पंचायती राज की सफलता हमारे व्यवहार पर निर्भर

punjabkesari.in Sunday, Apr 24, 2022 - 06:38 AM (IST)

जब पी.वी. नरसिम्हा राव सरकार ने 24 फरवरी, 1992 को संविधान के 73वें संशोधन द्वारा पंचायती राज कानून पारित किया, जो इसके एक वर्ष बाद 24 अप्रैल, 1993 को लागू हुआ तो इसे स्थानीय स्वशासन प्रणाली की दृष्टि से लोकतांत्रिक अहिंसक क्रांति नाम दिया गया। 

वास्तव में आजाद भारत की सबसे बड़ी विडंबना थी कि महात्मा गांधी को स्वतंत्रता आंदोलन का अपना नेता घोषित करने के बावजूद आजादी के बाद शासन में आई सरकार ने ग्राम स्वराज के उनके सपने को संविधान के तहत अनिवार्य रूप से संपूर्ण राष्ट्र में साकार करने का कदम नहीं उठाया। पंडित जवाहर लाल नेहरू के शासनकाल में ही 1957 में बलवंत राय मेहता समिति ने जिस त्रिस्तरीय पंचायत प्रणाली की अनुशंसा की, उसके अनुसार गांव में ग्राम पंचायत, प्रखंड स्तर पर पंचायत समिति और जिला स्तर पर जिला परिषद को तभी संविधान का अनिवार्य भाग बना दिया जाना चाहिए था। उसने विकेंद्रित लोकतंत्र शब्द भी प्रयोग किया। 

1992 का संशोधन ही था, जिसके तहत पंचायतों को कुल 29 विषयों पर काम करने का संवैधानिक अधिकार मिला। इस व्यवस्था ने 29 वर्ष पूरे कर 30वें वर्ष में प्रवेश किया है। किसी भी व्यवस्था के मूल्यांकन के लिए इतना समय पर्याप्त है। प्रश्न है कि क्या हम पंचायत प्रणाली की वर्तमान स्थिति को संतोषजनक मान सकते हैं? 

आज दुनिया के विकसित देश औपचारिक रूप से यह मानने को विवश हैं कि भारत जैसे विशाल और विविधता वाले देश में पंचायती राज के माध्यम से सत्ता को नीचे तक पहुंचाने का काम अद्भुत है। विकसित देशों में विश्व का शायद ही कोई महत्वपूर्ण विश्वविद्यालय, शोध संस्थान या थिंकटैंक हो, जो सत्ता के विकेंद्रीकरण या निचले स्तर पर स्वायत्तता के बारे में अध्ययन या विचार करते समय भारत की पंचायती प्रणाली का उल्लेख न करे। इस आधार पर स्वाभाविक निष्कर्ष यही निकलेगा कि अगर विश्व में इस व्यवस्था ने धाक जमाई है तो निश्चित रूप से सफल है। 

जाति और लिंग के आधार पर सत्ता में भागीदारी की दृष्टि से विचार करें तो इसने समानता के सिद्धांत को साकार किया है। 1992 के संशोधन में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण था, जिसे बाद में 50 प्रतिशत कर दिया गया। यानी इस समय करीब 2.6 लाख ग्राम पंचायतों में आरक्षण के अनुसार सत्ता की आधी बागडोर महिलाओं के हाथों में है। दूसरे, दलितों, आदिवासियों, पिछड़ी जातियों एवं अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधियों की संख्या 80 प्रतिशत से ज्यादा है। इस तरह कहा जा सकता है कि पंचायती राज ने सामाजिक समानता को मनोवैज्ञानिक स्तर पर स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 

किंतु यह एक पक्ष है। इसके दूसरे पक्ष चिंताजनक और कई मायनों में डरावने हैं। सत्ता यदि शक्ति, संपत्ति और प्रभाव स्थापना का कारक बन जाए तो वह हर प्रकार की मानवीय विकृति का शिकार होती है। हालांकि लोकसभा और विधानसभाओं के अनुरूप शक्ति का विकेंद्रीकरण तुलनात्मक रूप से पंचायती राज में कम है। इसके बावजूद पंचायती राज के तीनों स्तरों के अधिकार और कार्य विस्तार के साथ जितने काम आए और उसके अनुरूप संसाधनों में बढ़ौतरी हुई, उसी अनुरूप इनके पदों पर निर्वाचित होने की लालसा भी बढ़ी। पैसे के साथ-साथ ताकत का बोलबाला भी है और जातीय समीकरण तो है ही। 

विकास और कल्याण की शायद ही कोई योजना है जिसमें भ्रष्टाचार नहीं हो। राशि  बेशक लाभार्थी के खाते में सीधे जाती है, चाहे प्रधानमंत्री आवास योजना हो या स्वच्छता के तहत शौचालय या ऐसी कोई योजना, वार्ड प्रतिनिधि तक हस्ताक्षर करने के एवज में कमीशन लेते हैं। मनरेगा भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा कार्यक्रम बन चुका है। एक बार निर्वाचित होने के बाद सत्ता, शक्ति, संपत्ति और प्रभाव का स्वाद मिल जाने के बाद सामान्यत: कोई पद जाने देना नहीं चाहता। राशन वितरण में बायोमैट्रिक प्रणाली ने चोरी और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया है लेकिन गांव में अच्छी खेतीबाड़ी करने वाले खुशहाल परिवार भी सस्ते अनाज लेते हैं। जानते हुए भी ग्राम प्रधान उस पर रोक नहीं लगाते क्योंकि मामला वोट का है। स्वयं सोचने वाली बात है कि क्या भारत में आज भी 80 प्रतिशत लोगों को मुफ्त राशन की आवश्यकता है? 

कुछ-कुछ जगहों में अपने स्तर पर अवश्य संस्कार और चरित्र से निर्वाचित ग्राम प्रधानों, मुखियाओं और सरपंचों ने बेहतर कार्य से व्यवस्था को आकर्षक बनाया है। इनकी संख्या काफी कम है। पंचायतों की कुछ व्यवस्था तो ठीक से लागू ही नहीं है। उदाहरण के लिए न्याय पंचायत। अगर न्याय पंचायतें कल्पना के अनुरूप सही ढंग से लागू हो तो न्यायालय में बढ़ते मुकद्दमों का बोझ काफी हद तक कम हो जाए। ऐसा तभी संभव होगा जब समाज के अंदर अपने दायित्व और उससे संबंधित नैतिक चेतना तथा भावी पीढ़ी के भविष्य संवारने का वास्तविक बोध हो। वास्तव में यही किसी व्यवस्था की सफलता का मूल है।-अवधेश कुमार


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News