हैरानीजनक था कारगिल युद्ध में बहादुरी का प्रदर्शन

punjabkesari.in Tuesday, Aug 03, 2021 - 07:16 AM (IST)

पिछले दिनों 26 जुलाई को हमने कारगिल विजय दिवस मनाया जो 1999 में कारगिल क्षेत्र में भारत की सशस्त्र सेनाओं द्वारा पाकिस्तानी सेना के विरुद्ध युद्ध के दौरान ‘आप्रेशन विजय’ की चमत्कारी जीत की याद ताजा करवाता है। इस युद्ध के दौरान देश के 527 अधिकारियों तथा जवानों ने बलिदान दिया और 1363 घायल भी हुए। अपने योद्धाओं का सम्मान करते हुए राष्ट्र ने शूरवीरों को 4 परमवीर चक्र, 10 महावीर चक्र, 55 वीर चक्र तथा अनेकों वीरता पुरस्कारों तथा तमगों से नवाजा। यह हैरानीजनक तथा असाधारण दास्तान उन वीर योद्धाओं की है जिन्होंने लड़ाई में अपना अद य साहस दिखाते हुए बहादुरी की मिसाल कायम की। 

कैप्टन विक्रम बत्तरा ‘पी.वी.सी.’ मरणोपरांत (13 जैक राइफल्स) : 13 जैक राइफल्स ने द्रास सब सैक्टर (कारगिल) में 14 जून, 1999 को प्रवेश किया। पलटन को तोलोङ्क्षलग के साथ लगता प्रभावी प्वाइंट 5140 पर कब्जा करने का आदेश दिया गया। हमला 15 जून रात 9 बजे शुरू हुआ। दुश्मन की ओर से भारी गोलाबारी के कारण सफलता प्राप्त नहीं हुई। एक बार फिर 20 जून को ‘डी’ क पनी को इस प्रबल पहाड़ी पर हमला बोलने को कहा गया। कैप्टन विक्रम बत्तरा ने सबसे आगे होकर अपने जवानों का प्रभावशाली नेतृत्व किया और उन्हें प्रोत्साहित करते हुए बेधड़क प्वाइंट 5140 पर डटे हुए दुश्मन पर कूद पड़ा। अपनी जान की परवाह न करते हुए आधुनिक हथियारों से लैस दुश्मन से मुठभेड़ के दौरान 4 दुश्मनों को अपनी ए.के. 47 राइफल्स से मार डाला। 

एक बार फिर 7 जुलाई 1999 को मशकोह घाटी में 13 जैक राइफल्स को तंग पहाड़ी वाले प्वाइंट 4875 के उत्तरी हिस्से पर हमला करने के लिए चुना गया। कैप्टन बत्तरा ने फिर वालंटियर होकर पथरीली पर्वत श्रेणी की चोटी पर हमला बोल दिया और दुश्मन के साथ हाथापाई करते हुए 5 घुसपैठियों को मौत के घाट उतार दिया। 

इस मुठभेड़ के दौरान कैप्टन बत्तरा बुरी तरह से घायल हो गए मगर अपनी जान की परवाह न करते हुए दुश्मन के दूसरे कैंप के नजदीक पहुंच कर उसमें हथगोले फैंके और अपनी ए.के. 47 राइफल से घुसपैठियों पर फायरिंग करता रहा। उसकी उच्च कोटि की बहादुरी तथा हि मत को देखते हुए उसकी क पनी के सिपाही भी दुश्मन से बदला लेने की भावना से आगे बढ़ते हुए दुश्मन को खदेड़ते चले गए और आखिर में अपने लक्ष्य को हासिल करके देश तथा सेना का नाम रोशन किया। 

ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव पी.वी.सी. (18 ग्रेनेडियर) : ग्रेनेडियर योङ्क्षगद्र सिंह यादव 18 ग्रेनेडियर की घातक पलटून के सबसे आगे लगने वाली टीम का सदस्य था जिसे 4 जुलाई, 1999 को 16,500 फुट ऊंची ‘टाइगर हिल’ (द्रास सब सैक्टर कारगिल) पर कब्जा करने का कार्य सौंपा गया। उसने स्वेच्छा से सबसे आगे होकर खड़ी चढ़ाई वाली बर्फीली, पथरीली पहाड़ी पर चढ़ कर सबसे पहले रस्सा बांधा ताकि उसके बाकी साथी आसानी से ऊपर पहुंच सकें। 

हैरान-परेशान दुश्मन ने जब पाया कि घातक पलटून के शूरवीरों ने अत्यंत मुश्किल तरफ से उनकी ओर बढऩा शुरू कर दिया है तो पाकिस्तानियों ने भारतीय हमलावरों पर ग्रेनेड फैंकते हुए स्वचालित आधुनिक हथियारों से फायरिंग शुरू कर दी जिस कारण यादव का टीम लीडर तथा एक जवान शहादत का जाम पी गए तथा एडवांस रुक गया। स्थिति की गंभीरता को समझते हुए यादव ने दुश्मन की ओर रेंगना शुरू कर दिया। जैसे-जैसे वह आगे बढ़ता जा रहा था वैसे-वैसे दुश्मन द्वारा गोलीबारी और तेज होती गई मगर घावों की परवाह न करते हुए उसने दुश्मन के बंकर के नजदीक पहुंच कर उसमें गोले फैंक कर अपनी राइफल से फायरिंग भी शुरू कर दी तथा 4 पाकिस्तानियों को मार गिराया। 

इस अवसर पर पाकिस्तानी सेना ने हमारे तेजी से आगे बढ़ रहे सैनिकों पर जवाबी हमला बोल दिया जिस कारण जोगिंद्र के कुछ अन्य साथी मारे गए जिस कारण वह भड़क उठा। अपनी बाजू को बैल्ट से बांध कर टांग से बहते खून की परवाह न करते हुए वह आग की तरह दुश्मनों के दूसरे कैंप पर टूट पड़ा तथा हथगोले फैंकते हुए उनके दूसरे बंकर पर कब्जा कर लिया। एक बार फिर उसे गोलियां लगीं मगर उसने पीछे हटने से इंकार कर दिया। उसकी हिम्मत तथा बदला लेने की भावना से प्रभावित होकर उसके बाकी साथी भी उत्साह से आगे बढ़ते गए। जबरदस्त मुकाबले के बाद आखिरकार सफलता ने पलटन के पांव चूमे। 

ग्रेनेडियर जोगिंद्र सिंह यादव के दृढ़ निश्चय, देश तथा पलटन के प्रति भावना, न दबने वाले जज्बे तथा उच्चकोटि की बहादुरी को मुख्य रखते हुए राष्ट्रपति ने उसे देश के सबसे बड़े वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया।-ब्रिगे. कुलदीप सिंह काहलों (रिटा.)


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