ब्रिटिश प्रधानमंत्री पद के लिए लड़ाई हुई गर्म

punjabkesari.in Wednesday, Jul 27, 2022 - 05:44 AM (IST)

ब्रिटिश प्रधानमंत्री पद प्राप्त करने की लड़ाई अपने पहले ही दौर में खूब गर्म हो उठी है। बोरिस जॉनसन द्वारा त्यागपत्र दिए जाने से खाली हो रही कुर्सी हासिल करने के अभिलाषी जो 2 उम्मीदवार (ऋषि सुनक और लिज ट्रस) मैदान में हैं, सोमवार रात एक टी.वी. मंच पर पहली बार आमने-सामने होने के कुछ ही क्षणों में खूब गरमा-गर्म वाकयुद्ध में उलझ गए और एक-दूसरे को गलत आर्थिक नीतियां अपनाने का दोषी ठहराने लगे। 

5 सितम्बर को सम्पन्न होने वाले ब्रिटिश प्रधानमंत्री के चुनाव के सिलसिले में इन दोनों उम्मीदवारों को एक मंच पर लाकर जनता के सम्मुख अपना-अपना पक्ष प्रस्तुत करने का अवसर देने का आयोजन किया था बी.बी.सी. ने। ऐसे टी.वी. आयोजन इस देश की चुनाव प्रणाली का एक अत्यंत महत्वपूर्ण अंग बन चुके हैं। 

टी.वी. पर होने वाले ऐसे वाद-विवादों में प्रतिद्वंद्वी अपनी-अपनी पार्टी की नीतियों, उनकी सफलताओं तथा अपनी योग्यता इत्यादि का वर्णन करते हैं और विपक्षी उम्मीदवारों की आलोचना, नुक्ताचीनी। किसी पार्टी या उम्मीदवार के प्रति श्रोताओं की विचारधारा को प्रभावित करने का यह एक ऐसा माध्यम होता है, जिसके द्वारा हर पार्टी, हर प्रवक्ता बेहतरीन प्रदर्शन करने की कोशिश करता है।

पहले ही संवाद का जिस प्रकार आरम्भ हुआ, उसने श्रोताओं को स्तब्ध कर दिया है। ऋषि और लिज दोनों एक-दूसरे पर दोषारोपण में ऐसे उलझ गए कि ‘तू-तू मैं-मैं’ की सी नौबत आ गई। एक घंटा चली इस बहस के दौरान ऐसी स्थिति 3-4 बार उत्पन्न हुई। परंतु, फिर भी दोनों ने कई अत्यंत मुद्दों पर अपने-अपने विचार रखे, जिनमें देश की आर्थिक व्यवस्था, टैक्स, ब्रिटेन का यूरोपियन यूनियन छोडऩे से उत्पन्न समस्या, महंगाई इत्यादि शामिल हैं। 

दर्शकों ने 3 बार जोरदार तालियों से ऋषि के वचनों को सराहा और लिज के कथन पर सिर्फ एक बार तालियां बजाईं। बहस के दौरान कुछ दिलचस्प और हंसने-हंसाने वाले क्षण भी आए। लिज ने ऋषि के धनवान होने, उसकी महंगे कपड़े और कीमतों जूते पहनने की आदतों पर चुटकी ली और ऋषि ने लिज के कानों के बुंदों को सराहते हुए उसके व्यक्तित्व की प्रशंसा की। 

सारे वाद-विवाद पर किसका प्रदर्शन कैसा रहा, इस पर बी.बी.सी. ने कार्यक्रम के तत्पश्चात जब जनता का मत जाना, तो ऋषि को 39 प्रतिशत और लिज को 38 प्रतिशत वोट मिले। समाचारपत्रों के अनुसार वोटों का यह प्रतिशत इस बात को दर्शाता है कि प्रधानमंत्री बनने के संघर्ष में ऋषि को अपने प्रयत्नों को भीषण रूप से तेज करना होगा। दोनों उम्मीदवारों के बीच टोरी वोटरों की पसंद का फासला तेजी से कम हो रहा है। जहां ऋषि इस दौड़ में अब तक काफी आगे थे, वहां लिज तेजी से आगे बढ़ रही हैं। 

इन दोनों में से प्रधानमंत्री कौन बनेगा, इसका फैसला करना है यूनाइटेड किंगडम के चारों प्रदेशों (इंगलैंड, वेल्स, स्कॉटलैंड और उत्तरी आयरलैंड) में बसे टोरी पार्टी के लगभग 16000 सदस्यों ने पोस्टल वोटों द्वारा। इनमें से अधिकतर वोटर वे हैं, जिनकी आयु 50 से ऊपर है और वे रहते हैं ऐसे नगरों-शहरों में, जहां पुरानी टोरी विचारधारा का प्रभाव है। इससे यह धारणा बढ़ रही है कि यह वर्ग अपने-आप को रूढि़वादी ग्रंथियों से शायद उभार नहीं पाएगा, गोरे-काले, भारतीय-अंग्रेज का प्रश्न मन में आ सकता है। 

यद्यपि अभी तक ऐसे विचार सार्वजनिक रूप से प्रकट नहीं किए गए, लेकिन जनता के सामान्य वर्गो से संपर्क रखने और उनके कल्याण, सेवा आदि के क्षेत्रों में वर्षों तक काम करने वाले अनुभवी समीक्षकों ने आशंका प्रकट की है कि टोरी वोटरों का रूढि़वादी वर्ग चुनाव परिणाम को प्रभावित कर सकता है। कुछ वृद्ध वोटरों के वीडियो सामने आए हैं, जिनमें वे यह कहते सुने गए हैं कि वर्षों जिन लोगों पर हमने राज किया, अब उन में से कोई इस मुल्क का कर्णधार बने, यह ठीक नहीं। 

ब्रिटेन में बसे भारतीयों का समर्थन निश्चय ही ऋषि को प्राप्त है, लेकिन भारतीय बड़ी संख्या में टोरी पार्टी के सदस्य नहीं कि उनका वोट इस वोटिंग में सहायक बन सके। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि सत्ताधारी टोरी पार्टी 2 भागों में बंट चुकी है। एक प्रभावशाली वर्ग ऋषि के समर्थन में सामने आ रहा है, उसी तरह लिज के पक्ष में भी। बोरिस जॉनसन भी अभी मानसिक रूप से यह स्वीकार नहीं कर पा रहे कि उन्हें गद्दी छोडऩी पड़ रही है। उन्होंने कहा है कि मैं फिर वापस आऊंगा।

उन्हें रंजिश है कि ऋषि ने जिस प्रकार त्यागपत्र दिया, उससे उन्हें अपना पद छोडऩा पड़ा। किसी को संदेह नहीं कि प्रधानमंत्री पद के इस संघर्ष में वह किस की सहायता कर रहे हैं। उनके साथियों ने टोरी मैम्बरों के हस्ताक्षर इकट्ठे करने का अभियान चला रखा है कि बोरिस जॉनसन को ही प्रधानमंत्री रहने दिया जाए। उन्होंने ऐसे 10,000 टोरी सदस्यों के हस्ताक्षरों का मांगपत्र पार्टी को प्रस्तुत किया है कि बोरिस का नाम भी बैलेट पेपर में शामिल किया जाए। वरिष्ठ टोरी नेताओं ने इस मांग को हास्यास्पद ठहराते हुए कहा है कि बोरिस को यह नहीं भूलना चाहए कि उन्हें किन परिस्थितियों और किन कारणों से गद्दी से उतारा गया है।-लंदन से कृष्ण भाटिया
 


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