भारत में लोकतंत्र की धीमी मौत

punjabkesari.in Friday, Apr 30, 2021 - 03:03 AM (IST)

पूर्वजों की भूमि को एक नया राज्यपाल मिल गया है। मुख्य चुनाव आयुक्त (सी.ई.सी.) के तौर पर 3 दिन पहले अपना कार्यालय छोडऩे वाले सुनील अरोड़ा, जो पहले भारतीय प्रशासनिक सेवा में थे, को मोदी जी द्वारा गोवा का राज्यपाल नामांकित किया गया। राजभवन को पुर्तगाली कोलोनियल काल में ‘प्लासियो डू कोबा’ के नाम से जाना जाता था। 

सेवानिवृत्त आई.ए.एस., आई.एफ.एस., आई.पी.एस तथा केंद्रीय सेवा अधिकारियों पर आधारित संवैधानिक व्यवहार समूह (सी.सी.जी.) के कुछ सदस्यों का कहना है कि सुनील अरोड़ा को मोदी शाह की जोड़ी को विपक्ष मुक्त भारत में उनकी मदद के लिए पुरस्कृत किया गया है। शुरू में लक्ष्य ‘कांग्रेस मुक्त’ था लेकिन अब उनका लक्ष्य विस्तारित होकर (स्थानांतरित नहीं हुआ) इसमें दीदी-ओ-दीदी व अन्य भी शामिल हो गए हैं।

मुझे मोदी जी की गुजरात के मु यमंत्री के तौर पर याद है, जो तत्कालीन मु य चुनाव आयुक्त जे स माइकल लिंगदोह, जो मेघालय के खासो हिल्स से संबंधित एक उत्कृष्ट आई.ए.एस. अधिकारी थे, का लगातार पूरा नाम उच्चारित करते थे ताकि इस बात पर जोर दिया जा सके कि एक ईसाई अधिकारी पर भाजपा की राजनीतिक तथा चुनावी जरूरतों के लिए विश्वास नहीं किया जा सकता। लिंगदोह का अपराध बस इतना था कि उन्होंने मोदी जी की पार्टी की इस याचना को खारिज कर दिया था कि चुनावी तिथियां ऐसी रखी जाएं जो भाजपा के अनुकूल हों। 

दूसरी ओर सुनील अरोड़ा भाजपा के प्रति बहुत उपकारी रहे। उन्होंने बंगाल में चुनावी प्रक्रिया को आठ चरणों में करवाने की पार्टी की इच्छा को पूरा किया जो बंगाल के चुनावी इतिहास तथा देश के किसी भी अन्य राज्य के इतिहास में अप्रत्याशित है। तमिलनाडु जैसे उतने ही बड़े राज्य में मतदान एक दिन में ही पूरा हो गया। मगर भाजपा को तमिलनाडु में स्थानीय द्रविडिय़न पाॢटयों को बदलने की आशा नहीं थी जैसे कि ममता बनर्जी की स्थानीय बंगाली पार्टी को बाहर का रास्ता दिखाने की। 

संदेश बिल्कुल स्पष्ट है। अखिल भारतीय सेवा का कोई भी अधिकारी, जो सेवानिवृत्ति के बाद किसी स मानित पद की आकांक्षा रखता है उसे पार्टी की जरूरतों का याल रखना होगा। चुनाव आयोग गौरवपूर्ण ढंग से एक स्वतंत्र संस्थान था। हमारी प्राचीन भूमि में इसने लोकतंत्र के फलने-फूलने में अपना बहुमूल्य योगदान दिया। मगर अब और नहीं। हमारे अपने सहयोगियों ने इसकी धीमी मौत सुनिश्चित की। 

2019 में लोकसभा चुनावों के बाद सी.सी.जी. ने एक खुले पत्र में इस बात का विरोध किया था कि सुनील अरोड़ा ने चुनाव संहिता बनाए रखने के लिए भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जो उस समय सत्ताधारी के पक्ष में था। मोदी जी तथा अमित जी को उकसाहटपूर्ण, अत्यंत सा प्रदायिक भाषणों या उद्धरणों के लिए हल्के में लिया गया जबकि उनके विरोधियों की छोटी गलतियों के लिए भी निंदा की गई। राजदीप सरदेसाई के साथ एक साक्षात्कार में मु य चुनाव आयुक्त ने कहा था कि वह ‘दुखी’ हैं कि मैंने, जूलियो रिबेरो ने उस विरोध का समर्थन किया। 

सुनील अरोड़ा को अब स्वीकार करना चाहिए कि सी.सी.जी. के पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए मैं सही था। यदि उनमें कोई गरिमा या आत्मस मान होता तो वह मोदी जी को सलाह देते कि दुनिया के सामने उनके भेदभाव का पर्दाफाश करने से पहले सोच लेते। अब यह अपरिहार्य हो गया है कि एक ऐसा कानून बनाया जाए जिससे न्यायपालिका, मु य चुनाव आयुक्त, सी.बी.आई. जैसे निकायों के संवैधानिक सदस्यों को सेवानिवृत्ति के बाद कोई पद न दिया जाए। यहां तक कि सेवानिवृत्त मु य न्यायाधीश रंजन गोगोई का राज्यसभा में एक सांसद के तौर पर नामांकन स्पष्ट तौर पर न्यायपालिका की सर्वोच्च इकाई को कमजोर करने का प्रयास था। 

नियंत्रण तथा संतुलन बनाए रखने वाले संस्थानों को तोडऩे के लिए सरंक्षण का इस्तेमाल अत्यंत परेशान करने वाला है। अपने समय में कांग्रेस ने भी यही काम किया था। ‘अंतर’ वाली पार्टी यह साबित करने के लिए उस हद तक चली गई कि यह अलग नहीं है। कांग्रेस काफी बुरी थी लेकिन भाजपा ने सी.बी.आई., ई.डी., एन.सी.बी., एन.आई.ए. आदि जैसे नियामक संस्थानों  पर बुरी तरह से नियंत्रण पाने की कला में महारत हासिल कर ली है। 

गोवा, जैसा कि मैंने पहले कहा है, एक ऐसी भूमि है जहां मेरे पूर्वज कई शताब्दियों पूर्व आकर बसे थे। वे महॢष परशुराम के साथ आए थे। 1540 में पुर्तगाली मांडोवी नदी के रास्ते आए और मुस्लिम शासक आदिल खान को सत्ता से हटा दिया। उस विजय ने स्थानीय लोगों को खुशी दी मगर विजेता के वहीं रहने के निर्णय ने नहीं। उसके बाद गोवा का ईसाईकरण हुआ मगर लगभग 200 वर्ष बाद यह प्रक्रिया धीमी हो गई जब माॢक्वस ऑफ पो बाल, एक धर्म गुरु विरोधी ने लिस्बन में सरकार की कमान संभाली।  उसके सबसे पहले कार्यों में एक था रायल कैथोलिक समाज के सदस्यों को देश से प्रतिबंधित करना। 

मुझे सुनील अरोड़ा के साथ कोई निजी दुश्मनी नहीं है। मुझ पर जलन का आरोप नहीं लगाया जा सकता क्योंकि मैंने खुद राज्यपाल के दो प्रस्तावों को ठुकराया है, एक भाजपा द्वारा तथा एक कांग्रेस द्वारा। मेरे कहने का उद्देश्य प्रशासन के महत्वपूर्ण संस्थानों को कमजोर करने से है। भारत में लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए एक न्यायोचित तथा निष्पक्ष चुनाव आयोग महत्वपूर्ण है। जैसे कि किसी भी अन्य लोकतांत्रिक देश में है। अपना उद्देश्य स्पष्ट करने के बाद मैं यह कहना चाहूंगा कि किसी भी अन्य नागरिक की तरह मैं दुख जताने के अतिरिक्त कुछ भी करने में असमर्थ हूं। मगर दिल से मैं एक गोवावासी भी हूं और गोवावासी मैत्रीपूर्ण तथा गर्मजोशीपूर्ण हैं। अत: एक अच्छे गोवावासी का हैट पहन कर मैं अपने पूर्वजों की धरती पर सुनील अरोड़ा का स्वागत करता हूं और कोबो निवास में उनके खुशगवार ठहराव की आशा करता हूं।-जूलियो
 
 


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