पुलिस सुधार का बिगुल राज्यों से बजे

punjabkesari.in Saturday, Apr 23, 2022 - 05:35 AM (IST)

आधी रात में सामान्यत: खतरनाक अपराधियों को गिरफ्तार किया जाता है लेकिन गुजरात के कांग्रेस विधायक जिग्नेश मेवानी के पुराने ट्वीट पर असम पुलिस उन्हें रातों-रात गिरफ्तार करके हवाई जहाज से असम ले गई। सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट हो तो पीड़ित व्यक्ति सिविल कानून के तहत मानहानि का दावा कर सकता है लेकिन पिछले कई सालों से सोशल मीडिया पोस्टों पर विरोधियों के ऊपर एफ.आई.आर. दर्ज करने का मर्ज सभी राज्यों में बढ़ गया है। 

आप पार्टी की सरकार बनने पर पुराने सोशल मीडिया पोस्ट के लिए पंजाब पुलिस ने कुमार विश्वास और अलका लाम्बा के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है। लाखों मुकद्दमों में जवानों और संसाधनों की कमी के कारण पुलिस जांच और अदालतों में सबूतों की पेशी आदि अटके पड़े हैं लेकिन फिजूल के सोशल मीडिया पोस्ट के नाम पर आलाकमान के इशारे पर विरोधी नेताओं के खिलाफ एक्शन के लिए पुलिस बल की तत्परता, गणतंत्र के लिए खतरनाक है। 

दरअसल एफ.आई.आर. दर्ज करने या नहीं दर्ज करने, जांच  को मनमाफिक दिशा में बढ़ाने, गिरफ्तार करने के लिए पुलिस के पास असीमित अधिकार हैं। पुलिस के इस तंत्र के आगे न्यायिक व्यवस्था भी पूरी तरह से बौनी और विफल  साबित हो रही है। सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट के लिए आई.टी. एक्ट की धारा 66-ए के तहत कार्रवाई का प्रावधान था परन्तु सुप्रीम कोर्ट ने 7 साल पहले उस कानून को निरस्त कर दिया था। एक बड़ा सवाल यह है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 66-ए निरस्त किए जाने के बावजूद आपत्तिजनक पोस्टों के लिए आई.पी.सी. के तहत मामला दर्ज करना और बेवजह की गिरफ्तारी करना, कितना उचित है? 

आजादी से पहले लाला लाजपत राय जैसे नेता पुलिस की बर्बरता का शिकार हुए। आजादी के बाद आपातकाल के दौर में इंदिरा गांधी सरकार ने पूरे देश में पुलिस राज लागू कर दिया था। अभी केन्द्र और अधिकांश राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारें हैं, जिनके नेता पुलिसिया दमन का शिकार हो चुके हैं इसके बावजूद किसी भी पार्टी की सरकार ने पुलिस सुधार के लिए ठोस पहल नहीं की है। नेता लोग विपक्ष में रहकर पुलिस दमन के खिलाफ धरना प्रदर्शन करते हैं लेकिन सत्ता में आने पर उनका रवैया भी दमनकारी हो जाता है। कुछेक बड़े लोगों के मामलों को छोड़ कर गलत एफ.आई.आर. होने पर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से भी निर्णायक राहत नहीं मिलती। 

आम जनता पर मास्क नहीं पहनने पर झट एफ.आई.आर. हो जाती है, लेकिन महाराष्ट्र में हफ्ता वसूली के संगठित तंत्र के खुलासे के बावजूद अनेक लोग खुला घूम रहे हैं। पूर्व गृह सचिव की अध्यक्षता वाली वोहरा कमेटी ने सन् 1993 की रिपोर्ट में नेता, पुलिस, अफसर, उद्योगपति और माफिया के आपराधिक गठजोड़ का खुलासा किया था, जिस पर कार्रवाई नहीं हुई। अंग्रेजों के समय का गुलाम इंडिया हो या फिर इंदिरा गांधी के आपातकाल का भारत। पुलिस फोर्स में अर्थशास्त्र का ग्रेशम सिद्धांत ज्यादा लागू होता है। इसके अनुसार खोटे सिक्के अच्छे सिक्कों को प्रचलन से बाहर कर देते हैं, इसीलिए एक भ्रष्ट और आपराधिक दारोगा को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री, गृहमंत्री और पुलिस कमिश्नर से संरक्षण मिल पाना संभव होता है। 

सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के अनुसार मुकद्दमे में गलत तरीके से फंसाए जाने पर पीड़ित व्यक्ति ट्रायल कोर्ट के माध्यम से हर्जाने या मुआवजे की मांग कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने डी.के. बसु मामले में सन् 1996 में गिरफ्तारी और हिरासत में पुलिसिया जुल्म को रोकने के लिए गाइडलाइंस बनाई थीं। सुप्रीम कोर्ट ने सन् 1977 में एक बड़ा फैसला देकर कहा था कि ‘जमानत  नियम है और हिरासत अपवाद’। सुप्रीम कोर्ट के 2016 के फैसले के अनुसार अभियुक्त को एफ.आई.आर. की कापी मिलने का अधिकार है। फैसले के अनुसार संवेदनशील मामलों को छोड़कर अन्य सभी एफ.आई.आर. ऑनलाइन उपलब्ध होनी चाहिएं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार सभी पुलिस थानों में सी.सी.टी.वी. लगना चाहिए। 

15 साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने प्रकाश सिंह मामले में पुलिस सुधार पर ऐतिहासिक फैसला दिया था। संविधान के अनुसार कानून और व्यवस्था के तहत पुलिस का विषय राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आता है। इस बारे में विधि आयोग व प्रशासनिक सुधार आयोग की अनेक रिपोर्टों के बावजूद, संबंधित कानूनों में बदलाव नहीं हुआ। 

सुप्रीम कोर्ट के फैसले में पुलिस के राजनीतिकरण को रोकने के लिए अनेक निर्देश थे। उनके अलावा पुलिस जांच और अभियोजन के लिए अलग सिस्टम बनाने की बात कही थी। उसको दुरुस्त करने की बजाय पुलिस को अब बुलडोजर पॉवर से लैस किया जा रहा है।10 साल पहले सी.बी.आई. बनाम किशोर सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कानून की रक्षक पुलिस यदि भक्षक बन जाए तो उन्हें सामान्य अपराधियों से ज्यादा दंड मिलना चाहिए। 

सुप्रीम कोर्ट के अनेक फैसलों और विधि आयोग की रिपोर्ट के  अनुरूप पुलिस, जेल, सी.आर.पी.सी. और दूसरे कानूनों में बदलाव की पहल राज्य सरकारें करें तो आम जनता के साथ पुलिस फोर्स और अदालतों को बेवजह की मुकद्दमेबाजी से मुक्ति मिल सकती है। देश की आजादी की 75वीं वर्षगांठ और अमृत महोत्सव के राष्ट्रीय पर्व के मौके पर बेवजह के मामले दर्ज करने की बजाय पंजाब की नई सरकार  पुलिस सुधारों का बिगुल फूंके तो उसकी गूंज से पूरे देश की गवर्नैंस में सुधार का नया दौर शुरू हो सकता है।-विराग गुप्ता(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट)
 


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