देश के मुसलमान भविष्य को संवारनेे के लिए उठ खड़े हों

punjabkesari.in Sunday, Mar 05, 2023 - 05:40 AM (IST)

भारत में मुसलमानों को बेदार होने का समय आ गया है। आज मुसलमानों की हालत यह है कि वह खौफ और डर की जिंदगी गुजार रहे हैं। उनकी तरक्की दूसरी कौमों की तुलना में न के बराबर रह गई है।  मुसलमान भविष्य को लेकर अनिश्चितता की स्थिति में हैं। उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा है। वह बस यही सोच रहे हैं कि अगर 2024 में भारतीय जनता पार्टी सत्ता में वापस आती है तो क्या होगा? क्या यह मुसलमानों के लिए कयामत की शुरूआत होगी? हर तरफ मुसलमानों के बीच यही सवाल उठ रहा है। सड़क पर चलने वाला आम मुसलमान हो या मुस्लिम बुद्धिजीवी, हर कोई इसकी चर्चा कर रहा है।

अगर आप इन ङ्क्षचतित मुसलमानों से पूछें कि क्या उन्हें पूर्वोत्तर के उन  तीन राज्यों (त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड) के भूगोल और जनसंख्या के बारे में पता है जहां हाल ही में भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव जीता है। मुझे आशा है कि आपको संतोषजनक उत्तर नहीं मिलेगा। यह अज्ञानता की स्थिति इसलिए नहीं है कि आम मुसलमान राजनीतिक रूप से जानकार नहीं  हैं, बल्कि यह तथ्य है कि उन्होंने राजनीतिक और धार्मिक दोनों मामलों में अपने नेतृत्व के लिए ऐसे लोगों को चुना है, जो उन्हें ठीक से राह नहीं दिखा रहा है।

भारत में बहुत कम संगठन हैं जो मुसलमानों के बीच वर्कशॉप कर रहे हैं और उन्हें देश की स्थिति से अवगत करा रहे हैं व राजनीति को समझने के लिए कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं। इसी तरह, युवा मुसलमानों को तिजारत और अन्य व्यावसायिक कौशल से परिचित कराने के लिए कार्यक्रमों की कमी है। मुसलमानों का यह डर इस तरह की अज्ञानता और गुमराही में निहित है। इन सबके बावजूद हमें निराश नहीं होना चाहिए क्योंकि एक सूफी कहावत है कि जहां बीमारी है, वहां इलाज भी है।

बराए मेहरबानी अब शिकार न बनें मुसलमान: मुसलमानों के बीच चर्चा का सबसे उपयुक्त और निरंतर विषय यह है कि उन्हें मूर्ख बनाया जा रहा है। हमारे कारोबार खतरे में हैं, हमारे खिलाफ भेदभाव बढ़ रहा है, हमारा भविष्य ठीक नहीं  है, हमारा इस्लाम खतरे में है और यह सूची बहुत लंबी है। अक्सर इन बहसों को अल्लामा के रूप में जाने जाने वाले कवि मुहम्मद इकबाल की कविताओं के संदर्भ में बताया जाता है, जिन्होंने ब्रिटिश के बाद के मुसलमानों को नेविगेट करने पर कई विचार प्रस्तुत किए। प्राचीन अरबी कवि अबू अल-अला अल-मारी पर उनकी नज्म का एक शे’र इस तरह है :
तकदीर के काजी का फतवा है  अजल से
है जुर्म-ए-जईफी की सजा मर्ग-ए- मुफाजात
इसका मतलब यह है कि, मेरा यह कहना सुन लें कि कुदरत की निशानी किस्मत के मुफ्ती का यह फतवा है जो शुरू से जारी है कि कमजोरी का अंत मौत के सिवा और कुछ नहीं है। जो कमजोर और अक्षम हैं, वे शक्तिशाली लोगों का शिकार बनते हैं और दुनिया के सभी पदों और सम्मानों से वंचित होकर अपनी जिंदगी से महरूम हो जाते हैं।

क्या एक मुसलमान ही मुसलमानों का नेता होगा? नहीं : थिंक टैंक के एक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत के 90 जिलों, 100 लोकसभा क्षेत्रों और 720 विधानसभा सीटों पर मुसलमानों की उपस्थिति निर्णायक है। राज्य स्तर पर भी इनकी संख्या काफी है। फिर भी मुसलमान उत्पीड़ित महसूस करते हैं और उनकी सभी शिकायतें बनी रहती हैं। 
2013 में यू.पी. विधानसभा में 67 मुस्लिम विधायक थे और उसी वक्त मुजफ्फरनगर दंगे हुए और मुसलमानों को उनके घरों में कत्ल किया गया और उन्हें विस्थापन का सामना करना 
पड़ा। इसके अलावा, उस समय के सबसे मजबूत मुस्लिम नेता आजम खान मेरठ व मुजफ्फरनगर निर्वाचन क्षेत्रों के प्रभारी मंत्री थे। 
इस वक्त मुस्लिम धार्मिक और राजनीतिक नेतृत्व की पकड़ में हैं, लेकिन ये लोग केवल मुसलमानों का शिकार करते हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव और उसके बाद हुए विधानसभा तथा 2019 के लोकसभा चुनाव में सब कुछ मुस्लिम नेताओं के इशारे पर किया गया था, लेकिन नतीजा आज उनमें ‘खौफ’ है।

भावनात्मक धार्मिक मुद्दों पर ध्यान न दें : मुसलमानों को हाशिए पर खड़ा करने में इन्हीं लोगों का हाथ है जो इस्लाम के बारे में अपनी गलत  राय से उनकी भावनाओं को भड़काते हैं। ये धर्म से जुड़ी समस्याओं को इस तरह पेश करते हैं कि मुसलमान सबकुछ भूल कर इनके नारों में उलझ जाते हैं। 
देश में कोई घटना होती है तो कुछ तथाकथित धर्मगुरु, जिनमें से अधिकांश मौलाना की उपाधि के साथ दाढ़ी रखते हैं, स्क्रीन पर उन्माद तेज करने के लिए टी.वी. पर दिखाई देते हैं। अक्सर वे ऐसी बातें कहते हैं जो इस तरह की बहस को हवा देती हैं और देश में वास्तविक सांप्रदायिक तनाव पैदा करती हैं। मुसलमान बहुत भावुक होते हैं। धार्मिक मुद्दों और ऐसे मौलानाओं को उन्हें नजरअंदाज करना होगा।

शिक्षा, कारोबार और भविष्य की तलाश  : मुसलमानों ने एक महत्वपूर्ण क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन किया है: शिक्षा। इसमें कोई संदेह नहीं है कि शिक्षा का जोर तेजी से बढ़ रहा है और युवा मुस्लिम लगातार विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़ रहे हैं, चाहे वह सिविल सेवा, सशस्त्र बल, कॉर्पोरेट जगत आदि हो। 
महिलाओं सहित कुछ मुसलमानों ने सफल कारोबारी  के रूप में अपनी पहचान बनाई है। मुसलमानों को इस धागे को अच्छी तरह बुनना होगा। उन्हें देश भर में व्यापार स्थापित करना चाहिए। उन्हें मुस्लिम इलाकों में व्यावसायिक कार्यशालाएं आयोजित करनी चाहिएं जहां सफल लोग अपनी विशेषज्ञता और अनुभवों के आलोक में जानकारी दे सकें। इससे देश के युवाओं को प्रेरणा मिलेगी और वह  अपने डर पर काबू पा सकेंगे और एक ङ्क्षहदू की तरह अपना भविष्य उज्ज्वल देख सकेंगे। - डा. शुजात अली कादरी


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