कुछ लोग अपना ‘रास्ता’ कभी नहीं बदलते

punjabkesari.in Sunday, Apr 12, 2020 - 05:14 AM (IST)

एक आयरिश कहावत है जिसके अनुसार आप एक व्यक्ति को दलदल में से तो निकाल सकते हैं मगर एक व्यक्ति में से दलदल नहीं निकाल सकते। अन्य शब्दों में कहें तो हालात कुछ भी हों मगर कुछ लोग अपना रास्ता कभी नहीं बदलते। कोरोना वायरस के खिलाफ युद्ध से निपटने के लिए प्रधानमंत्री ने विभिन्न पार्टियों से सुझाव मांगे। 

वहीं कांग्रेस की कार्यवाहक अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपने पहले सुझाव में यह कहा कि 2 वर्षों के लिए सरकार तथा विभिन्न पब्लिक अंडरटेकिंग्स द्वारा मीडिया विज्ञापनों पर पूर्णतया प्रतिबंध लगा दिया जाए। इसकी कठोरता से पालना करने के लिए सोनिया ने सहायक के तौर पर आगे कहा कि 2 वर्षों की अवधि में केवल स्वास्थ्य एडवाइजरी जारी करने वाले विज्ञापन ही जारी किए जा सकते हैं। इस बात को लेकर समाचार पत्रों सहित सभी मीडिया जोकि मोदी सरकार के कड़े आलोचक रहे हैं, ने इस पर अपनी कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि सोनिया का सुझाव पुराना है तथा इसमें कांग्रेस पार्टी का प्रैस विरोधी रवैया दिखाई देता है। कांग्रेस का इतिहास शुरू से ही फ्री प्रैस के दमन का रहा है। इंदिरा गांधी के 19 माह के आपातकाल के दौरान यही बात देखने को मिली थी। 

हालांकि मीडिया के सभी वर्गों की तरफ से सरकारी विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश के लिए सोनिया गांधी की खिंचाई की गई। आज के दिनों में विज्ञापन मीडिया की जीवन रेखा है। सोनिया ने मीडिया पर अपना क्रोध क्यों जताया इसका कोई कारण दिखाई नहीं देता। वास्तव में यह सोनिया तथा उनके बच्चों का प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ बैर दिखाई पड़ता है। उन्होंने कठोर उपायों का एक असामान्य सुझाव दे डाला मगर वास्तव में इसका मतलब यह यकीनी बनाना था कि सरकारी विज्ञापनों के माध्यम से प्रधानमंत्री की छवि में आगे और कोई निखार न आए। सोनिया मोदी की सशक्त छवि के उभरने से भी चिंतित हैं। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में किसी ने भी सोनिया के विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाने के सुझाव का समर्थन करने की परवाह नहीं की। इस दौरान यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या कोई कांग्रेस शासित राज्य सरकार नेहरू-गांधी परिवार के किसी सदस्य की जयंती या पुण्यतिथि पर फुल पेज का एड देने को अनिवार्य समझती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोरोना वायरस महामारी के खिलाफ लडऩे के लिए विशेष फंड का गठन किया है जिसे पी.एम. केयर्स फंड कहा जाता है। मोदी के आलोचकों ने तत्काल ही उन पर महामारी को भुनाने का आरोप लगा दिया। 

एक विशेष बुद्धिजीवी ने इस बात पर यह दोहरा दिया कि क्या इसका मतलब यह है कि कोई मोदी के अलावा देश की परवाह नहीं करता। वह व्यक्ति तथा अन्य आलोचक सही कारण के बारे में बहुत कम जानते हैं कि आखिर क्यों एक अलग से फंड का गठन किया गया जबकि नेहरू ने 1948 में एक फंड का गठन किया था जोकि अभी भी क्रियाशील है। इसे प्राइम मिनिस्टर रिलीफ फंड बुलाया गया। यह फंड एक कमेटी द्वारा मैनेज किया गया, जिसमें इंडियन नैशनल कांग्रेस का अध्यक्ष भी शामिल था। कांग्रेस पार्टी ने प्रधानमंत्री मोदी द्वारा शुरू किए गए अलग से फंड के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया कैसे दे दी। 

महाराष्ट्र में मंत्री का गुंडाराज
केवल शिवसेना ही गुंडागर्दी का नंगा नाच नहीं करती। पिछले सप्ताह उद्धव ठाकरे सरकार में राकांपा के वरिष्ठ मंत्री ने अपने गुंडों के साथ लाठियां लेकर एक सिविल इंजीनियर पर हमला कर दिया। ङ्क्षहसा तथा प्रतिशोध महाराष्ट्र की राजनीति में तेजी से फैल रहा है। देशव्यापी लॉकडाऊन में पिकनिक का आनंद उठाने के लिए लोग पासों की विभिन्न जांच एजैंसियों से मांग कर रहे हैं। राकांपा का वरिष्ठ मंत्री सोशल मीडिया पर सवाल उठाए जाने के बाद इंजीनियर को पीटने के मामले में अपने आपको न्यायोचित ठहरा रहा है। सिविल इंजीनियर द्वारा सोशल मीडिया पर डाली गई पोस्ट से जतिन्द्र अव्हाड इतने क्षुब्ध हो गए कि उन्होंने अपने गुंडों के साथ स्थानीय पुलिस को लेकर उनके घर में घुस कर उनकी पिटाई कर डाली। मंत्री के समक्ष सिविल इंजीनियर को पीटा गया। 

मंत्री के गुस्से का कारण सोशल मीडिया की पोस्ट थी जिसमें अव्हाड से यह प्रश्र किया गया था कि उन्होंने पी.एम. की मोमबत्ती जलाने की कॉल का समर्थन क्यों नहीं किया जिसमें कोरोना वायरस से लड़ रहे स्वास्थ्य कर्मियों के साथ साहनुभूति जताने के लिए प्रधानमंत्री द्वारा अपील की गई थी। हालांकि पीड़ित ने पुलिस के पास शिकायत दर्ज करवाई है मगर इसका कोई भी नतीजा नहीं निकलेगा क्योंकि महाराष्ट्र के मंत्री अपने आपको कानून से ऊपर समझते हैं। सिविल इंजीनियर को पीटने की बात पर अपने आपको सही ठहराते हुए अव्हाड ने कहा कि उसके सोशल मीडिया पोस्ट ने ही उन्हें पीटने के लिए उकसाया।-अंदर की बातें वीरेन्द्र कपूर
 


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