दलबदल पर रोक लगाने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत

punjabkesari.in Tuesday, Jun 14, 2022 - 05:47 AM (IST)

देश में सख्त दल-बदल विरोधी कानूनों के बावजूद चुनाव तथा दल-बदल साथ-साथ चलते हैं। सभी कानून अप्रभावी साबित होते हैं क्योंकि विधायक धन तथा पद की ओर आकर्षित होते हैं। कानून निर्माता अपने फायदे के लिए कानूनों में खामियां ढूंढ देते हैं और उनका उल्लंघन करते हैं। 

गत सप्ताह के राज्यसभा चुनावों में राजस्थान की भाजपा विधायक शोभा रानी कुशवाहा, कांग्रेस के हरियाणा से विधायक कुलदीप बिश्रोई तथा जद (एस) के कर्नाटक से विधायक श्रीनिवास गौड़ा इसके उत्कृष्ट उदाहरण हैं। यहां तक कि कड़े कानूनों के बावजूद राष्ट्रपति तथा उप-राष्ट्रपति के चुनावों में भी क्रॉस वोटिंग होती है। 

उप-राष्ट्रपति एम.वेंकैया नायडू ने हाल ही में कहा था कि खामियों को दूर करने के लिए दल-बदल विरोधी कानून में संशोधन किए जाने की जरूरत है। नायडू, जो राज्यसभा के चेयरमैन भी हैं, ने कहा कि दल-बदल विरोधी मामलों पर निर्णय लेने के लिए स्पीकर अथवा राज्यसभा के चेयरमैन के लिए समय-सीमा को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है। नायडू ने कहा, ‘दल-बदल विरोधी कानून में कुछ खामियां हैं। ये बड़ी संख्या में दल-बदल को सक्षम बनाती हैं। मगर खुदरा दल-बदल की इजाजत नहीं है। इन खामियों को दूर करने के लिए संशोधनों की जरूरत है।’ 

उप-राष्ट्रपति की टिप्पणी महत्वपूर्ण है क्योंकि चुने हुए प्रतिनिधि दशकों से पार्टी बदलने की युक्तियों से जानकार हैं। दल-बदल करने वाले कानून निर्माताओं ने दसवीं अनुसूची में दर्ज प्रतिबंधों से बचने का रास्ता खोज लिया है। औपचारिक तौर पर ‘दल-बदल’ करने अथवा विश्वासमत पर अपनी पार्टी के खिलाफ वोटिंग करने की बजाय वे पार्टी से इस्तीफा दे देते हैं। उनमें कुछ उप-चुनाव में वापस लौट आते हैं। 

अतीत में इस तरह के कुछ अनोखे मामले सामने आए हैं। हरियाणा में एक आजाद विधायक गया लाल सबसे पहले 1967 में कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए, शाम तक वह संयुक्त मोर्चा में चले गए और 9 घंटों के भीतर ही वह फिर से कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। और तो और, एक पखवाड़े के भीतर ही वह संयुक्त मोर्चा में लौट आए। राजनीतिक क्षेत्रों में इस मामले को ‘आया राम, गया राम’ के तौर पर जाना जाता है। 

2003 के संशोधित कानून में राजनीतिक वफादारियां बदलने के लिए जुर्माने का उल्लेख किया गया, सदस्यता से वंचित करना तथा मंत्री बनने पर रोक लगाने का प्रावधान था। अदालतों में कई बार इस कानून के खिलाफ मुकद्दमे लड़े गए। दल-बदल विरोधी कानून के अंतर्गत प्रत्येक राजनीतिक दल को अंसतोष  अथवा एक वैकल्पिक  विचार को दबाने के लिए असीमित शक्तियां दी गई हैं। हालांकि कई राज्यों में हालिया घटनाक्रमों ने दिखाया है कि इसने दल-बदल पर कोई रोक नहीं लगाई। अपने सदस्यों को साथ रखने के लिए राजनीतिक दल आमतौर पर रिजॉर्ट पॉलीटिक्स खेलते हैं जिसके अंतर्गत उन्हें किसी न किसी रिजॉर्ट में रखा जाता है और कई बार राज्य के बाहर भी।

दल-बदलुओं ने यह रुझान कई बार दिखाया है-राजस्थान (2020), महाराष्ट्र (2019), कर्नाटक (2019 व 2018) तथा तमिलनाडु (2017)। मार्च 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया तथा 22 कांग्रेस विधायकों ने इस्तीफा दे दिया जिसके परिणामस्वरूप मध्यप्रदेश में सरकार बदल गई। राजस्थान में 6 बसपा विधायकों ने अपनी पार्टी का कांग्रेस के साथ विलय कर दिया और सिक्किम में 2019 में सिक्किम डैमोक्रेटिक फ्रंट के 15 विधायकों में से 10 भाजपा में शामिल हो गए। यह सूची काफी लम्बी है। 

आलोचकों का कहना है कि कानून का मेन मुद्दा प्रिजाइडिंग ऑफिसर के पास दल-बदल विरोधी याचिकाओं पर निर्णय लेने के पूर्ण अधिकार का शुरू में प्रिजाइङ्क्षडग आफिसर का निर्णय न्यायिक समीक्षा का विषय नहीं था। 1992 में सुप्रीमकोर्ट ने यह शर्त हटा दी। शीर्ष अदालत ने जुलाई 2019 में फिर दखल दिया जब कांग्रेस के 10 विधायक तथा महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी के 2 विधायक दल-बदल करके भाजपा में शामिल हो गए और उन्हें मंत्री पद देकर पुरस्कृत किया गया। अदालत ने 2020 में दल-बदल विरोधी मामलों पर निर्णय लेने के लिए अधिकतम 3 महीनों का समय निर्धारित किया था। 

कानूनों में खामियों को कैसे दूर किया जा सकता है? अतीत में विशेषज्ञ समितियों ने सुझाव दिया था कि प्रिजाइङ्क्षडग ऑफिसर जो आमतौर पर सत्ताधारी पार्टी का सदस्य होता है, की बजाय किसी दल-बदलु को अयोग्य घोषित करने का निर्णय लेने का अधिकार एक स्वतंत्र एजैंसी को दिया जाना चाहिए। यद्यपि राजनीतिक दलों ने इस बदलाव का विरोध किया, मुख्य रूप से केंद्र तथा राज्यों में सत्तासीन पार्टियों ने। 

हॉर्स-ट्रेडिंग के जारी रुझान को देखते हुए संसद को नए सिरे से कानून पर नजर डालने की जरूरत है। हालिया समय में सुप्रीमकोर्ट ने भी व्यवस्था दी कि ‘यही समय है कि संसद को पुनॢवचार करना चाहिए कि क्या अयोग्य घोषित करने की याचिकाएं स्पीकर को सौंपनी चाहिएं जो एक विशेष राजनीतिक दल के साथ संबंधित होता है। संसद को 10वीं अनुसूची के अंतर्गत अयोग्यता से संबंधित विवादों को हल करने के लिए मध्यस्थ के तौर पर लोकसभा के स्पीकर तथा विधानसभाओं के बदलाव को लेकर संविधान में संशोधन पर विचार करना चाहिए।’ 

गत सप्ताह राष्ट्रपति के लिए चुनावों की घोषणा की गई और क्रॉस वोटिंग को लेकर आशंकाएं बनी हुई हैं। बेहतरीन तरीका यह है कि कानून को सुधारा जाए। दल-बदल करने वालों पर एक उचित समय के लिए सार्वजनिक पद ग्रहण करने पर रोक लगानी चाहिए तथा दल-बदलु द्वारा किए गए मतदान को अयोग्य माना जाना चाहिए। मतदाताओं को किसी प्रतिनिधि को वापस बुलाने का अधिकार भी होना चाहिए। रिजॉर्ट पॉलीटिक्स पर भी प्रतिबंध लगना चाहिए। 

परास्त कांग्रेस से बड़े पैमाने पर विधायकों का विजेता पार्टियों की ओर बहिर्गमन दल-बदल विरोधी कानून के लिए कोई सम्मान नहीं दर्शाता। जब तक देने और लेने वाले मौजूद हैं, दल-बदल नहीं रुकेगा। जरूरत है दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति की तथा सभी पार्टियों को एक साथ होकर नए सिरे से कानून पर नजर डालनी होगी।-कल्याणी शंकर


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