चीन के लिए कोविड से बड़ी चुनौती ‘बुजुर्गों की बढ़ती आबादी है’

punjabkesari.in Friday, Nov 20, 2020 - 03:54 AM (IST)

वर्ष 2018 से चीन की अर्थव्यवस्था को अमरीकी व्यापार संघर्ष के कारण तगड़ा झटका लगा है। चीन को अमरीकी व्यापार से हर वर्ष 5-6 अरब डॉलर का लाभ मिल रहा था जिसपर ट्रम्प ने राष्ट्रपति बनते ही रोक लगा दी, अभी चीन इस परेशानी से जूझ ही रहा था कि अगला झटका कोविड-19 ने दे दिया, कोविड का दांव चीन को उल्टा पड़ गया। 

चीन ने कोरोना वायरस को दुनिया में ये सोचकर फैलाया था कि इससे पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था बर्बाद होगी तब चीन दुनिया की मदद करने के नाम पर पूरी दुनिया में अपने देश में बना सामान बेचेगा बाद में उन देशों की अर्थव्यवस्था पर पूरी तरह काबिज हो जाएगा, लेकिन चीन यहां पर एक गलती कर गया, वह यह नहीं समझ पाया कि जब पूरी दुनिया में कई देशों के पास खरीदने की शक्ति नहीं रहेगी तो फिर वह सामान बेचेगा किसे, अब चीन ने सामान तो बना रखा है लेकिन उसके खरीदार नहीं हैं। इसके अलावा चीन के सामने इससे बड़ी चुनौती अपनी बूढ़ी होती आबादी के बोझ की है जो उसकी आर्थिक तरक्की में एक बड़ा रोड़ा साबित होगा। चीन में बढ़ती बुजुर्गों की आबादी चार चरण में चीन के लिए मुश्किल का कारण बनेगी : 

पहला-वर्ष 2030 के बाद चीन में 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की संख्या एक करोड़ 12 लाख के करीब होगी और वर्ष 2050 के बाद इस उम्र वालों की संख्या 40 करोड़ से अधिक होगी जो कि चीन की कुल आबादी का एक तिहाई होगी। यह संख्या इतनी बड़ी होगी कि हर परिवार का एक सदस्य 65 वर्ष या इससे ज्यादा उम्र का होगा। साथ ही बुजुर्गों की यह संख्या ओ.ई.सी.डी. देशों में रहने वाले बुजुर्गों से भी अधिक होगी और विकसित राष्ट्रों में बुजुर्गों की संख्या की दोगुनी होगी। 

दूसरा-चीन में बुजुर्गों (60-80 वर्ष) की संख्या से धीरे-धीरे (80 -ऊपर) वर्ष की संख्या में बढ़ती जाएगी, वहीं 60-80 वर्ष के लोगों की संख्या में थोड़ी कमी आएगी, वहीं वर्ष 2050 में चीन में 80 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की संख्या 14.4 करोड़ होगी। बुजुर्गों की यह संख्या पूरे यूरोप और उत्तरी अमरीका में रहने वाले बुजुर्गों से कहीं अधिक होगी। तीसरा-चीन में युवा कामगारों पर बुजुर्गों की निर्भरता का अनुपात वर्ष 2050 में 73 होगा यानी हर 100 कामगार व्यक्तियों पर 73 बूढ़े लोगों की जिम्मेदारी होगी। इसके अलावा 22 बच्चों और 51 ऐसे बुजुर्गों की जिम्मेदारी होगी जिनकी उम्र 65 वर्ष से अधिक है। वर्ष 2050 में चीन में युवाओं पर बुजुर्गों की निर्भरता वर्ष 2018 में 41 फीसदी के अनुपात में 32 फीसदी अधिक होगी। 

चौथा-वर्ष 2030 में चीनियों पर बच्चों से ज्यादा जिम्मेदारी बूढ़े लोगों की होगी। यानी कामगारों और युवा चीनियों पर बूढ़े लोगों की जिम्मेदारी बढ़ती जाएगी। वर्ष 2050 तक युवा चीनियों पर बूढ़े लोगों का बोझ 49.9 फीसदी होगा। वर्ष 1982 में एक बच्चा की नीति पर चीन ने सख्ती दिखानी शुरू कर दी जिसका असर यह हुआ कि एक परिवार का आकार 4.4 से घटकर वर्ष 2015 में 2.89 रह गया, इसके अलावा अगले 30 वर्ष तक चीन में परिवार का औसत आकार 2.51 ही रहेगा, और इसका सबसे बुरा असर ग्रामीण अंचलों में देखने को मिलेगा।

शायद यही वजह थी जो इस वर्ष मई माह में चीनी प्रीमियर ली खछ्यांग ने कोरोना महामारी और चीन के तनावपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के कारण वर्ष 2020 का कोई आर्थिक लक्ष्य नहीं रखा। वर्ष 1976 के बाद से चीन ने पहली बार आर्थिक मंदी का दौर देखा है जहां उसकी अर्थव्यवस्था विनिर्माण क्षेत्र में इस वर्ष जनवरी-फरवरी में 13.5 फीसदी गिरी है। 

बढ़ती बुजुर्गों की संख्या से आने वाले वर्षों में चीन में काम करने वालों की संख्या में लाखों की कमी आएगी। चीन के आने वाले समय को लेकर अर्थशास्त्रियों और समाजशास्त्रियों ने ङ्क्षचता जाहिर की है, कि चीन का जो सकारात्मक पक्ष था जिसके चलते चीन दुनिया की आर्थिक महाशक्ति बन पाया वो जनसंख्या अब गायब हो चुकी है। इससे चीन की फैक्ट्रियों में अब मजदूरी की कीमत बढ़ेगी, इससे भी ज्यादा परेशानी चीन को गैर-पारदर्शी व्यापारिक -राजनीतिक वातावरण के कारण होगी। इसे देखते हुए पहले से ही विदेशी कंपनियों ने रुख दक्षिण-पूर्वी एशिया और दक्षिण एशियाई देशों की ओर कर लिया है जैसे वियतनाम और भारत, ये दोनों देश अपनी कम मजदूरी लागत और अपने व्यापार संगत नियमों में और ढील देने के कारण विदेशी निवेशकों को आकर्षित कर रहे हैं। 

आने वाले समय में विदेशी निवेशकों के लिए चीन न तो बेहतर बाजार रहेगा और न ही सस्ते कामगारों का देश जो विनिर्माण क्षेत्र में विदेशी व्यापारियों का खर्च कम करेगा। इसका फायदा दक्षिण-पूर्वी एशियाई देश वियतनाम, थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया, मलेशिया, फिलीपींस, वियतनाम और म्यांमार उठाएंगे। इसके साथ ही भारत इस समय विनिर्माण का बड़ा खिलाड़ी बनकर उभरेगा जिसके लिए भारत की सरकारी नीतियां, अंग्रेजी भाषा को लेकर समझ और पढ़े-लिखे प्रशिक्षित सस्ते कामगार विश्व बाज़ार को उपलब्ध होंगे।


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