घरेलू उड्डयन क्षेत्र की मूल समस्याएं दूर करनी होंगी

punjabkesari.in Tuesday, Oct 19, 2021 - 04:02 AM (IST)

सत्तर साल तक सरकारी कुप्रबंधन के बाद एयर इण्डिया वापस टाटा समूह को बेच दी गई है लेकिन उसे वापस पटरी पर लाने के लिए टाटा को मशक्कत करनी पड़ेगी। बीते समय में अपने देश में घरेलू उड्डयन की हालत गड़बड़ ही चल रही है। जैट एयरवेज बंद हो गई है, स्पाइस लगभग बंद हो गई थी, इंडिगो के प्रॉफिट में भारी गिरावट आई है और एयर इंडिया के घाटे को पूरा करने के लिए देश के नागरिकों से भारी टैक्स वसूल किया गया है। अत: घरेलू उड्डयन की मूल समस्याओं को भी सरकार को दूर करना होगा। 

मुख्य समस्या है कि अपने देश में हवाई यात्रा के रेल और सड़क के रूप में विकल्प उपलब्ध हैं, जिस कारण हवाई यात्रा लम्बी दूरी में ही सफल होती दिख रही है। जैसे दिल्ली से बेंगुलरु की रेल द्वारा ए.सी.-2 में यात्रा का किराया 2925 रुपए है जबकि एक माह आगे की हवाई यात्रा का किराया 3170 रुपए है। दोनों लगभग बराबर हैं। अंतर यह है कि रेल से यात्रा करने में 1 दिन और 2 रातों का समय लगता है और भोजन आदि का खर्च भी पड़ता है जिसे जोड़ लें तो रेल यात्रा हवाई यात्रा की तुलना में महंगी पड़ती है। हवाई यात्रा में कुल 7 घंटे लगते हैं इसलिए लम्बी दूरी की यात्रा में हवाई यात्रा सफल है। हां, यदि आपको तत्काल यात्रा करनी हो तो परिस्थिति बदल जाती है। उस समय हवाई यात्रा महंगी हो जाती है, जैसे दिल्ली से बेंगलुरु का किराया 10,000 रुपए भी हो सकता है जबकि ए.सी.-2 का किराया वही 2925 रुपए रहता है, यदि टिकट उपलब्ध हो। इसलिए तत्काल यात्रा को छोड़ दें तो लम्बी दूरी की यात्रा में हवाई यात्रा सफल है। 

इसकी तुलना में मध्य दूरी की यात्रा की स्थिति भिन्न हो जाती है। दिल्ली से लखनऊ का ए.सी.-2 का किराया 1100 रुपए है जबकि एक माह आगे की हवाई यात्रा का किराया 1827 रुपए है। रेल यात्रा में एक लाभ यह भी है कि आप इस यात्रा को रात्रि में कर सकते हैं जिससे आपका दिन का उत्पादक समय बचा रहता है, जबकि हवाई यात्रा आपको दिन में करनी पड़ती है और इसमें आपका लगभग आधा दिन व्यय हो जाता है। इसलिए दिल्ली से लखनऊ की यात्रा किराए और समय दोनों की दृष्टि से रेल द्वारा सफल है। यदि छोटी दूरी की बात करें तो दिल्ली से देहरादून रेल, सड़क और हवाई यात्रा (जिसमें हवाई अड्डा दूर होना, वहां तक पहुंचने में लगने वाला समय व बैगेज के लिए कतार में लगना शालिल है) सभी में लगभग 4-5 घंटे का समय लगता है। 

यहां एक विषय यह भी है कि अक्सर क्षेत्रीय उड़ानें लम्बी उड़ानों को जोड़ती हैं। जैसे देहरादून से दिल्ली आप एक उड़ान से आए और फिर दिल्ली से कलकत्ता दूसरी उड़ान से गए। इस प्रकार बड़े हवाई अड्डों को हब बना दिया जाता है जहां किसी एक समय तमाम क्षेत्रीय उड़ानें पहुंचती हैं और उसके कुछ समय बाद तमाम लम्बी उड़ानें निकलती हैं। ऐसा करने से क्षेत्रीय उड़ानों का देहरादून से कोलकाता या बेंगलुरु की उड़ान भरना आसान हो जाता है। लेकिन मेरा अनुमान है कि क्षेत्रीय उड़ानों में इस लम्बी दूरी की उड़ानों के यात्रियों का हिस्सा कम ही होता है जिसके कारण लम्बी दूरी की यात्रा से जोडऩे के बावजूद क्षेत्रीय उड़ानें सफल नहीं हो रही हैं। 

सरकार की नीति इस कटु सत्य को नजरअंदाज करती दिखती है। केंद्र सरकार ने 2012 में एक वर्किंग ग्रुप बनाया था जिसको घरेलू उड्डयन को बढ़ावा देने के लिए सुझाव देने को कहा गया था। ग्रुप ने कहा था कि क्षेत्रीय उड्डयन को सबसिडी दी जानी चाहिए। इसके बाद सरकार ने राष्ट्रीय घरेलू उड्डयन नीति बनाई, जिसके अंतर्गत क्षेत्रीय उड़ानों को 3 साल तक सबसिडी देनी शुरू की गई। हाल में 2018 अंतर्राष्ट्रीय सलाहकार कम्पनी डीलायट ने भी छोटे शहरों को उड्डयन के विस्तार की बात कही है। लेकिन इन सब संस्तुतियों को कुछ हद तक लागू करने के बावजूद घरेलू उड्डयन की स्थिति खराब ही रही है जैसा कि एयर इण्डिया, जैट एयरवेज, स्पाइस जैट और इंडिगो की दुरूह स्थिति में दिखाई पड़ता है। इसलिए मूलत: सरकार को अपनी उड्डयन नीति में परिवर्तन करना होगा। 

जरूरत इस बात की है कि लम्बी दूरी की उड़ानों को और सरल बनाया जाए। लन्दन में आप हवाई जहाज के उडऩे के मात्र 15 मिनट पहले हवाई अड्डे पर पहुंच कर हवाई जहाज में प्रवेश कर सकते हैं जबकि अपने यहां सिक्योरिटी इत्यादि में 1-2 घंटे लग जाना मामूली बात है। इसलिए सरकार को चाहिए कि सिक्योरिटी चैक और बैगेज को वापस पाने की व्यवस्थाओं में सुधार करे, साथ ही शहरों से दूर-दराज के इलाकों से हवाई अड्डे तक पहुंचने के लिए सड़क, मैट्रो इत्यादि की समुचित व्यवस्था करे, ताकि अपने देश में लम्बी दूरी के घरेलू उड्डयन का भरपूर विस्तार हो सके। इस दृष्टि से दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के विस्तार की योजना सही है क्योंकि इससे लम्बी दूरी की यात्राएं सरल हो जाएंगी। इस दृष्टि से एयर इण्डिया की स्थिति भी अच्छी है क्योंकि उसके पास तमाम विदेशी हवाई अड्डों में अपने विमानों को उतारने के अधिकार हैं। 

एयर इंडिया के प्रकरण से एक विषय यह भी निकलता है कि 70 साल के सरकारी प्रबंधन में इस कम्पनी की स्थिति खराब हो गई है। इसी तर्ज पर सरकारी बैंकों, इंश्योरैंस कम्पनियों, कोल इण्डिया आदि जैसी इकाइयों का समय रहते निजीकरण कर देना चाहिए, ताकि एयर इंडिया जैसी घाटे की स्थिति इन इकाइयों के समक्ष उत्पन्न न हो।-भरत झुनझुनवाला
 


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