बंदूक लोकतांत्रिक संस्थानों को नष्ट और पीढिय़ों को खामोश करती है

punjabkesari.in Saturday, Dec 10, 2022 - 04:05 AM (IST)

क्षेत्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारत ने अफगानिस्तान में आतंक के वित्त पोषण और आतंकवाद को रोकने के बारे में अपनी चिंता सही रखी है। यह वास्तव में हाल ही में दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एन.एस.ए.) और सुरक्षा परिषद के सचिवों की पहली भारत और मध्य एशिया की बैठक का एक प्रमुख फोकस था। 

स्मरण रहे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्षेत्रीय सुरक्षा के महत्वपूर्ण मुद्दों से निपटने के लिए उचित माहौल बनाने हेतु जनवरी में कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, तजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के नेताओं के साथ एक आभासी शिखर सम्मेलन की मेजबानी की थी। यह सम्मेलन शांतिपूर्ण, स्थिर और सुरक्षित अफगानिस्तान के लिए भारत की ‘विस्तारित पड़ोस’ चिंताओं का हिस्सा था। 

भारत के सुरक्षा सलाहकार और मध्य एशियाई सुरक्षा प्रमुखों ने बिगड़ती मानवीय स्थिति के मुद्दे को अच्छी तरह से देखा है और अफगास्तिान की सम्प्रभुता, एकता और क्षेत्रीय अखंडता सुनिश्चित करने की जरूरत पर जोर दिया है। इसके साथ-साथ यह भी सुनिश्चित किया है कि आतंकवादी समूहों को अफगास्तिान में सुरक्षित आश्रय न मिले। 

यह कोई रहस्य नहीं है कि भारत का अफगानिस्तान में उच्च दाव लगा है। हमारा देश अफगानिस्तान में कई विकास परियोजनाओं पर कड़ी मेहनत कर रहा है जो आतंकी समूहों की अवांछनीय गतिविधियों के कारण काफी प्रभावित हुई हैं। नई दिल्ली आतंकवाद को रोकने के लिए इच्छुक है ताकि अफगानिस्तान के लोगों की भलाई के लिए उसकी विकास परियोजनाओं को जरा-सा भी नुक्सान न हो। पहला भारत-मध्य एशिया आभासी शिखर सम्मेलन इसके प्रयासों का एक हिस्सा रहा है। 

इसमें कोई दो राय नहीं है कि आतंकवाद पर वैश्विक दृष्टिकोण प्रत्यक्ष रूप से इस बात से प्रवाहित होता है कि अमरीकी क्या सही या क्या गलत सोचते हैं। हालांकि 9/11 को न्यूयार्क और वाशिंगटन में हुए आतंकी हमलों के बाद पूरा परिदृश्य बदल गया। इसके बाद अमरीका की नीति और दृष्टिकोण में आमूल-चूल परिवर्तन हुआ। अमरीका ने अब यह कहना शुरू कर दिया है कि कोई भी कारण किसी भी आतंकवादी तरीके को न्यायोचित नहीं ठहरा सकता। यहां तक कि किसी देश की ‘मुक्ति’ को भी नहीं। मैं अमरीकी सरकार की ओर से आतंकवाद के प्रति नए नजरिए की प्रशंसा करता हूं। यह समझ में आता है क्योंकि सभी अमरीकी कार्रवाइयां आमतौर पर अपने राष्ट्रीय हितों से प्रेरित होती हैं। 

निश्चित रूप से अमरीकी नीति निर्माता भारत-पाकिस्तान संबंधों में संकट का मुकाबला करने में सहायक रहे हैं। फिर भी हमें अमरीका पर आंखें मूंद कर विश्वास करना उचित न होगा। इस संदर्भ में मैं यहां एक बात कहना चाहूंगा कि भारत-अमरीकी संबंधों के लम्बे व्यापारिक रिकार्ड को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने एक बार स्वीकार किया था कि आधी शताब्दी से अधिक समय तक अमरीका भारत के साथ अन्याय करता रहा है। वास्तव में यह एक कठोर तथ्य है। इसमें कोई संदेह नहीं कि चीन और अमरीका पाकिस्तान के परमाणु प्रसार के पीछे थे। 

इस्लामाबाद को मिसाइल टैक्नोलॉजी उपलब्ध करवाने के लिए बीजिंग ने एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। क्या वे लोग इसके नतीजों से वाकिफ थे? यहां यह बताना भी जरूरी है कि शक्तिशाली राष्ट्र आमतौर पर अपनी विदेश नीति के संचालन में काल्पनिक विचारों से प्रेरित नहीं होते हैं। कोई इसे पसंद करे या न करे, भारत अभी भी नैतिकता और मूल्यों की दुनिया में रहता है। इसे पश्चिमी दुनिया द्वारा सीमा पार आतंकवाद के खतरनाक आयामों को पूरी तरह से समझने की जरूरत है।

वास्तव में आतंकवाद की विध्वंसक क्षमता दिमाग को चकरा देने वाली है। यह बंदूक की ताकत का अंधाधुंध इस्तेमाल करके पीढिय़ों को खामोश कर सकती है और लोकतांत्रिक संस्थानों को नष्ट कर सकती है। यह अधिकारियों के महसूस किए बिना लोगों को भयभीत कर सकता है कि बंदूक और इस्लाम के विकृत उपदेश के पीछे अपने पारिवारिक लोकाचार और मूल्यों के समुदाय को साफ करने की संदिग्ध योजना है। 

हम भली-भांति जानते हैं कि पाकिस्तान द्वारा वित्तपोषित और प्रशिक्षित आतंकवादियों के हाथों भारत को कितनी बुरी तरह से सहना पड़ा है जिसका एकमात्र उद्देश्य आतंकवाद की रणनीति और इस्लाम के नाम पर कश्मीर को हड़पना था। लेकिन यह महसूस करने की जरूरत है कि इस्लाम आतंकवाद का उपदेश नहीं देता है। बड़े अफसोस की बात है कि इस्लाम के मानवतावादी विश्वास को उल्लेमा के विकृत वर्गों ने अपने साम्प्रदायिक और राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिए उसका अपहरण कर लिया है। 

आतंकवाद और इसके वित्त पोषण की समस्या से निपटने के लिए अभी एक नया साहसिक दृष्टिकोण विकसित करने की आवश्यकता है। उप-महाद्वीप और उसके बाहर एक ‘आतंकवादमुक्त’ माहौल आतंकवाद के खिलाफ कठिन संघर्ष के संचालन में अंतर पैदा कर सकता है जैसा कि एक अमरीकी विशेषज्ञ ने एक बार कहा था, ‘‘अब से पूरा जोर लोकतंत्र, सुशासन, संघवाद, धर्मनिरपेक्षता और मानवाधिकारों की सुरक्षा पर होना चाहिए।’’ अब जरूरत केवल आतंकवाद की पुरानी और नई समस्याओं को सही परिप्रेक्ष्य में देखने और मानवीय स्पर्श और लोकतांत्रिक भावना के साथ अपेक्षित सुधारों को लागू करने की है।-हरि जयसिंह
 


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