भारतीय क्षेत्र में अमरीकी युद्ध पोत का प्रवेश करना चिंता का विषय है

punjabkesari.in Sunday, Apr 18, 2021 - 04:52 AM (IST)

इस माह के शुरू में अमरीकी नौसेना ने उस समय विवाद को जन्म दे दिया जब उसका एक युद्धपोत भारतीय विशेष आॢथक जोन में बिना सूचित किए प्रवेश कर गया।  अमरीका ने इसे फ्रीडम ऑफ नेवीगेशन आप्रेशन (एफ.ओ.एन.ओ.पी.) कहा। इस मुद्दे को लेकर भारत की भौहें तन गई।

शक्ति परीक्षण
अमरीकी नौसेना के सातवें युद्धपोत ने हाल ही में एफ.ओ.एन.ओ.पीज. के बाद एक वक्तव्य जारी किया जिसके तहत इसने अपने दुश्मनों और दोस्तों के द्वारा समुद्र पर किए गए दावे को चुनौती दी है। 
दिसम्बर  2020    यू.एस.एस. जोन मैक्केन             दक्षिण चीन सागर के स्पार्टली द्वीपों के निकट 
दिसम्बर  2020    यू.एस.एस. जोन एस. मैक्केन      दक्षिण चीन सागर में कॉन डाओ द्वीपों के आसपास
फरवरी   2021    यू.एस.एस. जोन एस. मैक्केन       दक्षिण चीन सागर के पार्सल द्वीपों के निकट
मार्च     2021    यू.एस.एन.एस. चाल्र्स ड्रयू             दक्षिण कोरिया के दावे को चुनौती देने के लिए      
        कुक-तू द्वीप के निकट
अप्रैल   2021    यू.एस.एस.एस.जॉन पाल जोन्ज     श्रीलंका के दावे को चुनौती देने के लिए
अप्रैल   2021    यू.एस.एस. जॉन पॉल जोन्ज          भारतीय तथा मालदीव दावे को चुनौती दी गई 

अमरीकी नौसेना का विवाद क्या है?
7 अप्रैल को अमरीकी नौसेना का 7वां युद्धपोत यू.एस.एस. जॉन पाल जोन्ज जो मिसाइल विध्वंसकों से लैस था भारतीय क्षेत्र में प्रवेश कर गया। अमरीका ने दोहराया कि उसके पास नौवहन अधिकार तथा स्वतंत्रता है जिसके तहत वह लक्षद्वीप के पश्चिम में करीब 130 नॉटीकल मील तक  घुस सकता है। यह ऐसा क्षेत्र है जिसे भारत अपना एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन (ई.ई.जैड.) मानता है। एक तटीय देश का ई.ई.जैड 200 नॉटीकल मील (370 कि.मी.) तटों तक फैला होता है। मामले से संबंधित देश को अपने ई.ई.जैड. से संबंधित सभी स्रोतों पर विशेष अधिकार होता है। वहीं अमरीकी नौसेना का कहना है कि उसने भारत के ई.ई.जैड. के माध्यम से एक छोटा रास्ता लेने के लिए अनुमति के लिए नहीं कहा। अपने पक्ष को लेकर भारत का यह कहना है कि अमरीका को हमें सूचित करना चाहिए था कि यह युद्धपोत पूरे शस्त्रों से लैस है। 

क्या अमरीका का यह कदम असामान्य है? 
अमरीका का यह कदम असामान्य नहीं है। अमरीकी रक्षा विभाग प्रत्येक वर्ष एफ.ओ.एन.ओ.पीज के दस्तावेज जारी करता है जिसके तहत यह भरोसा दिलाया जाता है कि समुद्र वैश्विक आम रास्ता है और इसी कारण किसी भी देश के युद्धपोत की उपस्थिति को लेकर कोई पाबंदी नहीं होनी चाहिए। उधर भारतीय अधिकारियों का कहना है कि अमरीकी युद्धपोत भारतीय जल के बीच में से एक वर्ष में अनेकों बार गुजरा। असामान्य बात यह है कि 7वें जंगी बेड़े ने एफ.ओ.एन.ओ.पी. पर एक वक्तव्य जारी किया। पर्यवेक्षकों का कहना है कि अमरीकी बयान इस बात पर जोर देता है कि भारत ने ऐसे रास्तों पर गैर-कानूनी दावा ठोका। भारत ने एक वक्तव्य के साथ अपनी प्रतिक्रिया दी जिसे बिल्कुल उचित माना गया। 

समस्या के मूल में क्या है? 
यू.एन. कन्वैंशन ऑन द लॉ ऑफ द सी (यू.एन.सी.एल.ओ.एस.) की भिन्न व्याख्या ही समस्या है। भारत का मानना है कि कन्वैंशन देशों को ई.ई.जैड. में सैन्य अभियान चलाने के लिए तटीय देश की अनुमति के बिना मान्यता नहीं देता। विशेष तौर पर जब यदि युद्धपोत हथियारों को ले जा रहे हैं। पर्यवेक्षकों का कहना है कि यू.एन.सी.एल.ओ.एस. क्षेत्रीय जलों के माध्यम से एक छोटे रास्ते की अनुमति देता है। 

क्या यह विवाद समझौतों को प्रभावित करेगा?
दोनों पक्षों ने यह संकेत दिया है कि तनाव कम किया जाएगा। दोनों देशों के प्रतिनिधियों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि इस मुद्दे से भारत-अमरीका के संबंधों में कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। पैंटागन प्रैस सचिव जॉन किरबी ने कहा कि अमरीकी युद्ध पोत यू.एस.एस. जोन पॉल जोन्ज ने मालदीव के रास्ते से एक छोटा रास्ता अपनाया। इस दौरान भारतीय समुद्र में कोई भी सैन्य हरकत नहीं की गई। दोनों देशों के बीच सुदृढ़ रिश्ते हैं। जोन किरबी भारतीय पक्ष को लेकर सारे घटनाक्रम से वाकिफ हं।-एलिजाबेथ रोचे 


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