीतियों का अधिकतर ध्यान स्कूल शिक्षा देने में पहुंच व समानता के मुद्दों पर केन्द्रित किया जाता रहा था, जबकि ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020’ ‘एक जीवंत भारत’ की नींव रखने का संकल्प लेती है, जहां कोई भी स्कूल शिक्षा से वंचित न रहे, जिस से प्रत्येक विद्यार्थी को सच्चे अर्थों में राष्ट्र के लिए उपयोगी बनाने में सहायता मिल सके। ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-1986’, जिसमें 1992 में संशोधन  किया गया था, के अपूर्ण एजैंडे को ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020’ में प्रभावशाली ढंग से संपन्न किया गया है तथा इसके द्वारा ‘नि:शुल्क व अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009’ के पीछे की अंतर्दृष्टि के द्वारा ‘व्यापक प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने हेतु कानूनी मदद मिली।’ 

राष्ट्र निर्माण में शिक्षा की अविवादित भूमिका के कारण ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020’ विद्यालय की आधारभूत संरचना व अध्यापकों की गुणवत्ता व मान्यता पर पूरी तरह सही ढंग से बल देती है क्योंकि जवाबदेह, पारदर्शी व उसका किफायती होना समय की आवश्यकता है तथा इसी लिए ‘स्कूलों व अध्यापकों को विश्वास के साथ अधिकार देने, उन्हें उत्कृष्ट बनाने हेतु प्रयास करने व अपना बहुत बढिय़ा कार्य-निष्पादन प्रस्तुत करने योग्य बनाने के साथ-साथ इसे पूरी तरह पारदॢशता से क्रियान्वित करके प्रणाली की अखंडता को सुनिश्चित करने व सभी वित्तीय स्थितियों, कार्य-विधियों व परिणामों को जनता के समक्ष पूरी तरह उजागर करना आवश्यक है।’ 

स्कूल शिक्षा के क्षेत्र में क्योंकि निजी क्षेत्र की महत्वपूर्ण मौजूदगी है, अत: ‘लाभ के लिए नहीं’ (‘Ònot-for-profitÓ’) इकाइयों को उत्साहित करने का विचार इस ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020’ की एक विलक्षण विशेषता है, जो इसके साथ ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हेतु निजी कल्याणकारी प्रयत्नों को भी उत्साहित करती है, ऐसे जनता हेतु शिक्षा की बढिय़ा प्रकृति दृढ़ होती है तथा अभिभावकों व सामाजिक समुदाय को ट्यूशन फीसों में आदेशपूर्ण बढ़ौतरी से भी बचाती है। 

एक इतना ही महत्वपूर्ण क्षेत्र, जिस की ओर ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020’ में विशेष तौर पर ध्यान दिया गया है, यह है कि स्कूल परिसरों व समूहों के द्वारा कार्यकुशल ढंग से स्रोत इकट्ठे करने व प्रभावी शासन की आवश्यकता है जो कि एक महत्वपूर्ण पहल है क्योंकि इस तथ्य से सभी भली-भांति वाकिफ हैं कि भारत के 28 प्रतिशत सरकारी प्राइमरी स्कूलों व 14.8 प्रतिशत अपर प्राइमरी स्कूलों में 30 से कम विद्यार्थी हैं। 

वर्ष 2016-17 में प्राइमरी स्कूलिंग प्रणाली में प्रति ग्रेड विद्याॢथयों की औसत संख्या-ग्रेड 1 से 8 तक- लगभग 14 थी तथा छ: से कम विद्यार्थियों का वर्णनीय अनुपात था, उसी वर्ष 1,08,017 स्कूल केवल एक ही अध्यापक के सहारे चल रहे थे तथा उनमें से अधिकतर-85,743- प्राइमरी स्कूल थे, जो ग्रेड्स 1-5 तक के बच्चों को ही पढ़ा रहे थे। इस प्रकार समूह अर्थात स्कूल परिसरों में ताना-बाना स्थपित करने हेतु एक प्रबन्ध विकसित करने की अत्यधिक आवश्यकता है, जहां एक सैकेंडरी स्कूल व अन्य सभी स्कूल होते हैं, इस प्रकार समूह (क्लस्टर) में अधिक स्रोत कार्यकुशलता व कार्य, तालमेल, नेतृत्व, शासन व स्कूलों का प्रबन्ध अधिक प्रभावशाली होता है। इससे न केवल स्रोतों की अधिक से अधिक उपयोगिता सुनिश्चित होगी, अपितु राष्ट्र के भविष्य स्कूल के बच्चों में एकता व एकजुटता की भावना भी विकसित होगी। 

नई ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020’ सभी के लिए एक समान व समावेशी शिक्षा के संकल्प के कारण भी विलक्षण व विशेष है तथा सभी संस्थापत पितामहों का महान सपना भी था। ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020’ शिक्षा को पूरी तरह सही ढंग से ‘सामाजिक न्याय व गुणवत्ता’ हासिल करने के एकल महानतम औजार के तौर पर देखती है। समावेशी व न्यायपूर्ण शिक्षा सचमुच अपने-आप में ही एक आवश्यक लक्ष्य है तथा एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था प्राप्त करने हेतु भी महत्वपूर्ण है, जहां प्रत्येक नागरिक के लिए ‘सपना लेने, प्रफुल्लित होने व राष्ट्र में योगदान डालने का एक सुअवसर’ होता है। 

सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण, किफायती व नैतिक शिक्षा के पथ में आने वाले विविध सामाजिक व आर्थिक अवरोध दूर करने की ओर प्रथम कदम है तथा यहीअवरोध ही विभिन्न संकीर्ण विचारधाराओं वाले हमारे अपनेलोगों में पृथक्करण, पक्षपात व शोषण के बीज बोते रहे हैं। 

अध्यापक-शिक्षा में भी एक  बड़ा परिवर्तन होगा। वर्ष 2030 तक, अध्यापन हेतु न्यूनतम डिग्री योग्यता 4-वर्षीय संगठित बी.एड. होगी, जिसके अंतर्गत ज्ञान से संबंधित बहुत से विषय पढ़ाए जाते हैं। आज बी.एड. अध्यापन को हमारे देश में तब से ही अत्यंत खराब ढंग से नियंत्रित किया जाता है, जब निजी क्षेत्र में बी.एड. कॉलेज खोलने की अनुमति दी गई थी। अब बी.एड. अध्यापन को अत्यंत गंभीरतापूर्वक लेने का समय है। ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020’ यह गारंटी देती है कि वर्ष 2021 तक एन.सी.टी.ई. द्वारा एक नए व व्यापक ‘नैशनल कुरीकुलम फ्रेमवर्क फॉर टीचर एजुकेशन’ (एन.सी.एफ.टी.ई.-2021) का सूत्रीकरण किया जाएगा।( लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं। इस लेख में प्रकट किए गए विचार निजी हैं)-राजीव रंजन रॉय  


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