घृणा का जहर समाप्त करने की आवश्यकता

punjabkesari.in Wednesday, Jul 06, 2022 - 04:10 AM (IST)

हमारे नेताओं द्वारा सार्वजनिक रूप से अपशब्दों का प्रयोग करना इस बात को रेखांकित करता है कि राजनीतिक बहस का सार केवल भावनाएं भड़काना, अपने मतदाताओं को खुश करने के लिए धार्मिक आधार पर सांप्रदायिक मतभेद को बढ़ाना और घृणा फैलाना है। निलंबित भाजपा नेता नूपुर शर्मा द्वारा पैगम्बर मोहम्मद के विरुद्ध विवादास्पद टिप्पणी का विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा, जिसके चलते हमारी राजनीति तेजी से खूनी धार्मिक असहिष्णुता के रसातल में डूबती जा रही है। 

इस क्रम में सबसे पहले कांग्रेस के राहुल गांधी का नाम आता है, जिन्होंने कहा कि नूपुर शर्मा का समर्थन करने के लिए 2 युवकों द्वारा दिन-दिहाड़े उदयपुर के एक दर्जी का सर काटना बच्चों का बेवकूफीपूर्ण कार्य था और बाद में वह इससे मुकर गए और कहा कि वह अपने वायनाड के कार्यालय में तोडफ़ोड़ का उल्लेख कर रहे थे। इसके बाद समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव ने कहा कि न केवल नूपुर शर्मा के चेहरे अपितु शरीर को भी माफी मांगनी चाहिए और उन्हें देश में सौहार्द बिगाडऩे के लिए दंडित किया जाना चाहिए। इसके चलते राष्ट्रीय महिला आयोग ने घृणा और दुर्भावना फैलाने के लिए अखिलेश यादव को नोटिस जारी किया। 

यह यहीं समाप्त नहीं होता, एक डॉक्यूमैंटरी फिल्म के एक पोस्टर की भी सोशल मीडिया में आलोचना की जा रही है, जिसमें देवी काली को सिगरेट पीते दिखाया गया है और इससे धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं। अनेक लोग फिल्म निर्माता की गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं, जबकि अन्य का कहना है कि हिन्दू भावनाओं को आहत करना उच्चतम न्यायालय द्वारा दिया गया अधिकार नहीं है। वर्ष 2021 में वैब सीरीज तांडव ने भी ऐसा ही विवाद पैदा किया, जिसमें हिन्दू देवताओं को गलत ढंग से प्रस्तुत किया गया था। फिल्म लूडो में भी हिन्दू फोबिक सामग्री को बढ़ावा दिया गया, जो प्रसिद्ध पेंटर हुसैन की तरह था, जिन्होंने हिन्दू देवियों को गलत ढंग से दर्शाया था। 

इसके लिए कौन दोषी है? इसके जिम्मेदार हिन्दू और मुसलमान दोनों ही हैं। दोनों ही गत वर्षों में समाज में जहर फैलाने के लिए अशोभनीय भाषा का प्रयोग करते रहे हैं। जैसा कि ताली एक हाथ से नहीं बजती, घृणा भी दोनों पक्षों द्वारा फैलाई जाती है और इसका उद्देश्य सुर्खियों में रहना तथा सांप्रदायिक मतभेद बढ़ाना होता है। अक्तूबर 2021 के बाद घृणा के अपराध और घृणास्पद भाषण के 89 से अधिक मामले सामने आए हैं और यह सब कुछ 2022 के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर हो रहा है, जब मध्य प्रदेश, बिहार, हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने हैं। 

मीडिया पर उच्चतम न्यायालय द्वारा नूपुर शर्मा और उनके विवादास्पद बयान के कारण देश में आग लगने और उनसे पूरे देश से माफी मांगने के लिए कहने पर न्यायालय की खूब आलोचना की गई। उसके बाद न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा है कि न्यायालय केवल कानून के शासन को ध्यान में रखता है और न्यायालय के निर्णय जनता की राय से प्रभावित नहीं हो सकते। उन्होंने सोशल मीडिया और डिजिटल मीडिया के लिए भी विनियमनों की मांग की। इन बातों पर रोक लगाने की बजाय राजनीतिक दलों ने इस विभाजनकारी राजनीति से चुनावी लाभ उठाया है। वे धार्मिक समुदायों को चुनाव के दौरान एक निष्ठावान मतदाता समूह के रूप में प्रयोग करते हैं। इसके अलावा धार्मिक अल्पसंख्यकों या बहुसंख्यक हिन्दू समुदाय को तुष्ट करने के लिए कानूनों, नीतियों और रणनीतियों का निर्माण किया जाता है और यह भी विपक्षी दलों के चंगुल से मतदाताओं को छीनने की वोट बैंक की राजनीति बन गया है। 

धार्मिक असहिष्णुता के मामले में 198 देशों की सूची में भारत निचले क्रम से चौथे स्थान पर है। इस मामले में उसका प्रदर्शन सीरिया, नाइजीरिया और इराक से बेहतर है। यह बात प्यू रिसर्च सैंटर ने अपनी रिपोर्ट में कही है। गोधरा 2002, जम्मू-कश्मीर 2008, मुजफ्फरनगर 2013, मेरठ 2014 आदि 10 से अधिक सांप्रदायिक घटनाओं में 4500 से अधिक लोग मारे गए हैं। इन घृणा फैलाने वालों पर कैसे नियंत्रण पाया जाए? हमारे नेताओं को समझना होगा कि हिन्दू और मुसलमानों को एक दूसरे के विरुद्ध खड़ा कर वे केवल अपने निहित स्वार्थों की पूॢत कर रहे हैं। हिन्दू कट्टरवादियों या मुस्लिम अतिवादियों को कोई स्थान नहीं दिया जाना चाहिए। दोनों ही राज्य को नष्ट करने वाले हैं। साम्प्र्रदायिकता एक समुदाय की दूसरे समुदाय के प्रति घृणा के आधार पर फल-फूलती है। इसलिए हमारा नैतिक आक्रोश चुङ्क्षनदा नहीं हो सकता, अपितु यह न्यायप्रिय, सम्मानजनक और समान होना चाहिए। 

चाहे किसी भी तरह का उकसावा क्यों न हो, कानून के शासन की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। हिंसा या हिंसा करने के आह्वान को किसी भी तरह उचित नहीं ठहराया जा सकता और यह कानून का उल्लंघन है। यदि किसी हिन्दू को किसी मुसलमान से शिकायत है या किसी मुसलमान को किसी हिन्दू से शिकायत है तो उन्हें कानूनी कदम उठाने चाहिएं। अन्यथा कल ऐसी स्थिति आएगी कि व्यक्तिगत दुश्मनी के नाम पर कोई किसी व्यक्ति को गोमांस खाने वाला मुस्लिम या रामभक्त कह सकता है। 

130 करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले देश में इतने ही मत भी होंगे और इससे लोगों के राजनीतिक विश्वास और अधिकारों का दमन नहीं किया जा सकता। कोई भी व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के विचार स्वीकार न करने के लिए स्वतंत्र है। किसी व्यक्ति के लिए कोई बयान आपत्तिजनक हो सकता है तो हो सकता है वह बयान दूसरे के लिए सामान्य हो। तथापि किसी भी व्यक्ति को किसी भी समुदाय के विरुद्ध घृणा या दुर्भावना फैलाने का लाइसैंस नहीं दिया जाना चाहिए। 

इस साम्प्रदायिकता की राजनीति में हमें यह समझना होगा कि भारत एक बड़ा देश है, जहां सभी लोगों को शांति और सद्भावना से रहने के लिए पर्याप्त स्थान है। हमारा उद्देश्य सार्वजनिक बहस का स्तर बढ़ाना है न कि गिराना। न तो राम और न ही अल्लाह उनके नाम पर राजनीति करने वाले और कट्टरवादिता फैलाने वालों को माफ करेंगे। कोई भी यह नहीं समझ पा रहा कि तुष्टीकरण या आंख मूंदने से कोई बड़ा आदमी नहीं बनता, अपितु एक दानव पैदा होता है और वह सभी लोगों को कट्टरवादिता की राह पर ले जाकर नष्ट कर देता है। 

सभी धर्मों में इस तरह की विवेकहीन घृणा को समाप्त किया जाना चाहिए, क्योंकि इसके कारण हमारा ध्यान बढ़ती गरीबी, बेरोजगारी, स्वास्थ्य आदि आवश्यक मुद्दों से भटक रहा है। हमें देश को सांप्रदायिकता की ओर धकेलने से रोकने के लिए कदम उठाने होंगे और राष्ट्रीय हितों को महत्व देना होगा। यह कार्य हम ऐसे नेताओं के बिना भी कर सकते हैं जो राजनीति में विकृति पैदा करते हैं और राजनीति में विकृति के माध्यम से लोकतंत्र को नष्ट करते हैं। भारत का भाग्य संकीर्ण मानसिकता वाली धर्मनिरपेक्ष सांप्रदायिक शक्तियों से कहीं बड़ा है।-पूनम आई. कौशिश
 


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