वाजे प्रकरण में अपराधी-पुलिस-राजनीतिज्ञ गठजोड़ स्पष्ट हुआ

punjabkesari.in Friday, Apr 16, 2021 - 02:40 AM (IST)

मैं उसी विषय पर बात करना चाहता हूं जिस पर पहले भी दो बार कर चुका हूं-पुलिस, राजनीतिज्ञ, अपराधी गठजोड़ जो महाराष्ट्र में अनिल देशमुख-परमबीर सिंह झगड़े में बहुत स्पष्ट तौर पर उबर कर सामने आया है। प्रैस में सामने आए सभी सबूतों से ऐसे लगता है कि इस पहेली के अधिकतर टुकड़े अपने स्थान पर आ गए हैं। 

परमबीर सिंह को स्वाभाविक तौर पर सिटी पुलिस ने शीर्ष पद पर पार्टी के लिए फंड इकट्ठे करने में मदद के लिए चुना गया था। उन्होंने एक दागी, निलंबित एनकाऊंटर स्पैशलिस्ट की सेवाएं मांगी थीं, जिसके सिर पर 63 लोगों की मुठभेड़ में हत्या का आरोप था। उस याचना को मान लिया गया। किसी ऐसे अधिकारी को बहाल करना आसान नहीं था जो अदालत में हत्या के आरोपों का सामना कर रहा था और जिसे 17 साल पहले बर्खास्त कर दिया गया था। फिर भी यह काम किया गया। 

सामान्य तौर पर नियुक्ति अधिकारी के पास निलंबन उठाने की शक्ति होती है लेकिन मुम्बई के पुलिस आयुक्त ने सचिन वाजे की नियुक्ति नहीं की थी। वह ठाणे पुलिस के रोस्टर में से उबरे थे जिनके काडर का नियंत्रण राज्य के डी.जी.पी. के पास था। तत्कालीन डी.जी.पी. सुबोध जायसवाल ने इस कार्य के लिए 2 सदस्यीय समिति बनाई थी जिसमें ए.सी.एस. (गृह) तथा मुम्बई के पुलिस कमिश्नर शामिल थे। 

एक गैर-कानूनी, अनैतिक कार्य को न्यायोचित ठहराने की कोशिश की गई। वह बहाना था कोविड का। लेकिन वाजे के वर्दी में वापसी करने के उपरांत कोविड को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया। उसे उस कुर्सी के नीचे तैनात किया गया जहां वह खुद अपने लिए तथा अपने संरक्षकों के लिए धन इकट्ठा करने के अपने पसंदीदा काम को अंजाम दे सके। प्रदीप शर्मा तथा सचिन वाजे जैसे लोग, जो इन दिनों समाचारों में हैं, पुलिस बल की हिम्मत, प्रयास करने वाले तथा ऑन द स्पॉट निर्णय लेने की क्षमता वाले लोगों की जरूरत की पैदावार हैं। जहां ऐसे विशेष गुणों वाले व्यक्तियों को शायद ही प्रलोभनों की जरूरत होती है मगर शीघ्र ही वे अन्य के बीच रहते कपटी बन जाते हैं। 

सर पीटर इम्बर्ट लंदन मैट्रोपॉलिटन  पुलिस के आयुक्त थे जब मैं स्कॉटलैंड यार्ड स्थित उनके कार्यालय में उनसे मिला। मैंने उनसे कई समस्याओं पर बात की जिनका बड़े शहरों में एक पुलिस प्रमुख को सामना करना पड़ता है। भ्रष्टाचार उनमें से एक था। निश्चित तौर पर सांस्कृतिक तथा संगठनात्मक अंतरों के कारण समस्या से निपटने का दृष्टिकोण भी भिन्न था। उदाहरण के लिए ब्रिटिश पुलिस अपने बल द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन का समर्थन नहीं करती, जैसे कि यहां  मध्यमवर्गीय नागरिकों द्वारा एनकाऊंटर स्पैशलिस्ट्स का किया जाता है। राजनीतिज्ञ स्पैशलिस्ट्स को अपना समर्थन देते हैं क्योंकि लोग अधिकारियों द्वारा अपनाए जाने वाले शार्टकट्स को अपना समर्थन देते हैं। ब्रिटेन में आपराधिक न्याय प्रणाली भारत की तरह कार्य नहीं करती जहां जनता खुद को सुरक्षित महसूस करवाने के लिए स्पैशलिस्ट्स पर भरोसा करती है। भारत के विपरीत ब्रिटेन में पुलिस को संचालन की स्वतंत्रता है। मंत्री तथा राजनीतिज्ञ नियुक्तियों तथा स्थानांतरणों में दखल नहीं देते हैं न ही वे मामलों की जांच में दखलअंदाजी करते हैं। 

सचिन वाजे एक कैदी की हत्या के मामले में मुकद्दमा झेल रहा था जिस पर 2002 में किए गए एक आतंकवादी अपराध का दोष लगाया गया था। दो दशक गुजर जाने के बाद भी मुकद्दमा शुरू नहीं हुआ था। वाजे ने 2007 में सेवा में बहाली के लिए आवेदन किया था जिसे सीधे तौर पर ठुकरा दिया गया। 2020 में इसने फिर आवेदन किया तथा एडीशनल सी.एस. (गृह) तथा मुम्बई पुलिस कमिश्रर पर आधारित 2 सदस्यीय समिति का गलत काम को समर्थन देने के लिए गठन किया गया।

बहाल होने पर वाजे ने वही किया जो वह बेहतरीन कर सकता था-अपने महत्व तथा उपस्थिति को महसूस करवाना। वह सीधे परमबीर को रिपोर्ट करता था जो उससे 7 रैंक सीनियर थे। वह अपने करीबी वरिष्ठों को नजरअंदाज करता था क्योंकि कमिश्रर वाजे के संरक्षक थे। वाजे एक मर्सीडीज कार में बैठ कर कमिश्रर कार्यालय के परिसर पहुंचा। जिस रजिस्ट्र में सी.पी. कार्यालय में आने वाले सभी वाहनों के प्रवेश तथा निकासी को दर्ज किया जाता है वह रहस्यमयी तरीके से गायब हो गया।  

अपराधी-पुलिस-राजनीतिज्ञ गठजोड़, जिसके बारे में आमतौर पर बात की जाती है वाजे प्रकरण में स्पष्ट तौर पर सामने आया है। उसे राजनीतिज्ञों तथा पुलिस प्रमुख की सुविधा के लिए सेवा में बहाल किया गया था। यदि अपराध पर अंकुश लगाना है तो इस गठजोड़ को तोडऩा आवश्यक है। राजनीतिज्ञों को सत्ता में बने रहने के लिए धन तथा बाहुबल की जरूरत होती है। सत्ता प्राप्त करने के लिए उनकी मदद करना पुलिस का काम नहीं है। पुलिस राजनीतिक वर्ग को हतोत्साहित करने के लिए कुछ नहीं कर सकती लेकिन यह तीन टांगों वाले स्टूल की एक टांग को झटका दे सकती है जिस पर यह अपवित्र गठजोड़ टिका होता है।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)
 


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