निष्ठावानों तथा दल-बदलुओं में ‘संतुलन’ बनाने की कोशिश में शिवराज

punjabkesari.in Friday, Jun 19, 2020 - 03:39 AM (IST)

मार्च में शिवराज सिंह चौहान ने रिकार्ड चौथी बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में पदभार संभाला। उन्होंने 15 महीने के भीतर कांग्रेस के कमलनाथ से सत्ता छीन ली। यद्यपि राज्य के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कमलनाथ से सिंहासन छीनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी लेकिन चौहान मध्य प्रदेश में भाजपा के लिए स्पष्ट मुख्यमंत्री बन गए। कुछ राजनीतिक मजबूरियां भी उनके पक्ष में थीं।

बागी कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे के बाद खाली हुई सीटों पर उप-चुनाव जीतने के लिए शिवराज सिंह चौहान अन्य उम्मीदवारों की तुलना में बेहतर थे। भाजपा को खाली पड़ी 24 सीटों में से कम से कम 15 को जीतना है, यदि वह राज्य में एक स्थायी सरकार चाहती है। अभी इसके पास थोड़ा बहुमत है। शपथ ग्रहण करने के अढ़ाई महीने के बाद चौहान के समक्ष कई चुनौतियां हैं। 

सबको साथ लेकर चलना
पहली चुनौती कोविड-19 महामारी से निपटने की है जिसने राज्य में 10 हजार लोगों को प्रभावित किया है। राजनीतिक चुनौतियां भी ज्यादा कठिन हैं। भाजपा ने राज्य में 22 कांग्रेसी बागियों की मदद से सरकार का गठन किया था जिनमें से ज्यादातर कांग्रेस सरकार में मंत्री थे। अब चौहान को अपनी सरकार में सभी को शामिल करना होगा। इसी के चलते कैबिनेट विस्तार में देरी हो रही है। ऐसी आशा की जा रही थी कि यह विस्तार मई तक हो जाएगा,मगर अब 19 जून को राज्यसभा चुनावों के आयोजन के बाद ही विस्तार संभव हो पाएगा। 

राजनीतिक पर्यवेक्षक तथा वरिष्ठ पत्रकार संदीप पौराणिक का कहना है कि केवल 29 मंत्री पद ही उपलब्ध हैं और उम्मीदवारों की लम्बी सूची है। इनमें से 22 दल-बदल करवा कर आने वाले नेता भी हैं। यकीनन उन्हें पार्टी छोड़ भाजपा में आने का पुरस्कार चाहिए। चौहान इस समय ऐसी स्थिति में संतुलन बनाने के लिए कशमकश कर रहे हैं। 

एक पूर्व भाजपा नेता के अनुसार पार्टी में उस समय तनाव बढ़ गया, जब रेवा के विधायक राजिन्द्र शुक्ला ने बॉलीवुड अभिनेता सोनू सूद से मुंबई में फंसे कुछ स्थानीय लोगों को वापस लाने के लिए आग्रह किया। यह उस समय हुआ है, जब चौहान यह दावा कर चुके हैं कि उनकी सरकार प्रत्येक प्रवासी श्रमिक की घर वापसी करवाएगी। सूत्रों के अनुसार चौहान के करीबी शुक्ला को संभावियों की सूची में से निकाल दिया गया है। दल-बदलू कैम्प से पूर्व मंत्री इमरती देवी, महिन्द्र सिंह सिसौदिया, प्रभु राम चौधरी तथा प्रद्युमन सिंह तोमर कुछ प्रमुख दावेदार हैं। शुक्ल और भार्गव के अलावा भाजपा के महत्वाकांक्षियों में सिंधिया की बुआ यशोधरा राजे, विश्वास सारंग, भूपेंद्र सिंह, अजय बिश्रोई तथा सतेंद्र पाटक शामिल हैं। 

उप-चुनाव
24 उप-चुनावों में से 16 ग्वालियर-चम्बल क्षेत्र में आयोजित होने हैं जोकि सिंधिया का गढ़ माना जाता है। कांग्रेस भी कोई मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहती। भाजपा नेता बलेंदू शुक्ला अब कांग्रेस की ओर रुख कर चुके हैं। किसी समय वह दिवंगत माधव राव सिंधिया (ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता) के निकट सहयोगी थे। शुक्ला भी ज्योतिरादित्य सिंधिया के भगवा पार्टी में शामिल होने से नाराज हैं। कुछ दिन पहले पूर्व लोकसभा सांसद प्रेम चंद ‘गुड्डू’ ने भी फिर से देश की सबसे पुरानी पार्टी का दामन थाम लिया। वहीं भाजपा नेता तथा पूर्व मंत्री दीपक जोशी (कैलाश जोशी के बेटे जोकि मध्य प्रदेश के प्रथम भाजपा सी.एम. रहे), ने हाल ही में कहा कि उनके विकल्प खुले हुए हैं। 

प्रभात झा तथा जयभान सिंध जैसे नेता भी सिंधिया के भाजपा में शामिल होने से क्षुब्ध हैं। जयभान ने तो चौहान को यहां तक कह दिया कि वह कांग्रेसी दल-बदलुओं के लिए कोई कैम्पेन नहीं करेंगे। हालांकि इन दोनों को भाजपा ने चुनाव संबंधित टीमों में शामिल कर रखा है। वहीं भाजपा नेता पंकज चतुर्वेदी ने ऐसे सभी दावों को सिरे से नकार दिया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस दिन में सपने देख रही है। उसके पास तो उप-चुनाव लडऩे के लिए कई ठोस नेता ही नहीं है। -संदीप कुमार


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