मौन रहना कहीं अधिक बुरा है

punjabkesari.in Saturday, Jan 28, 2023 - 06:07 AM (IST)

93 से ज्यादा की उम्र होने पर किसी को अपनी मान्यता के बारे में नहीं सोचना चाहिए। येजदी मालेगाम की अध्यक्षता वाली नानी पालकीवाला फाऊंडेशन अन्यथा सोचती है। ट्रस्टी पिछले वर्ष अक्तूबर में किसी समय मुझसे मिले और मुझे वार्षिक पुरस्कार देने का फैसला किया। ट्रस्ट ने मुझे चुनने का कारण बताया कि मैंने अपने सार्वजनिक भाषणों और लेखों के माध्यम से मुद्दों के बारे में जागरूकता पैदा की थी, वह भी उस समय जब नागरिक अधिकारों को खतरा था। मुझे यकीन है कि दैनिक समाचार पत्र पंजाब केसरी और ट्रिब्यून ने मेरे साप्ताहिक कालम के पेंडुलम को मेरी ओर झुका दिया है। मैं टैलीविजन पर या अन्य सार्वजनिक समारोहों में ज्यादातर नहीं बोलता। इसीलिए समाचार पत्रों में मेरे लेखन ने ट्रस्टियों का ध्यान आकॢषत किया होगा। दरअसल मैंने नागरिक स्वतंत्रता को ध्यान में रखकर नहीं लिखा था। मैंने तब लिखा जब मुझे दुख हुआ और मेरे मित्र व्यथित हुए। 200 सेवानिवृत्त सिविल सेवक जिन्होंने बतौर आई.ए.एस.,

आई.एफ.एस., आई.पी.एस. ईमानदारी से हमारे देश की सेवा की, का एक संवैधानिक आचरण समूह (सी.सी.जी.) है। चूंकि समूह के अस्तित्व का उद्देश्य और मेरा संयोग था इसलिए मैं सरकार द्वारा किए गए असंवैधानिक निर्णयों के खिलाफ विरोध के कई पत्रों का समर्थन करता हूं। 

भाजपा केंद्र में और कई राज्यों की सत्ता में है। यदि कोई भी राजनीतिक दल रायसीना हिल या राज्यों के मंत्रालयों में स्थापित होता है तो हमारा दृष्टिकोण वही होता है। किसी को सत्ता में सच बोलना होता है। सी.सी.जी. ऐसा ही करता है। पिछले सप्ताह नानी पालकीवाला पुरस्कार प्रदान करने के अवसर पर अपने जीवन के इस पड़ाव पर मैंने अपने भाषण में सी.सी.जी. द्वारा निभाई गई भूमिका का उल्लेख किया था। मुझमें व्यक्तिगत रूप से सड़क पर कदम रखने का साहस नहीं है लेकिन अपनी सक्रियता को अन्यया के खिलाफ आवाज उठाने तक सीमित रखता हूं। हर्ष

सी.सी.जी. के एक सदस्य भी हैं। उन्होंने आई.ए.एस. किया और उन्हें मध्य प्रदेश कैडर आबंटित किया गया था। 2002 में गुजरात में साम्प्रदायिक आग और सरकार की अस्वीकार्य प्रतिक्रिया के बाद हर्ष ने आई.ए.एस. से इस्तीफा दे दिया और समय के साथ विधवाओं और अन्य लोगों के कष्टों को दूर करने के लिए ‘अमन बिरादरी’ ट्रस्ट का गठन किया जिसमें दंगों में मारे गए लोगों के पारिवारिक सदस्य तथा भाजपा शासित राज्यों में गौरक्षकों द्वारा मारे गए लोगों के पारिवारिक सदस्य शामिल हैं। जब पालकीवाला ट्रस्ट ने मुझसे पूछा कि पुरस्कार के साथ नकद किसके नाम पर जारी किया जाना है तो मैंने अनायास ही कहा, ‘‘अमन बिरादरी ट्रस्ट को चैक जारी करें जिसके हर्ष मंदर मार्गदर्शक हैं जो दया के मिशन पर निकल पड़े हैं। ऐसी बिरादरी की हमें जरूरत है।’’

दिल्ली स्थित सी.सी.जी. में मेरे दोस्तों से मुझे पता चला कि हर्ष को बार-बार सरकार की एक जांच एजैंसी द्वारा बुलाया जा रहा था। मुझे लगता है कि एजैंसी ‘अमन बिरादरी’ ट्रस्ट के वित्त की जांच कर रही होगी। मुझे नहीं पता कि एजैंसी किस बारे में पूछताछ कर रही है लेकिन मुझे यह पता है कि हर्ष कभी भी अपने निजी इस्तेमाल के लिए ट्रस्ट के पैसे का इस्तेमाल नहीं करते। ऐसा करने का विचार हर्ष के मन में कभी आएगा भी नहीं। 

जब किरण बेदी ने मैग्सैसे पुरस्कार जीता तो उन्हें एक बड़ी रकम का चैक दिया गया जिसे उन्होंने एक ट्रस्ट में डाल दिया। क्योंकि किरण ने मुझे अपने ट्रस्ट के ट्रस्टियों में से एक के रूप में नामित किया था तो एक टी.वी. चैनल का रिपोर्टर अचानक एक शाम मेरे दरवाजे पर यह पूछने के लिए आया कि पैसे का हिसाब कैसे लगाया गया है। क्योंकि मुझे ट्रस्टियों की किसी भी बैठक में नहीं बुलाया गया था इसलिए मुझे ट्रस्ट के मामलों के बारे में कुछ भी नहीं पता था। उसके बाद मुझसे ट्रस्ट के बारे में किसी ने नहीं पूछा। मुझे इस बात का यकीन था कि किरण बेदी ट्रस्ट के किसी भी फंड को अपने इस्तेमाल के लिए डायवर्ट नहीं करेंगी। हर्ष मंदर की व्यक्तिगत ईमानदारी के बारे में मेरी राय एक जैसी है। हर्ष एक ऐसे कार्यकत्र्ता हैं जिनकी सक्रियता सत्ता में बैठे लोगों को कभी रास नहीं आएगी। 

हमें ऐसे नागरिकों की आवश्यकता है जो हम पर शासन करने वालों के कार्यों के बारे में उत्सुक हों। यह सुनिश्चित करना हमारा उत्तरदायित्व है कि कानूनों द्वारा उन्हें दी गई शक्तियों का व्यक्तिगत या पार्टी लाभ के लिए दुरुपयोग न हो। सत्ता और अधिकार रखने वालों से भद्दे प्रत्युत्तर का खतरा वास्तविक है, लेकिन मौन रहना कहीं अधिक बुरा है। ऐसे समय में मौन रहने से कई लोगों के साथ इतना बड़ा अन्याय हो सकता है जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। 1948 से 1950 तक जब मैं गवर्नमैंट लॉ कालेज में छात्र था तब नानी पालकीवाला मेरे शिक्षक थे। 1953 में भारतीय पुलिस सेवा में मेरे शामिल होने के बाद भी मैंने उनसे अपनी दोस्ती बनाए रखी।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी) 
 


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