कश्मीर में आतंकवादियों के इरादे सफल नहीं होंगे

punjabkesari.in Sunday, Oct 10, 2021 - 05:33 AM (IST)

आतंकवादियों ने कश्मीर घाटी में फिर से 1990 का दशक दोहराने का दुस्साहस किया है। जिस तरह श्रीनगर के विद्यालय में पहचान पत्र देखकर मुसलमानों को अलग किया गया तथा एक हिंदू शिक्षक और  वहां की सिख प्रिंसिपल को गोली मारी गई, वह कश्मीर में जारी जेहादी आतंकवाद के उसी घिनौने रूप को सामने लाती है जिसका सामना जम्मू-कश्मीर और भारत लंबे समय से करता रहा है। 

आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का हिट स्क्वायड कहलाने वाले संगठन टी.आर.एफ. यानी द रिजिस्टैंस फ्रंट, जिसने इसकी जिम्मेदारी ली, ने कहा है कि हमने छात्रों और उनके अभिभावकों को 15 अगस्त के स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम नहीं करने को कहा था। 15 अगस्त का कार्यक्रम नहीं होना चाहिए था। लेकिन शिक्षक दीपक चंद पटोली मंगोत्रिया तथा सुपिंदर कौर ने 15 अगस्त का कार्यक्रम आयोजित किया और बच्चों सहित उनके अभिभावकों को शामिल किया। इस बयान और उनके कृत्य से कल्पना की जा सकती है कि आतंकवादी कश्मीर घाटी में फिर से क्या संदेश देना चाहते हैं। 7 अक्तूबर की इस घटना से पूर्व 5 अक्तूबर को 3 और 2 अक्तूबर को दो हत्याएं आतंकवादियों ने की थीं और सब का कारण एक ही बताया है उन्होंने। वह कारण है, भारत राष्ट्र के प्रति निष्ठा। 

निश्चित रूप से 5 अक्तूबर को श्रीनगर की ही एक फार्मेसी के मालिक माखन लाल बिंद्रू की इकबाल पार्क में उनके व्यावसायिक परिसर के अंदर आतंकवादियों द्वारा  गोली मारकर हत्या की घटना से वहां रहने वाले तथा वापसी पर विचार करने वाले हिंदुओं में भय पैदा हुआ है। इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है कि कश्मीरी पंडित बिंद्रू, जो 1990 में आतंकवाद के चरम दौर में अपने समुदाय के अन्य लोगों के साथ कश्मीर से बाहर नहीं गए और जब माहौल बदल रहा है तो उनकी हत्या हो गई। पिछले कुछ दिनों में घाटी में हिंदुओं पर आतंकवादी हमले बढ़े हैं। आतंकवादी और उनको प्रायोजित करने वाला सीमा पार पाकिस्तान क्या चाहता है यह बताने की आवश्यकता नहीं। धारा 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर की स्थिति में आमूल बदलाव जेहादी आतंकवादियों तथा पाकिस्तान को सहन नहीं हो रहा। वे इस बदलाव को ध्वस्त करने के लिए जो कुछ भी कर सकते हैं करने की कोशिश कर रहे हैं। 

उनको लगता है कि अगर हमने हिंदुओं, सिखों की फिर से हत्या शुरू की तो पलायन कर गए पंडितों की वापसी का जो माहौल बना है तथा कानून में परिवर्तन के बाद भारत के अन्य जगहों से व्यवसाय और अन्य कार्यों के लिए गैर-मुस्लिम समुदाय के लोग वहां आने लगे हैं उन पर सीधा आघात लगेगा। पाकिस्तान और आतंकवादी और इनके समर्थकों की सोच यही है कि अगर कश्मीर घाटी में एक ही समुदाय यानी मुस्लिम रहें तो उनके लिए अलगाववाद भड़काना तथा पाकिस्तान के समर्थन में फिर से नारे लगवाना आदि आसान हो जाएगा। तो क्या वे अपने इस कुत्सित उद्देश्य में सफल होंगे? 

इसमें दो राय नहीं कि इन हमलों से स्थिति बिगाडऩे की कोशिश हुई है। श्रीनगर में आतंकवादी घटनाओं को अंतर्राष्ट्रीय सुॢखयां मिलती हैं। अलगाववाद और आतंकवाद के समर्थक अलग-अलग भेस में वहां छिपे हैं। वे सोशल मीडिया से लेकर अन्य माध्यमों से इसे फैलाते और दुष्प्रचार करते हैं कि कश्मीर की यही सच्ची स्थिति है। लेकिन आतंकवादी, पाकिस्तान और इनके समर्थक, सहयोगी पहले की तरह अपने लक्ष्य में कतई सफल नहीं हो सकते। पिछले 2 वर्षों में हुए परिवर्तन पर नजर रखने वाले जानते हैं कि आज का जम्मू-कश्मीर वह नहीं है जो पहले था।

बिंद्रू की हत्या के बाद उनकी डाक्टर पुत्री ने जिस तरह मीडिया के सामने सार्वजनिक रूप से आतंकवादियों को चुनौती दी, वैसी स्थिति की कल्पना क्या कुछ वर्ष पहले की जा सकती थी? सिख प्रिंसिपल की हत्या के बाद जिस ढंग से श्रीनगर में ही आक्रोश का प्रदर्शन हुआ वह भी पहले संभव नहीं था। इसके विपरीत अगर कोई आतंकवादी मारा जाता तो उसके जनाजे में हजारों की भीड़ निकलती, भारत विरोधी नारे लगाए जाते और सुरक्षा बल वहां मूकदर्शक बने रहते थे। कश्मीर के इस बदलाव ने वहां हिंदुओं, सिखों के अंदर आत्मविश्वास पैदा किया है कि अब वहां पहले वाली स्थिति लौट कर नहीं आने वाली। 

इसका संदेश कश्मीर के बाहर भी गया है। तभी तो लगातार कश्मीर में आने वाले पर्यटकों, व्यवसायियों आदि की संख्या बढ़ रही है। मोटा-मोटा आंकड़ा यह है कि जुलाई से लेकर सितंबर तक हर महीने औसत 10 से 12 लाख के बीच बाहरी लोग वहां आए हैं। बरसों से ध्वस्त वहां की आॢथक गतिविधियां पटरी पर लौट रही हैं। व्यवसायी भी वहां निवेश करने आने लगे हैं। जैसी जानकारी है करीब 26 हजार करोड़ रुपए के निवेश का एम.ओ.यू. भी हस्ताक्षरित हुआ है। इस वर्ष आतंकवाद आरंभ होने से लेकर पिछले तीन दशक से ज्यादा समय में सबसे कम घटनाएं हुई हैं। तो हमें हौसला रखना चाहिए कि आगे बढ़ चुका कश्मीर अब पीछे नहीं लौटेगा। आतंकवादी सफल नहीं होंगे। उनका काम तमाम होगा।-अवधेश कुमार
          


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