चीन को किनारे कर ताईवान ने भारत की मदद से अंतरिक्ष में भेजा अपना उपग्रह

punjabkesari.in Sunday, Mar 06, 2022 - 05:50 AM (IST)

चीन की नीतियों के चलते न सिर्फ वैश्विक शक्तियां, बल्कि उसके पड़ोसी देशों में चीन के विरुद्ध भारी असंतोष फैल गया है। ये सभी देश चीन से दूर होते जा रहे हैं, ऐसे में वे या तो अमरीका और यूरोपीय संघ का हाथ थाम रहे हैं या उन ताकतों के साथ हाथ मिला रहे हैं, जो चीन के विरुद्ध हैं और प्रगतिशील तरीके से काम कर रहे हैं। चीन के पड़ोसी देश ताईवान की बात करें तो चीन उसे हमेशा धमकाता रहता है लेकिन ताईवान लगातार विज्ञान के क्षेत्र में तरक्की करता जा रहा है। 14 फरवरी को भारत ने जो उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे, उनमें एक उपग्रह ताईवान का भी शामिल था। भारत ने पी.एस.एल.वी.सी-52 के माध्यम से अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट यानी ई.ओ.एस.-04 भेजा है। इसके अलावा 2 अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के उपग्रह भी अंतरिक्ष में भेजे गए हैं। इन्हें आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से भेजा गया है। 

2 अंतर्राष्ट्रीय उपग्रहों में से एक ताईवान का है। ताईवान वर्ष 2018 से भारत के अंतरिक्ष संस्थान इसरो के साथ मिलकर काम करना चाहता था, क्योंकि दोनों देशों में अंतरिक्ष अभियान, उपग्रहों को लेकर बहुत संभावनाएं मौजूद हैं। पी.एस.एल.वी. के सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में लांच होने के बाद ताईवान के मीडिया ने खबर जारी कर दुनिया को बताया कि इस बात से ताईवान की जनता कितनी खुश है। इसके साथ ही वहां के मीडिया ने यह भी बताया कि यह ऐतिहासिक है क्योंकि पहली बार भारत ने ताईवानी उपग्रह को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया है। ताईवान को इस बात की जानकारी है कि इसरो आज अंतरिक्ष के क्षेत्र में दुनिया के अग्रणी संस्थानों में शामिल है। 

इंस्पायरसैट-1 को तैयार करने में ताईवान की सैंट्रल यूनिवर्सिटी की बड़ी भूमिका है। यह उपग्रह 8-9 किलोग्राम का है और छोटे उपग्रह की श्रेणी में आता है। इसे तैयार करने में ताईवान के शोधकत्र्ताओं के अलावा अमरीका और सिंगापुर के विशेषज्ञों का हाथ था। भारत और ताईवान की यह छोटी-सी, लेकिन ऐतिहासिक शुरूआत है। आने वाले समय में भारत और ताईवान के बीच अंतरिक्ष के क्षेत्र में सहयोग और भी बढ़ेगा, जिसके तहत भारत द्वारा और बड़े और जटिल उपकरणों वाले उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे जाएंगे। अभी तक ताईवान अंतरिक्ष के क्षेत्र में अमरीका पर निर्भर था लेकिन अब उसने भारत का हाथ पकड़ा है। ताईवान जिस भौगोलिक स्थिति में है, वहां समय-समय पर समुद्री तूफान आते रहते हैं, जिन्हें टाईफून कहते हैं। इससे वहां प्राकृतिक और मानव निर्मित संसाधनों का बड़ा नुक्सान होता है। ताईवान को अभी तक इस बारे में जानकारी के लिए अमरीका पर निर्भर रहना पड़ता था लेकिन अब उसने अपनी निर्भरता अमरीका पर कम करने का काम किया है। 

अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत के इसरो और ताईवान सैंट्रल यूनिवर्सिटी के बीच यह पहला सहयोग है। उपग्रह प्रक्षेपण से कुछ दिन पहले ही ताईवान के विदेश मंत्री ने भारत के बारे में एक बयान भी दिया, जो ज्यादा चर्चा में नहीं है, लेकिन महत्वपूर्ण है। ताईवान के विदेश मंत्री जोसेफ वू ने कहा है कि ताईवान की जनता दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत को जानती है और उसका आदर करती है, जो हर तरह की चुनौती का डटकर सामना करता है। ताईवान, यूरोप, अमरीका समेत पूरी दुनिया ने देखा है कि अगर चीन के सामने कोई एक देश निडरता के साथ खड़ा है तो वह भारत है, जिसने चीन की आक्रामक नीति को करारा जवाब दिया है, जिसकी वजह से चीन इस समय सांप-छछूंदर की स्थिति में फंस गया है। भारत ने दिखा दिया है कि अगर चीन अपनी शक्ति का गलत उपयोग करेगा तो भारत उसको सबक जरूर सिखाएगा। इन सारी बातों को लेकर ताईवान की जनता के बीच आज भारत का सम्मान बना हुआ है। 

भारत ताईवान के उपग्रह को अपने प्रक्षेपण यान से अंतरिक्ष में पहुंचाए और ताईवान के मीडिया में भारत की प्रशंसा हो तथा चीन चुप रहे, ऐसा हो नहीं सकता। चीन ने भी अपने  मीडिया के जरिए इस पूरे घटनाक्रम की बुराई की है। भारत में चीन के दूतावास से जारी एक बयान में कहा गया है कि भारतीय मीडिया ताईवान की आजादी की बात कर के बहुत गलत कर रहा है और ताईवान के राजदूत को भारत क्यों बुला रहा है, उसे ऐसा नहीं करना चाहिए। दरअसल भारत के ताईवान के इतना करीब आ जाने से और उसकी मदद करने से चीन बुरी तरह सुलग रहा है। पूरे एशिया में ताईवान के साथ जापान को छोड़ कर कोई और देश खड़ा नहीं हो सकता, लेकिन भारत ने यह हिम्मत दिखाई है तो चीन को करारा जवाब मिल गया है। 

भविष्य में अंतरिक्ष के साथ-साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत और ताईवान के बीच बड़ी संभावनाएं मौजूद हैं। दोनों देश चीन की परवाह किए बिना अब खुल कर एक-दूसरे से सीखने और एक-दूसरे की मदद करने के लिए आगे आए हैं। एक तरफ जहां ताईवान विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में अमरीका पर अपनी निर्भरता कम कर दूसरे देशों का हाथ पकड़ रहा है, वहीं भारत भी ताईवान का साथ देकर स्वदेशी तकनीक में और प्रगति करना चाहता है। इससे दोनों देशों को साथ-साथ आगे बढऩे का अवसर मिलेगा।


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