‘भ्रष्ट’ बाबुओं को कड़ा ‘संदेश’

punjabkesari.in Thursday, Sep 03, 2020 - 05:26 AM (IST)

पारदर्शिता तथा भ्रष्ट अधिकारियों को बाहर निकालना मोदी सरकार का सबसे बड़ा थीम है तथा बाबुओं के पीछे हटने के बावजूद सरकार ने अपने इस लक्ष्य को आगे बढ़ाया है। पिछले वर्ष सरकार ने आई.आर.एस. तथा आई.टी. सेवाओं से संबंधित ऐसे दर्जनों अधिकारियों की सूची बनाई थी जिन पर भ्रष्टाचार, यौन उत्पीडऩ तथा अन्य आरोप लगे थे। 

मुहिम निरंतर जारी है
अब भ्रष्ट तथा अयोग्य बाबुओं को बाहर का रास्ता दिखाने के तहत मोदी सरकार ने फिर से यह बात दोहराई है कि केंद्रीय मंत्री तथा विभाग लगातार अपने उन अधिकारियों की सूची को अपडेट करें जिन्होंने अपनी सेवाकाल के 30 वर्ष पूरे कर लिए हैं। इसके अलावा शंका वाले अधिकारियों के रजिस्टर की निरंतर समीक्षा की जाएगी। इससे ऐसे बाबुओं की पहचान होगी जिन्हें समय से पूर्व उनकी सेवा से रिटायर कर दिया जा सकता है। सूत्रों के अनुसार इस संबंध में 28 अगस्त को डिपार्टमैंट ऑफ परसोनल एंड ट्रेनिंग (डी.ओ.पी.टी.) ने एक पत्र जारी किया  था। यह स्पष्ट है कि अब ऐसे अधिकारियों के नामों को समीक्षा कमेटियों के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा जोकि एक रूटीन कार्य होगा। आई.ए.एस., आई.पी.एस., आई.एफ.एस. तथा रेलवे कैडर के बाबुओं के बारे में मामले डी.ओ.पी.टी., गृह मंत्रालय, भारतीय विदेश मंत्रालय तथा सैंट्रल रेलवे बोर्ड द्वारा क्रमानुसार विचारे जाएंगे। क्या ऐसे भ्रष्ट बाबुओं को कड़ा संदेश जाएगा? 

सी.बी.डी.टी. प्रमुख को मिला एक्सटैंशन
सैंट्रल बोर्ड ऑफ डायरैक्ट टैक्सिज (सी.बी.डी.टी.) के चेयरमैन प्रमोद चंद्र मोदी ने अपने सेवाकाल में 6 माह की एक्सटैंशन पाई है जोकि 28 फरवरी 2021 को खत्म होगी। 1982 बैच के सेवानिवृत्त आई.आर.एस. अधिकारी मोदी 31 अगस्त को रिटायर हुए हैं। उनके पूर्वाधिकारी सुशील चंद्र (अब चुनाव आयुक्त) ने भी मई 2017 में विस्तार पाया था जिसे कि उस समय एक अनोखा अपवाद माना गया था। अब मोदी का एक्सटैंशन दूसरों के लिए एक आदर्श प्रतीत होता है। सरकारी योजनाओं के प्रति अंतिम समय की घोषणा ने बाबुओं के सर्कल में आखिरकार व्यस्त चिंतन पर विराम लगाया है। सूत्रों के अनुसार मोदी तथा सुशील कुमार गुप्ता के बीच एक सबसे ऊंचे पद के लिए खींचातानी थी। अंतत: ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार ने एक आजमाए तथा परखे गए के साथ जाने का निर्णय लिया, बजाय कि एक नए चेहरे के। उच्च पद के लिए वरिष्ठता के आधार पर मोदी की एक्सटैंशन ने सीमा खुराना पात्रा तथा प्रभाष शंकर की उम्मीदों पर भी विराम लगा दिया जो इस पद के लिए लाइन में थे। 

शाह फैसल की वापसी?
जम्मू-कश्मीर में शाह फैसल की राजनीति के साथ आंख-मिचौली थोड़े समय के लिए रही। पिछले साल इस आई.ए.एस. टॉपर ने उस समय सुर्खियां बटोरी थीं जब उन्होंने यह घोषणा की थी कि वह कश्मीर में हालातों के विरोध में सिविल सर्विस को छोडऩे जा रहे हैं। उन्होंने एक राजनीतिक पार्टी जम्मू एंड कश्मीर पीपुल्ज पार्टी (जे.के.पी.एम.) का गठन किया। अब एक वर्ष से ज्यादा की समाप्ति पर उन्होंने अपनी ही पार्टी को छोड़ दिया और यह संकेत दिया कि वह सेवा में फिर से लौटना चाहते हैं। सूत्रों के अनुसार सरकार ने जनवरी 2019 को उनका त्यागपत्र मंजूर नहीं किया था। सोशल मीडिया पर उनकी कुछ पोस्ट में जांच लम्बित है। स्पष्ट तौर पर राजनीति छोडऩे से पूर्व फैसल ने गृह मंत्रालय में कुछ उच्चाधिकारियों से सम्पर्क किया तथा हम ऐसी अफवाहों को मानते हैं कि उन्होंने अपने निर्णय की घोषणा से पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से भी मुलाकात की। 

क्योंकि सरकार ने फैसल का इस्तीफा स्वीकार नहीं किया था इसलिए आई.ए.एस. में उनके पुन: प्रवेश का रास्ता खुला है। हालांकि इसके लिए उनको पहले अपना इस्तीफा वापस लेना होगा। डी.ओ.पी.टी. की वैबसाइट अभी भी शाह फैसल को सेवा में दिखाती है। हालांकि वह एक वर्ष से भी ज्यादा समय से राजनीति में क्रियाशील हैं।  अंतिम तौर पर कहा जा सकता है कि शाह फैसल का मुद्दा प्रशासनिक निर्णय से ज्यादा राजनीतिक दिखाई पड़ता है।- दिल्ली का बाबू दिलीप चेरियन     
 


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