भारत-चीन सीमा ‘तनाव’ के पीछे कुछ और ही कारण

punjabkesari.in Thursday, Jun 18, 2020 - 03:44 AM (IST)

लद्दाख क्षेत्र के गलवान में भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच तल्खी गहरी चिंता का विषय है। संघर्ष में शहीद हुए हमारे जवानों और दूसरी तरफ हताहत हुए चीनी सैनिकों की सटीक गिनती भले ही अभी उपलब्ध न हो, लेकिन 1962 के बाद से 2 परमाणु पड़ोसियों के बीच यह सबसे बुरी तरह का टकराव है। 

भारतीय और चीनी सेना की टुकडिय़ां मामूली शारीरिक झड़़पों में शामिल हो रही हैं जिसमें 3500 किलोमीटर की सीमा के साथ एक-दूसरे को धक्का देना और हाथापाई करना असामान्य नहीं है। इस तरह के निहत्थे विवादों का अधिकांश समाधान स्थानीय सैन्य अधिकारियों के हस्तक्षेप से किया जाता है। 

चूंकि उच्च पर्वतीय क्षेत्र में सीमा के लिए कोई स्पष्ट चिन्ह नहीं है, इसलिए सेना के जवानों का मानना है कि सीमा पर गश्त करने वाले क्षेत्र को सीमा मान लिया जाता है तथा अपनी बैरकों में वापस लौटा जाता है। झड़पें तब होती हैं जब एक ही समय में एक ही क्षेत्र में दोनों ओर से सेना की गश्त आमने-सामने आ जाती है। कई बार शत्रुता बढ़ जाती है और पिछले कुछ वर्षों के दौरान कम से कम तीन प्रमुख निर्माण हुए हैं। पहला 2013 के दौरान उत्तरी लद्दाख में देपसांग में, दूसरा 2014 में पूर्वी लद्दाख में तथा तीसरा 2017 में डोकलाम में हुआ था। नि:संदेह पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में नवीनतम संघर्ष अब तक का सबसे खराब है और ऐसे कई कारक हैं जिनके बारे में यह माना जाता है कि जमीन के एक टुकड़े पर केवल दावे या विवाद की स्थिति के कारण झगड़ा उत्पन्न हुआ है। 

चीन ने पेंगौंग लेक के निकट एक अग्रणी बेस पर लड़ाकू विमान तैनात किए हैं जिसका आधा हिस्सा चीन के कब्जे वाले क्षेत्र में पड़ता है। चीन सीमा के निकट भारी उपकरण ला रहा है। यह स्पष्ट था कि वह एक लम्बी कार्रवाई की तैयारियों में लगा था। यह भी स्पष्ट है कि चीन इस आप्रेशन की योजना की रूप-रेखा को कई महीनों से बना रहा था और उसके पीछे मुडऩे की कोई मंशा न थी। 

तनाव का महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि यह चीन की समन्वित कार्रवाइयां हैं जिसमें एक तरफ पाकिस्तान तथा दूसरी तरफ नेपाल है। पाकिस्तान ने कश्मीर क्षेत्र में नियंत्रण रेखा के पार से अचानक गोलीबारी बढ़ा दी है। इसके साथ ही कश्मीर घाटी में आतंकी गतिविधियों में वृद्धि हुई है। ये गतिविधियां निश्चित रूप से एक-दूसरे से सह-संबंधित हैं। यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि पिछले साल अगस्त में अनुच्छेद 370 को समाप्त करने के बाद यह पहली गर्मी है। चीन का दावा है कि सरकार के पुनर्विचार के कारण यह भारतीय फैसले से भी प्रभावित है, जिसका उद्देश्य विदेशी ताकतों के कब्जे में से सभी क्षेत्रों को वापस लेना है। चीन अक्साईचिन और लद्दाख को अपने क्षेत्र में होने का दावा करता आया है। 

अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने वायरस के उत्थान तथा चीन की भूमिका के लिए एक स्वतंत्र जांच करवाने की मांग की है। उन्होंने दोनों देशों के बीच व्यापार में प्रमुख कटौतियां करने की घोषणा भी की है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी आत्मनिर्भरता को बढ़ाने पर जोर दिया है जिसका असर चीन से होने वाले आयात पर पड़ेगा। यह चीन के लिए अपना बल दिखाने का एक प्रमुख कारक प्रतीत होता है। जहां तक चीन से व्यापार और आयात का संबंध है चीन भारत को यथास्थिति बनाए रखने के लिए एक मजबूत संकेत दे रहा है। चीन इस कारक का लद्दाख में सौदेबाजी  करने के लिए उपयोग कर सकता है। 

ऐसा करने के चीन के पास कई कारण हैं। भारत 2019 के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार चीन से 515.63 बिलियन यूआन (लगभग 74.72 बिलियन अमरीकी डालर) के सामान का आयात करता है। दूसरी ओर चीन द्वारा भारतीय सामान का आयात महज 123.89 बिलियन यूआन (लगभग 17.95 बिलियन अमरीकी डालर) का है।

निश्चित रूप से चीन उस समीकरण को बाधित नहीं करना चाहेगा लेकिन भारत को असंतुलन को ठीक करने और चीन पर आत्मनिर्भरता कम करने के लिए जरूरी कदम उठाने होंगे, विशेषकर कच्चे माल पर। वर्तमान में 70 फीसदी मूल दवाएं चीन से आती हैं। यह भी जग-जाहिर है कि चीनी वस्तुएं कितनी सस्ती होती हैं और भारतीय बाजारों में इन वस्तुओं की बाढ़-सी आ गई है जिसके चलते अनेकों भारतीय पारम्परिक उद्योग तहस-नहस हो गए हैं। 

भारतीय जवानों की क्षति की भरपाई कभी भी नहीं हो सकती और हम ऐसे शूरवीर जवानों को सलाम करते हैं जिन्होंने देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। उच्च नेताओं को आगे आना होगा ताकि दोनों ओर से इन संघर्षों को टाला जा सके। वैश्विक अर्थव्यवस्था को कोविड महामारी ने पहले से ही झकझोर कर रखा हुआ है। इस दौरान दोनों देशों को सीमा पर यथास्थिति बनानी चाहिए और तनाव कम करना चाहिए। सभी मुद्दों का कूटनीतिक हल ढूंढना होगा और अर्थव्यवस्था को पुन: पटरी पर दौड़ाने के लिए हमें अपना लक्ष्य केन्द्रित करना होगा।-विपिन पब्बी


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