जन-चेतना एवं राजनीतिक क्रांति के सूत्रधार ताऊ देवी लाल

punjabkesari.in Wednesday, Apr 06, 2022 - 05:12 AM (IST)

जन नायक ताऊ देवी लाल पूरे राष्ट्र में विशेष तौर से उत्तरी भारत में जन चेतना व राजनीतिक क्रांति जागृत करने के एक मात्र सूत्रधार बन कर उभरे। उनका सफरनामा अल्पायु से ही ताउम्र संघर्ष व चुनौती पूर्ण मार्ग से होकर गुजरा है। 

मात्र 16 वर्ष की आयु में ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आह्वान पर अपनी शिक्षा बीच में छोड़ कर भारत छोड़ो आंदोलन में कूद पड़े और संघर्ष करते हुए अपने एकमात्र सार्वजनिक हित के लक्ष्य को साधने के लिए उन्होंने अपनी परंपरागत हजारों एकड़ कृषि भूमि भूमिहीन कामगारों व खेतीहर मजदूरों के सुपुर्द कर दी। चौधरी देवी लाल का लंबा राजनीतिक दौर सदैव जन कल्याण व राजनीतिक जनक्रांति के संघर्ष से परिपूर्ण रहा है और सत्ता में रहते हुए व सत्ता से बाहर भी जनता जनार्दन के सहयोग से अपने इन अनुकरणीय उद्देश्यों के प्रति संघर्ष करते रहे।

संयुक्त पंजाब के मुख्यमंत्री स्वर्गीय सरदार प्रताप सिंह कैरों से हरियाणा राज्य के अस्तित्व को लेकर मतभेद होने पर उनके कट्टर विरोधी बन गए व कांग्रेस से 39 साल के राजनीतिक संघर्ष के बाद पार्टी को अलविदा कह दिया और जनता जनार्दन के बीच सामाजिक जन चेतना व राजनीतिक क्रांति लाने के लिए निकल पड़े। हरियाणावासियों के हक के लिए जबरदस्त पैरवी की और स्वर्गीय प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को उनकी अलग हिंदी भाषी क्षेत्र की मांग माननी पड़ी, जिस कारण 1 नवम्बर, 1966 को हरियाणा प्रांत को अलग राज्य का दर्जा दिया गया। 1974 में वह रोड़ी (सिरसा) से विधायक चुने गए। 

1975 में प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा प्रजातांत्रिक मूल्यों व जनता के राजनीतिक अधिकारों की अनदेखी कर तानाशाही रवैये के विरुद्ध राष्ट्र के कोने-कोने में जाकर सरकार की जन विरोधी नीतियों का भंडाफोड़़ करके जनता में राजनीतिक जनक्रांति लाने के लिए पुरजोर संघर्ष किया और 19 मास तक गुडग़ांव जेल में रहे, लेकिन अपना संघर्ष जारी रखा। उनका मानना था कि राजनीतिक अधिकार संघर्ष से मिलते हैं, मांगने से नहीं। 

जन साधारण के सहयोग व संघर्ष से राजनीतिक क्रांति लाकर वर्ष 1977 में जनता पार्टी के हरियाणा में एकमात्र नेता उभर कर आगे आए और शेरे हरियाणा के नाम से प्रसिद्ध हुए व मुख्यमंत्री बने। विधानसभा की 90 सीटों में से 85 सीटों पर विजय प्राप्त की, जिनमें से 17 आरक्षित सीटों पर विभिन्न वर्गों के उम्मीदवारों को विजय दिलवाई और लोकसभा की सभी 10 सीटों पर जीत हासिल की। अपने शासनकाल में जनसाधारण के लिए कल्याणकारी नीतियों व राजनीतिक जागरूकता को विशेष तौर से जारी रखा और जनहित के लिए अनेकों कल्याणकारी योजनाएं शुरू कीं, जिनका आज समस्त राष्ट्र में अनुकरण किया जा रहा है। 

वर्ष 1982 में कांग्रेस की भ्रष्ट व खरीद-फरोख्त की राजनीति की वजह से उनका मुख्यमंत्री का पद छीन लिया गया, लेकिन 1987 के चुनाव में भ्रष्ट राजनीतिज्ञों को करारा जवाब देकर विधानसभा की 85 सीटें जीत कर एक ऐतिहासिक मिसाल कायम करते हुए कांग्रेस का सफाया किया और मुख्यमंत्री बने। उनकी एक विशेष कल्याणकारी सोच थी कि राष्ट्र के विकास व कल्याणकारी जनक्रांतिकारी राजनीतिक व्यवस्था के लिए किसान का बेटा प्रधानमंत्री व दलित का बेटा राष्ट्रपति होना आवश्यक है। 

वर्ष 1987 में राजस्थान के सीकर व हरियाणा में रोहतक से एक साथ सांसद चुने गए और देश के उप प्रधानमंत्री रहे। राष्ट्र में नई राजनीतिक जनक्रांति लाने व जन साधारण के लिए कल्याणकारी व निष्पक्ष सत्ता स्थापित करने के लिए प्रधानमंत्री पद की पेशकश को ठुकराकर स्वर्गीय वी.पी. सिंह व बाद में स्वर्गीय चंद्रशेखर को प्रधानमंत्री बनवाकर नि:स्वार्थ व त्याग की ऐतिहासिक मिसाल पेश की और किंगमेकर कहलाए। उनका यह मानना था कि सत्ता सुख भोगने के लिए नहीं, अपितु जनकल्याण को समर्पित होनी चाहिए। 

उन्होंने ग्रामीण पृष्ठभूमि के हर वर्ग के व्यक्ति को राजनीति में प्रवेश करवाकर सभी वर्गों को एक मंच पर लाकर क्रांतिकारी राजनीति का श्रीगणेश किया और उपेक्षित हो रहे किसान, कामगार, काश्तकार वर्ग को अपने हितों की पैरवी करने के लिए राजनीति में उभरकर आने को प्रेरित किया। उन्होंने कभी भी जातिवाद, छल-कपट व भेदभाव की राजनीति नहीं की। उनकी स्पष्टवादिता व निष्पक्षता का उनके विरोधी भी लोहा मानते थे। वह कहते थे कि मुझे जब भी नीचा दिखाने की कोशिश की गई, मैं अपनी असली ताकत, जो भारत के ग्रामीण लोगों में निहित है, से अधिक ताकतवर होकर उभरा हूं। उनकी यह अहम क्रांतिकारी सोच थी कि ‘लोकराज लोकलाज से चलता है’। 

अपनी जन कल्याणकारी व जनक्रांतिकारी सोच की बदौलत उन्होंने अपने शासनकाल में हरियाणा में कृषि व किसानी पर आधारित सभी जातियों के शैक्षणिक व आर्थिक विकास के लिए जस्टिस गुरनाम सिंह आयोग की स्थापना की और जाट, जट-सिख, रोड़, त्यागी, बिश्नोई, मेव, सैनी, गुर्जर व राजपूत 9 जातियों को ओ.बी.सी. में आरक्षण दिलवाया, जोकि उनकी निष्पक्षता व सर्वजन कल्याणकारी छवि को स्पष्ट करता है। 

ताऊ देवी लाल एक ऐसी अद्वितीय प्रतिभा के स्वामी थे जो आज किसी नेता के पास नहीं है। वह हरेक के दुख को अपनाकर उसकी भरपूर मदद करते थे और हर समस्या की जड़ तक जा कर उसका निवारण करते थे। बहुत से दिग्गज नेताओं ने उनकी तरह बनने के प्रयास किए परन्तु विफल रहे, क्योंकि वह मसीहा देवी लाल की तरह उनसे मन से नहीं जुड़ पाए।

नि:संदेह यह बहुत गर्व एवं सम्मान की बात है कि चौधरी देवी लाल एक ऐसी अकाल्पनिक एवं अद्भुत प्रतिभा के स्वामी थे जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन जनता जनार्दन के मूल अधिकारों के हित की लड़ाई के लिए समर्पित कर दिया तथा सदैव उनके मार्गदर्शन के लिए संघर्षशील रहते थे। ऐसा करते-करते 6 अप्रैल, 2001 को संघर्षशील धरतीपुत्र चौधरी देवी लाल की आत्मा पवित्र धरती में विलीन हो गई।-डा. महेन्द्र सिंह मलिक(पूर्व पुलिस महानिदेशक, हरियाणा)


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