देश इस समय कोरोना रूपी सुनामी को झेल रहा

punjabkesari.in Tuesday, Apr 27, 2021 - 03:31 AM (IST)

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) के प्रमुख टेड्रोस अदानोम गेब्रेयससन ने हाल ही में कहा है कि भारत की स्थिति बेहद भयानक है जो हमें स्मरण करवाती है कि कोरोना वायरस क्या कर सकता है? वास्तव में यह सही था क्योंकि देश महामारी की एक गंभीर और खतरनाक दूसरी लहर से पीड़ित है। अधिकारियों ने 16 मिलियन से अधिक मामलों और 1 लाख 86 हजार मौतों की पुष्टि की है। सबसे अधिक मामलों के साथ भारत अमरीका से आगे निकल गया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि यह एक अभूतपूर्व स्वास्थ्य  आपातकाल है क्योंकि केंद्र और राज्य सरकारों के लिए यह टैस्ट का दौर है। 

2020 में जब कोविड की पहली लहर दुनिया में आई तो भारत में बैड और चिकित्सा उपकरणों की अपर्याप्त संख्या थी। तब यहां पर वैक्सीन नहीं थी। इन सभी के बावजूद भारत पहली लहर से सफलतापूर्वक लडऩे में कामयाब रहा, लेकिन दूसरी लहर अधिक गंभीर है। हालांकि एक वर्ष बाद हमारे पास अधिक मैडीकल किटें, अस्पताल बैड तथा वैक्सीन हैं लेकिन हमारी तैयारी नहीं है क्योंकि किसी को भी दूसरी लहर की उम्मीद ही नहीं थी। 

राज्य सरकारें, केंद्र सरकार और साथ ही जनता सब गलत हो गए। इन सभी ने अपना पहरा कम कर दिया था। पिछले वर्ष यह प्रतिरक्षा प्रणाली थी जो कोविड से अच्छी तरह से लड़ी थी। इस बात को महामारीविदों ने भी स्वीकार किया। वैक्सीन प्रौद्योगिकी के मामले में भारत पहले नम्बर पर है। वैक्सीन निर्माता दिन-रात काम कर रहे थे ताकि टीकों को तैयार किया जा सके। जो चीज हमसे गलत हो गई वह शालीनता थी जो दूसरी लहर की मौतों के लिए जिम्मेदार है। प्रशासन इतना आश्वस्त था कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवद्र्धन ने भी इस साल मार्च में घोषणा की थी कि कोविड युग खत्म हो चुका है। उसके बाद दूसरी लहर अघोषित रूप से आई। 

दूसरी बात यह है कि चुनाव आयोग ने महामारी के बीच पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुड्डुचेरी में विधानसभा चुनाव करवाए। कई विशेषज्ञों का मानना है कि ये चुनावी  रैलियां ‘सुपर स्प्रैडर’ थीं। पिछले साल बिहार चुनाव के सफल आयोजन के कारण चुनाव आयोग प्रोत्साहित था लेकिन यह उस अवधि के दौरान चुनाव हुआ था जब कोविड मामलों में कमी आ रही थी। आयोग कम से कम चुनावी रैलियों पर प्रतिबंध लगा सकता था। राजनीतिक दल विशाल सभाओं को संबोधित करने से स्वयं को रोक सकते थे जहां लोग बिना मास्क के भाग लेते थे और सामाजिक दूरी नहीं बनाते थे। लेकिन ऐसा नहीं करने पर सभी पक्ष दोषी हैं, जब तक चुनाव आयोग जागा और रैलियों पर प्रतिबंध लगाया तब तक बहुत देर हो चुकी थी। 

चुनाव आयोग के इस रवैये पर मद्रास हाईकोर्ट ने उसे जिम्मेदार ठहराया है। अदालत ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा है कि गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार के लिए चुनाव आयोग के खिलाफ हत्या का केस दर्ज किया जाना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि चुनाव आयोग अपनी जिम्मेदारी को निभाने में विफल रहा। बैंच ने कहा कि चुनाव में राजनीतिक दलों ने कोरोना प्रोटोकॉल का जम कर उल्लंघन किया और आयोग इन्हें रोकने में नाकामयाब रहा। तीसरी गलती प्रशासन ने उस समय की जब कुंभ मेले के दौरान लाखों श्रद्धालुओं को हरिद्वार में गंगा में स्नान करने की अनुमति दी गई। यह फिर से ‘सुपर स्प्रैडर’ था। जब तक कुंभ मेले को बंद किया गया तब तक बहुत देर हो चुकी थी। 

चौथी बात यह है कि प्रवासी श्रम मुद्दे को लेकर राज्य सरकारों की विफलता थी। प्रवासियों को मुख्यमंत्रियों की बातों पर कोई विश्वास नहीं रहा। गरीब तथा जरूरतमंदों को प्राथमिक चिकित्सा सहूलियतों को उपलब्ध करवाने में राज्य सरकारें विफल रहीं। मैक्रो स्तर पर प्रशासन समय सिर कार्रवाई करने और उचित निर्णय लेने में असफल रहा। राज्यों ने दावा किया कि केंद्र अधिक ऑक्सीजन और टीकाकरण खुराकों के लिए उनके अनुरोधों पर ध्यान नहीं दे रहा था। यह एक तथ्य है जिससे किसी को भी दोषी ठहराया जाना है। सभी लोगों ने पिछले वर्ष कोविड के साथ जंग लड़ी। 2021 से राजनीति ने सब पर कब्जा कर लिया। 

अंत में जनता को भी अपना दोष स्वीकार करना चाहिए क्योंकि उन्होंने जनवरी 2021 से कोविड के नियमों की अनदेखी की थी। झूठी अफवाहों पर भरोसा कर लोग कोविड वैक्सीन को शुरू में लेने के लिए तैयार नहीं थे जब सरकार ने बड़े स्तर पर वैक्सीन मुहिम चलाई थी, मगर अब वैक्सीन की बड़ी मांग है परंतु सप्लाई पर्याप्त नहीं है। देश इस समय कोरोना रूपी सुनामी को झेल रहा है जिसे इससे पहले कभी नहीं झेला गया। यदि केंद्र, राज्य और लोग एकजुट हो जाएं तो महामारी पर नियंत्रण लग सकता है। यह सभी के लिए एक साथ आने का समय है जैसा कि उन्होंने 2020 में किया था।-कल्याणी शंकर
 


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