चाहिए थी राहतों की बौछार पड़ गई ‘महंगाई की मार’

punjabkesari.in Wednesday, Jul 08, 2020 - 03:59 AM (IST)

कोरोना महामारी के चलते जहां लोगों की आय के साधन सीमित होने लगे हैं, वहीं हिमाचल प्रदेश की सरकार ने भी इस आर्थिक संकट में राहतें देने की बजाय लोगों को पहले से मिल रही सरकारी उपदान वाली योजनाओं पर कैंची चला दी है। जिससे नौकरी खो चुके और आय में कमी के चलते प्रदेश के लाखों लोगों के लिए गंभीर आर्थिक संकट पैदा हो गया है। पैट्रोल और डीजल की कीमतों में वृद्धि करने के बाद राज्य की भाजपा सरकार ने खाद्य वस्तुओं तथा बिजली पर मिलने वाले उपदान में कटौती कर दी है। वहीं इस महामारी के दौरान राज्य में विकास कार्यों की गति भी धीमी कर दी गई है क्योंकि वर्तमान वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में आय के विभिन्न स्रोतों से बहुत कम धन राजकोष में जमा हो पाया है। सरकार को इस अवधि के दौरान ओवरड्राफ्ट जैसे आर्थिक संकट का सामना भी करना पड़ा है। 

मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की ओर से वरिष्ठ मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल उपसमिति का गठन किया है जिसकी सिफारिशों पर राज्य के 12 लाख से अधिक राशन कार्ड धारकों को मिलने वाले उपदान में कटौती की गई है। जबकि 125 यूनिट से अधिक बिजली की खपत करने वाले 9 लाख परिवारों को मिल रहे विद्युत उपदान पर भी सरकार ने कैंची चला दी है जिसके चलते विद्युत उत्पादक राज्य हिमाचल में अब लोगों के मासिक बिजली बिल में वृद्धि हो जाएगी। इसके अलावा वाहन पंजीकरण के शुल्क में बेहताशा वृद्धि की गई है। जबकि मंत्रिमंडल उपसमिति की इस प्रकार की और सिफारिशें भी आने वाले समय में राज्य में लागू करने की तैयारी सरकार कर रही है। ऐसे गंभीर आर्थिक संकट में बरसों से चली आ रही सरकारी राहतों को बंद करने के फैसले को लेकर सत्तारूढ़ भाजपा में ही मतभेद देखने को मिल रहे हैं। 

पार्टी के अधिकतर वरिष्ठ नेता इन्हें पूरी तरह से ब्यूरोक्रेटिक फैसले मानते हुए अभी से अगले विधानसभा चुनाव की चिंता में घिर गए हैं क्योंकि गंभीर आॢथक संकट का सामना कर रहे राज्य के लोगों में सरकार के इन फैसलों को लेकर भारी विरोध देखने को मिल रहा है। जाहिर है कि इसके दूरगामी नकारात्मक परिणामों को लेकर पार्टी का एक बड़ा वर्ग अभी से चिंता में है। कोरोना काल में हिमाचल प्रदेश में पर्यटन और परिवहन दो मुख्य क्षेत्रों में तकरीबन 6 लाख लोगों के रोजगार पूरी तरह से ठप्प पड़े हुए हैं। वहीं राज्य में 2.5 लाख के करीब हिमाचली दूसरे राज्यों से अपने-अपने घर लौट आए हैं। जिनमें से अधिकतर अब बेरोजगारी का सामना कर रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में पहले से ही 8,49,371 पंजीकृत बेरोजगार हैं। ऐसे में अब सरकार के समक्ष इन लोगों के लिए रोजगार के साधन जुटा पाना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है क्योंकि सरकार ने कोरोना महामारी के चलते एक साल तक सरकारी क्षेत्र में भॢतयों पर रोक लगा दी है।

वहीं पिछले 3 माह में राज्य में आत्महत्या करने वालों की संख्या में भी बढ़ौतरी हुई है। कुछ ऐसे मामले सामने आए हैं जिसमें नौकरी छूटने या फिर आय के साधन बंद होने पर डिप्रैशन में आकर लोगों ने आत्महत्या करने जैसे कदम उठाए हैं। हालांकि सरकार दूसरे राज्य से लौटने वाले लोगों का उनकी कार्यकुशलता के आधार पर एक डाटा तैयार कर रही है। लेकिन खुद आर्थिक संकट में घिरी सरकार उनके रोजगार के लिए उचित व्यवस्था करने में असमर्थ है। फिलहाल ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे लोगों को मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी एक्ट) के तहत रोजगार देने की पहल कर दी गई है।-डा. राजीव पत्थरिया
 


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