श्रीलंका गंभीर आर्थिक संकट में, भारत ही खेवनहार

punjabkesari.in Sunday, Apr 17, 2022 - 04:46 AM (IST)

श्रीलंका और भारत के आपसी सांस्कृतिक और अध्यात्मिक संबंध प्राचीनकाल से चले आ रहे हैं। हनुमान ने रावण की इसी स्वर्णमयी लंका को जलाया था। महान शिल्पी नल-नील ने इसी लंका पर चढ़ाई करने के लिए ‘सेतु’ का निर्माण किया था। रावण का वध राम ने इसी लंका में किया था। 

पाठक यह भी जान लें कि लंका कोई बड़ा राष्ट्र नहीं है। महज 2.23 करोड़ की आबादी वाला देश है लंका, जिसका क्षेत्रफल 65,610 वर्ग किलोमीटर है। इसकी आधिकारिक भाषा सिंहली और तमिल है। 1972 तक इसे सिलोन कहा जाता था, 1978 तक लंका और 1978 के बाद इसके साथ शब्द ‘श्री’ जोड़ कर इस देश का नाम ‘श्रीलंका’ पड़ गया। 1948 में भारत की तरह ही यह देश ब्रिटिश हुकूमत से आजाद हुआ। 

श्रीलंका शुरू से ही एक डैमोक्रेटिक देश रहा है, परन्तु राजतंत्र और सेना का सदा लोकतंत्र से टकराव रहा है। 1983 के बाद इस देश में उग्रवादी तमिल संगठन ‘लिब्रेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम’ यानी लिट्टे के वेलपिल्लाई प्रभाकरण ने मातृभूमि के नाम पर सरकार के विरुद्ध सशस्त्र ‘गोरिल्ला-युद्ध’ शुरू कर दिया। भारत ने श्रीलंका के इस गृहयुद्ध में सक्रिय भूमिका निभाई। श्रीलंका को लगा कि भारत हमारे आंतरिक मसलों में खुल्लम-खुल्ला दखल दे रहा है, अत: तमिल उग्रवादियों ने हमारे युवा और कर्मठ प्रधानमंत्री राजीव गांधी को तमिलनाडु की एक सभा में आत्मघाती हमले में उड़ा दिया। यद्यपि भारत ने 1989 में अपनी ‘शांति-सेना’ को श्रीलंका से वापस बुला लिया तो भी तमिलों का गुस्सा शांत नहीं हुआ। 

2009 में श्रीलंका की सेना ने प्रधानमंत्री राजपक्षे के नेतृत्व में बर्बर कार्रवाई करते हुए लिट्टे विद्रोहियों को समाप्त कर दिया। इस कार्रवाई में लिट्टे प्रमुख प्रभाकरण और उसका परिवार भी मारा गया। इसके बाद श्रीलंका धीरे-धीरे विकास की ओर बढऩे लगा। परन्तु भारत के स्थान पर श्रीलंका का झुकाव चीन की ओर होने लगा। चीन ने श्रीलंका की इस स्थिति का फायदा उठाया। चीन ने श्रीलंका को खुल कर ऋण देना शुरू किया। श्रीलंका ने अपने हवाई अड्डों और बंदरगाहों के प्रयोग की चीन को अनुमति दे दी। कई द्वीप चीन को सैन्य अभ्यास के लिए दे डाले। 

श्रीलंका के पार्लियामैंट चुनावों में राजपक्षे परिवार की भारी जीत ने उस परिवार को मदान्ध बना दिया। राजपक्षे परिवार से ही करीब 11 सदस्य विभिन्न सरकारी उच्च पदों पर विराजमान हैं। गोटबाया राजपक्षे राष्ट्रपति, दूसरा सगा भाई महिंदा राजपक्षे प्रधानमंत्री, तीसरा भाई वित्तमंत्री, चौथा भाई एक अन्य मंत्री। ऊपर से चीन की मैत्री और भारत से दूरी श्रीलंका को दिवालिएपन पर ले आई। आप हैरान होंगे कि 2.23 करोड़ की आबादी वाले देश पर 57 अरब डालर का कर्जा! 

बर्बादी का सामान लंका की पारिवारिक सरकार ने स्वयं इक_ा किया। वित्तमंत्री राजपक्षे ने कराधान नीति ऐसी बनाई कि राजकोष खाली हो गया। विदेशी मुद्रा भंडार, जो किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार होता है, शून्य पर पहुंच गया। श्रीलंका सरकार ने मुफ्त खैरातें बांटीं, पैसा सरकारी खजाने में आया नहीं, श्रीलंका की अर्थव्यवस्था फेल हो गई। कोविड-19 के भय से श्रीलंका का टूरिस्ट उद्योग ठप्प हो गया। आर्गैनिक खादों के मोह में सरकार ने अपने चाय उद्योग को तो खत्म किया ही, साथ साधारण खेती का उत्पादन भी एकदम घट गया। कर्जे की किस्तों का भुगतान रुक गया। 

परिणामस्वरूप अनिवार्य वस्तुओं की किल्लत होने लगी। रसोई गैस, कैरोसीन, डीजल और पैट्रोल लेने के लिए लोगों की लाइनें लगने लगीं, दवाई की दुकानों से मामूली पैरासिटामोल भी आलोप हो गई, वर्षा हुई नहीं, जलाशय सूखने लगे, बिजली-कटों से श्रीलंका के लोगों के पसीने छूटने लगे, खेत-खलिहान पानी के बिना मुरझाने लगे, छोटे-मोटे कारखाने बंद हो गए, यहां तक कि स्कूली बच्चों को परीक्षा में प्रयोग होने वाला कागज नदारद हो गया। श्रीलंका में दूध 290 रुपए प्रति लीटर बिकने लगा, पशुओं का चारा तक बाजार से गयाब हो गया। 

लोग सरकार के विरुद्ध सड़कों पर उतर आए। सरकार ने वित्तमंत्री बदला। हालात नहीं सुधरे तो सरकार ने एमरजैंसी लगा दी। कई विपक्षी नेताओं को सरकार ने जेल में डाल दिया है। श्रीलंका में त्राहिमाम मचा है। श्रीलंका से पलायन कर लोग धड़ाधड़ भारत के धनुषकोटि में पनाह ले रहे हैं। तमिलनाडु सरकार ने श्रीलंकाई शरणार्थियों के लिए कैंपों की व्यवस्था की है। हमारे श्रीलंका से पौराणिक संबंध हैं। श्रीलंका के इस संकट में भारत सरकार उसके दुख-दर्द को समझ रही है। ऐसे में भारत सरकार ने श्रीलंका के लोगों को भुखमरी से बचाने के लिए 40,000 टन चावलों की पहली खेप वहां भेजी है, परन्तु श्रीलंका सरकार को स्वयं अपने धनी सेठों से लोन लेना चाहिए।

दूसरा, विश्व के अन्य देशों से शार्ट-टर्म लोन लेकर वर्तमान संकट से उबरना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और अमरीका से सहायता मांगनी चाहिए। वहां के राष्ट्रपति गोटबाया को आॢथक सहायता के लिए हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से डायरैक्ट बात करनी चाहिए। श्रीलंका सरकार को तत्काल इस आॢथक संकट से बाहर आना होगा, अन्यथा चीन की विस्तारवादी नीति उसे हड़प लेगी। श्रीलंका सरकार चीन की राजनीतिक चालों को समझ नहीं सकी। चीन छोटे देशों से ऐसा ही व्यवहार करता है।-मा. मोहन लाल(पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News