किसान की सल्तनत तो उसका खेत ही है

punjabkesari.in Thursday, Apr 29, 2021 - 04:47 AM (IST)

किसान की सल्तनत तो उसका खेत ही है। जिसमें वह अपनी पसंद की फसल की बुवाई करता है। फसल की रक्षा के लिए बाड़ लगाता है। इसी से खेतीबाड़ी शब्द प्रचलित हुआ। जब हम खेत की बात करते हैं तो उसका खेवट, खतौनी और खसरा नम्बर इत्यादि का जिक्र भी लाजिमी आता है। क्योंकि हर खेत की निशानदेही उसके विशेष नम्बरों से होती है। देश में खेतीबाड़ी की जमीन का आज भी उपलब्ध पुराना रिकार्ड राजा टोडरमल के समय से शुरू हुआ। राजा टोडरमल बादशाह अकबर के नौ रत्नों में से एक थे। जिन्होंने पहली बार इसको राजस्व के लिहाज से तरतीब किया। यह राजा टोडरमल का किसानों को एक अमर तोहफा है जिससे खेती की जमीन की पहचान और उसका मूल्यांकन होता है। 

हरियाणा के सर छोटू राम एक ऐसे किसान नेता थे जिन्होंने किसानों को साहूकारों के पंजे से मुक्त करवाया और उनके हितों में कृषि के कानून सरकार से तैयार करवाए। इस तरह सर छोटू राम किसानों के सच्चे मुक्तिदाता (मसीहा) कहे जाते हैं। ईश्वर तो सभी प्राणियों के प्राणदाता हैं। वहीं किसान की जब बात आए तो वह अन्नदाता है। किसान की इस महान भूमिका को समय-समय पर साहित्य में बड़े सम्मान के साथ पेश किया गया है।
क्रांतिकारी नेता और उर्दू के महान कवि फैज अहमद फैज ने पंजाबी भाषा में अपने दिल की भावनाओं और संघर्ष के समय किसान के संबंध में कुछ ऐसा लिखा : 

उठ उतांह नूं जट्टा, मरदा क्यों जाए 
भोलेया! तू जग अन्नदाता, तेरी बांदी धरती माता।
तू जग दा पालनहारा, तू मरदा क्यों जाए
जरनल, करनल, सूबेदार, डिप्टी, डी.सी., थानेदार
सारे तेरा दिता खावण, तू जे नां बीजे, जे नां गाहवें
भूखे भाणे सब मर जावण, एह चाकर तू सरकार। 

फैज अहमद फैज ने पंजाबी की अपनी इस अमर कविता में किसानों की महानता को जिस तरह से प्रकट किया है इसकी मिसाल कहीं और नहीं मिलती। फैज ने किसान को शून्य सोच छोड़कर उम्मीद वाली सोच को धारण करने और संघर्ष करने की प्रेरणा इशारों ही इशारों में दे दी। 
वहीं पंजाबी के एक अन्य कवि ने किसान के जज्बे और उसकी उमंगों को कुछ इस तरह अपने शब्दों में प्रकट किया है :
तूड़ी तंद सांभ, हाड़ी बेच वटके
लम्बड़ां ते शाहां दा हिसाब कट के 
कच्छे मार वंजली आनन्द छा गया मार दमामे जट्ट मेले आ गया।
 खेतीबाड़ी के संबंध में देश में एक प्रचलित कहावत भी है :
उत्तम खेती मध्यम व्यापार, नीच चाकरी, भीख द्वार। 

इस विचारधारा में कृषि को ऊंचा और बढिय़ा पेशा बताया गया है। आज से लगभग 115 वर्ष पहले जाटों के बारे में बांके दयाल ने एक गीत लिखा था जिसके बोल थे :
पगड़ी सम्भाल ओ जट्टा, पगड़ी सम्भाल ओए। बांके दयाल ‘झंग स्याल’ के सम्पादक थे और साथ ही साथ कवि। अंग्रेजों के शासन के समय 22 मार्च 1907 को लायलपुर (वर्तमान में पाकिस्तान में है और आजकल इसे फैसलाबाद कहा जाता है) में किसानों की बड़ी रैली में जब यह गीत गाया तो किसानों ने जोरदार तालियां बजाईं। इसी तरह ‘पगड़ी सम्भाल ओ जट्टा’ गीत किसानों की भावनाओं को अच्छे ढंग से पेश करने वाला माना जाता है। इस गीत को सुनते ही किसानों ने बांके दयाल को अपने कंधों पर उठा लिया। पगड़ी सम्भाल का मतलब यह था कि किसान अपने सम्मान और शान को सम्भाले। अंग्रेजी हकूमत के दौरान लायलपुर में हुई इस रैली का प्रबंध शहीद भगत सिंह के पिता, चाचा किशन सिंह और अजीत सिंह ने किया। 

खेतीबाड़ी किसानी पेशा करने वाले वर्ग को ही आमतौर पर किसान कहा जाता है। दूसरे शब्दों में जट्ट शब्द किसान का समानार्थक शब्द है। दिल्ली में किसी समय जाट नेता चौधरी सूरज मल की हकूमत रही तथा उनका बुत दिल्ली में एक स्थान पर लगा हुआ है। हरियाणा में किसानों को जाट और पंजाब में जट्ट कहा जाता है। जिस समय पंजाब में मुख्यमंत्री सरदार प्रताप सिंह कैरों की सरकार थी तो अकाली दल के उस समय के बेताज बादशाह कहे जाने वाले नेता थे मास्टर तारा सिंह। ऐसे हुआ कि प्रताप सिंह कैरों के आदेश पर चुनाव प्रचार की आड़ में एक बार मास्टर तारा सिंह की निजी जीप सरकारी अधिकारी ने जब्त कर ली और मास्टर जी को जीप से नीचे उतार दिया। फिर मास्टर जी को कई बार रोष रैलियों को करने से भी रोक दिया। 

आखिरकार मास्टर जी ने हरियाणा के जाट नेता चौधरी देवी लाल को अपनी मदद के लिए बुलाया। तरनतारन में सरकारी पाबंदियों को तोड़कर विशाल रैली की गई। इस रैली में चौधरी देवी लाल ने अपने खास अंदाज में कहा ‘‘सरदार प्रताप सिंह, तुसीं जट्ट हो तां मैं जाट हां तुहाडे नालों एक डंडा (आ की मात्रा) मेरा ज्यादा है।’’ इतना कहकर उन्होंने एक लाठी हवा में घुमाई। चौधरी देवी लाल ने अपने खास अंदाज में इस तरह कैरों को संदेश दिया था। माझे के एक प्रमुख शिक्षाविद् सरदार मंगल सिंह किशनपुरी ने किसान के योगदान को बहुत बढिय़ा अंदाज से कुछ इस तरह बयान किया है ‘‘केवल कृषि तक ही किसान सीमित नहीं है। किसान तो देश की आर्थिकता और राजनीति की भी धुरी है।’’-ओम प्रकाश खेमकरणी
 


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