आर्थिक बदहाली में रह रहे किसानों का जीवन स्तर ऊंचा किया जाए

punjabkesari.in Saturday, Nov 27, 2021 - 03:47 AM (IST)

विवादास्पद कृषि कानूनों पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी एकतरफा मानसिकता को दर्शाया। जब कृषि मुद्दों पर उन्होंने अपने आप को गलत दिशा में पाया तो उन्होंने यह आभास करवाया कि वह तीव्र गति से कार्रवाई करते हैं मगर बाद में सोचते हैं। नेतृत्व की सीढिय़ों पर प्रधानमंत्री की ऐसी विशेषताएं उन्हें शिखर पर नहीं पहुंचातीं। यह बात उस समय स्पष्ट जाहिर हुई जब उन्होंने दिल्ली में किसानों के प्रदर्शन के एक साल बाद तीन कृषि कानूनों को रद्द कर दिया। इसमें तीव्रता सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इन पर रोक के बाद आई। 

19 नवम्बर को राष्ट्र के नाम अपने संदेश के दौरान उन्होंने राष्ट्र से माफी मांगी और यह माना कि किसानों को विश्वास दिलाने में वह असफल हुए। ऐसी बातों ने प्रधानमंत्री की एकतरफा मानसिकता के बारे में मुझे उकसाया। लोकतांत्रिक सिद्धांत मांग करते हैं कि प्रधानमंत्री के पास सबसे पहले संसद में भाजपा के विशाल बहुमत के द्वारा आगे बढऩे की बजाय जमीनी स्तर पर किसानों के विचारों को जानने की क्षमता होनी चाहिए। 

संसदीय कार्यप्रणाली की महत्ता इस तथ्य में नहीं है कि बहुमत वाली सत्ताधारी पार्टी जमीनी स्तर के विचारों को न दर्शाए। मैं आशा करता हूं कि प्रधानमंत्री मोदी कृषि कानूनों जैसे संवेदनशील राष्ट्रीय मुद्दों को एक विस्तृत योजना के तहत देखें। 

प्रधानमंत्री ने माना है कि हम किसान भाइयों को सच्चाई के बारे में नहीं बता सके। यह दयनीय बात है। मैं आशा करता हूं कि प्रधानमंत्री को उनके लोग  ताजा घटनाक्रमों से अवगत करवाएं ताकि किसान भाइयों को रोशनी दिखाई जा सके क्योंकि सत्ताधारी पार्टी ऐसे मुद्दों पर असफल हुई है इसलिए किसानों ने इस प्रदर्शन को अपनी बाकी रहती 6 मांगों को लेकर निरंतर जारी करने की ठानी है। 

इन मांगों में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) के लिए एक कानूनी अधिकृत पत्र है। संयुक्त किसान मोर्चा (एस.के.एम.) ने प्रधानमंत्री को लिखे खुले पत्र में एम.एस.पी. के पैरामीटरों के बारे में बताया है। उन्होंने स्पष्ट तौर पर उल्लेख किया है कि एम.एस.पी. उत्पादन की विस्तृत लागत पर आधारित है और इसे सभी कृषि उत्पादों के लिए सभी किसानों के लिए कानूनी पात्रता दी जाए ताकि देश के प्रत्येक किसान को एम.एस.पी. की गारंटी मिले। 

एम.एस.पी. वह कीमत है जिस पर सरकार किसानों से कृषि उत्पादों की वसूली का वायदा करती है। अभी तक सरकार ने 23 फसलों के लिए एम.एस.पी. की घोषणा की है। मगर वसूली उनमें से कुछ ही फसलों के लिए है। राज्यों में वसूली अलग-अलग है। कठोर तथ्य यह है कि सत्ताधारी पार्टी प्रत्येक वर्ष एम.एस.पी. की घोषणा नहीं करती। 

यहां यह भी उल्लेख करना होगा कि एम.एस.पी. पर वसूली के लिए बाध्य होना राजनीतिक है और यह कानूनी नहीं है। स्पष्ट तौर पर एक कानूनी प्रावधान में सरकार को सभी उपजों की वसूली के लिए बाध्य किया गया है। सभी फसलों के लिए जिस पर एम.एस.पी. घोषित हुई है उसके लिए सभी राज्यों के लिए वसूली करना है। 
कृषि में बहुत सी आबादी लगी हुई है। 

किसी पश्चिमी देश की तुलना में हमारे देश में कृषि से जुड़े लोग आर्थिक तौर पर ज्यादा खुशहाल नहीं हैं। ऐसा कहा गया है कि एम.एस.पी. को कानूनी तौर पर मानना लम्बे समय तक न तो संभव है और न ही टिकाऊ। हमारी मूल समस्या यह है कि कृषि सैक्टर में बहुत सारे लोग लगे हुए हैं। इसलिए समस्या यह है कि यह सैक्टर एक पारिश्रमिक संबंधी पेशा बना है। 

भारत की जी.डी.पी. में कृषि का 17 प्रतिशत योगदान है। इसमें 55 प्रतिशत आबादी लगी हुई है। इसीलिए यह सुझाव दिया जाता है कि किसानों के लिए हमें रोजगार के लिए नए क्षेत्रों की ओर देखना होगा ताकि आर्थिक बदहाली में रह रहे किसानों का जीवन स्तर ऊंचा किया जाए। 

मेरा मानना है कि हमें नई रेखाओं पर सोचना होगा और कृषि को एक फायदेमंद पेशा बनाने के लिए नया ब्ल्यू प्रिंट लाना होगा। कृषि सैक्टर में हमें निवेश को प्रोत्साहन देना होगा। इसके लिए हमें बेहतर सिंचाई सहूलियतें, ऋण की सुविधा, बिजली तथा वेयर हाऊस सहूलियतों को और सुदृढ़ करना होगा। सबसे ज्यादा यह बात भी महत्वपूर्ण है कि हमें लघु तथा मध्यम क्षेत्र के किसानों का भी ख्याल रखना होगा क्योंकि किसानों की समस्याएं जटिल हैं।-हरि जयसिंह     
 


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