अभी खत्म नहीं हुआ कृषि क्षेत्र का ‘खराब समय’

punjabkesari.in Monday, Mar 16, 2020 - 05:15 AM (IST)

28 फरवरी को जारी सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) के अनुमानों ने पुष्टि की कि भारत की अर्थव्यवस्था में गिरावट आ रही है। जबकि अधिकांश क्षेत्रों में यह दर्द दिखाई दे रहा था। विनिर्माण के क्षेत्र में लगातार दूसरी तिमाही में संकुचन दिखा रहा था। केवल कृषि क्षेत्र में उम्मीद की किरण नजर आ रही है जहां तीसरी तिमाही में 3.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। पूरे वर्ष के लिए भी अग्रिम अनुमान कृषि के लिए 3.7 प्रतिशत की वृद्धि दर का संकेत देते हैं जबकि विनिर्माण के लिए 0.9 प्रतिशत और निर्माण के लिए यह 3 प्रतिशत है। ये तीनों क्षेत्र मिलकर अर्थव्यवस्था में दो तिहाई से अधिक रोजगार का महत्व रखते हैं, जिनमें कृषि क्षेत्र सबसे अहम है। 

लम्बी अवधि के लिए राष्ट्रीय खातों पर एक नजर नरेंद्र मोदी सरकार के पहले 5 वर्षों के दौरान  कृषि विकास की मजबूती को दर्शाती है, जिसमें कृषि 2013-14 और 2019-20 के बीच 3.17 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ रही है। यह उल्लेखनीय है। यह देखते हुए कि व्यापक अर्थव्यवस्था में मंदी देखी जा रही है। हालांकि विभिन्न प्रकार के अन्य संकेतक बताते हैं कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था संभावित रूप से अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है, जिसमें मजदूरी वृद्धि और किसान आय गंभीर संकट पैदा कर रही है। 

राष्ट्रीय खातों और अन्य संकेतकों के बीच सम्पर्क टूटने का राज पूर्व के टूटने में छिपा है। कृषि क्षेत्र के सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़े बताते हैं  कि फसल क्षेत्र जो कुल कृषि उत्पादन का 56 प्रतिशत हिस्सा है और अधिकांश किसानों को रोजगार देता है। दो दशकों में सबसे कम 0.3 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। तुलनात्मक रूप से, यू.पी.ए. सरकारों के तहत 10 वर्षों के दौरान इस क्षेत्र में प्रति वर्ष 3.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 2013-14 और 2018-19 के बीच कृषि उप-क्षेत्र पशुधन (8.1 प्रतिशत) वानिकी (3.1 प्रतिशत) और मत्स्य पालन (10.9 प्रतिशत) में उच्च विकास दर देखी गई। यह एक पहेली है कि पशुधन के क्षेत्र में उस समय उच्च विकास देखा गया जब फसल क्षेत्र नगण्य वृद्धि का सामना कर रहा था। यह पिछले रुझानों की अवहेलना करता है और विश्वास करना भी मुश्किल है। 

फसल क्षेत्र का खराब प्रदर्शन किसानों की आय में कमी की पुष्टि करता है, जिनमें से अधिकांश निर्वाह के लिए फसलों पर निर्भर करते हैं। आश्चर्य नहीं कि वास्तविक ग्रामीण मजदूरी भी घट रही है। पिछले तीन महीनों में उम्मीदें बढ़ गई थीं क्योंकि कृषि जिंसों ने मुद्रास्फीति के दबाव के संकेत दिए थे। साथ ही खाद्य मुद्रास्फीति में दो अंकों की दर थी। कीमत संबंधी कई दबाव सरकार द्वारा अनाज की आपूर्ति के कुप्रबंधन और सब्जियों में आपूर्ति के झटके के कारण थे। ऐसी परिस्थितियों में किसानों की आय में वृद्धि नहीं हो सकती थी। इसमें से कुछ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खाद्य कीमतों में वृद्धि का परिणाम भी था। 

हालांकि अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में हाल के रुझानों से खाद्य पदार्थों की कीमतों में कमी आई है। कच्चे तेल की कीमतों में हालिया कमी के मद्देनजर इस प्रवृत्ति को बल मिलेगा। वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी के संकेत के साथ कृषि वस्तुओं की कीमतों में तेजी से गिरावट आने की संभावना है। एक दूसरा कारक जो कृषि में आय की परेशानियों को बढ़ा सकता है, वह है भारतीय खाद्य निगम के पास बड़े पैमाने पर खाद्यान्न भंडार की उपलब्धता। इससे खेत की उपज की खरीद धीमी हो सकती है। अंत में, कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण अर्थव्यवस्था में मंदी आ सकती है जिससे कृषि क्षेत्र को नुक्सान हो सकता है। इन कारकों से कृषि आय में गिरावट आने की संभावना है और घरेलू नीति में पैंतरेबाजी के लिए सीमित जगह है। लेकिन ग्रामीण मांग को पुनर्जीवित करने के लिए यह एक उपयुक्त समय है। 

पिछली बार अगस्त 2014 में तेल की कीमतों में भारी गिरावट के बाद ऐसा मौका आया था लेकिन सरकार ने इसे गंवा दिया था। इस बार, यह तेल की कीमतों में गिरावट का कुछ लाभ ग्रामीण उपभोक्ताओं को दे सकती है। इससे ग्रामीण आय बढ़ाने में मदद मिल सकती है। सरकार इस अवसर का उपयोग करती है या इसे गंवा देती है यह आने वाले महीनों में पता चलेगा। फिलहाल जो चीज अभी निश्चित दिखाई देती है, वह यह है कि ग्रामीण क्षेत्र में मंदी का दौर अभी समाप्त नहीं हुआ है।-हिमांशु   


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