देश में रक्त का व्यापार शर्मनाक

punjabkesari.in Monday, Jun 14, 2021 - 05:42 AM (IST)

पिछले रक्तदान एक जीवन प्रदान करने वाली गतिविधि है, तभी तो रक्तदान को महादान की संज्ञा दी गई है। हमारे रक्त का हर एक कतरा किसी के प्राण बचाने का स्रोत बन सकता है। हम रक्तदान करके एक पुण्य कार्य करने के साथ दुनिया को स्वस्थ बनाने में मदद कर सकते हैं। रक्तदान के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने व रक्त की जरूरत पड़ने पर उसके लिए पैसे देने की जरूरत नहीं पडऩी चाहिए जैसे उद्देश्यों के लिए 14 जून को विश्वभर में रक्तदान दिवस मनाया जाता है।

दरअसल, इस दिन वि यात ऑस्ट्रियाई जीवविज्ञानी और भौतिकीविद कार्ल लैंडस्टाइनर का जन्म हुआ था। जिन्होंने रक्त में अग्गुल्युटिनिन की मौजूदगी के आधार पर रक्त का अलग-अलग रक्त समूहों-ए.बी.ओ. में वर्गीकरण कर चिकित्सा विज्ञान में अहम योगदान दिया। जिसके कारण उन्हें वर्ष 1930 में शरीर विज्ञान में नोबेल पुरस्कार से स मानित किया गया। समय पर रक्त नहीं मिलने व पैसे नहीं जुटा पाने के कारण भारत में प्रतिवर्ष 15 लाख लोगों की मौत हो जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मापदंड के अनुसार, किसी भी देश में किसी भी स्थिति में उसकी जनसंख्या का कम से कम 1 प्रतिशत रक्त आरक्षित होना ही चाहिए। 

उक्त मानक के अनुसार, हमारे देश में कम से कम 1 करोड़ 30 लाख यूनिट रक्त का हर समय आरक्षित भंडार होना चाहिए। लेकिन पिछले वर्षों के आंकड़ों के अनुसार, हमारे पास प्रतिवर्ष रक्त की औसतन 90 लाख यूनिट ही उपलब्ध हो पाती है। प्रतिवर्ष लगभग 25 से 30 प्रतिशत रक्त की कमी रह जाती है। तंजानिया में 80 प्रतिशत लोग रक्तदान के लिए पैसे नहीं लेते हैं। 

वहीं, ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया में तो यह कानून है कि कोई भी रक्तदान के लिए पैसों की मांग नहीं कर सकता। इसके विपरीत भारत में रक्तदान के लिए पैसे लेने पर किसी प्रकार की रोक नहीं है। यह शर्मनाक है कि भारत जैसे देश में रक्त का व्यापार हो रहा है। निश्चित ही मशीनी युग ने हमारी सोच को विकृत करने व संवेदना को निगलने का काम किया है, तभी तो जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे किसी व्यक्ति के प्राण बचाने के लिए हमें पैसे लेने की जरूरत पड़ रही है। 

रक्त की कमी के अलावा दूसरी चिंताजनक बात रक्त की शुद्धता है। इसलिए संक्रमित रक्त चढ़ाने से होने वाली मौतों को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता हैं। भारत में रक्तदान करने वाले राज्यों के आंकड़ों की बात करें तो मध्य प्रदेश में वर्ष 2006 में 56.2 प्रतिशत, वर्ष 2007 में 65.17 प्रतिशत, वर्ष 2008 में 68.75 प्रतिशत के लगभग रहा। वहीं, हरियाणा की स्थिति में इजाफा हुआ, जिसने अब तक के सर्वाधिक 210 यूनिट का रिकॉर्ड 256 के साथ तोड़ दिया, जो कि काबिले तारीफ है। जबकि राजस्थान के चुरू का आंकड़ा 80 प्रतिशत तक का है। चुरू में 2015 में 7 हजार 219 रक्तदाताओं ने रक्तदान किया। अन्य राज्यों की हालत फिसड्डी है। 

चिंताजनक है कि भारत में कुल जनसं या के अनुपात में एक प्रतिशत आबादी भी रक्तदान नहीं करती है। जबकि थाईलैंड में 95 फीसदी, इंडोनेशिया में 77 फीसदी और यांमार में 60 फीसदी हिस्सा रक्तदान से पूरा होता है। भारत में मात्र 46 लाख लोग स्वैच्छिक रक्तदान करते हैं। इनमें महिलाएं मात्र 6 से 10 प्रतिशत हैं। 

हमारे देश में पर्याप्त मात्रा में ब्लड बैंक नहीं होने की अलग समस्या है। सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी से पता चलता है कि पिछले पांच सालों में देश में सभी ब्लड बैंकों ने कुल मिलाकर 28 लाख यूनिट से ज्यादा खून बर्बाद किया है। अगर इसे लीटर से जोड़ा जाए तो पांच सालों में करीब 6 लाख लीटर खून बर्बाद हुआ है, जो पानी के 56 टैंकरों के बराबर है। 

देश के तेलंगाना राज्य में 31 जिले हैं, जिनमें से 13 जिलों में तो ब्लड बैंक हैं ही नहीं। वहीं, छत्तीसगढ़ में 11 जिले, मणिपुर और झारखंड में 9 जिले, यू.पी. के 4 जिले ऐसे हैं, जहां ब्लड बैंक का कोई अता-पता ही नहीं है। इसके अलावा नागालैंड, उत्तरांचल, त्रिपुरा, कर्नाटक के प्रत्येक 3 जिलों में ब्लड बैंक की तो कोई सुविधा ही नहीं है। सिक्किम के दो जिलों और महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और अंडमान निकोबार द्वीप समूह के एक-एक जिले में ब्लड बैंक उपलब्ध ही नहीं है। 

वहीं बिहार, असम और मेघालय में से प्रत्येक राज्य के पांच जिलों में ब्लड बैंक नहीं हैं। अगर खून की बर्बादी में राज्यों की बात करें तो महाराष्ट्र, यू.पी., कर्नाटक जैसे राज्य इनमें सबसे आगे हैं। भारत जैसे भौगोलिक विभिन्नता वाले विशाल देश में जहां कई क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदाएं अक्सर दस्तक देती हैं, उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में हमारे जवान कत्र्तव्य निभाते हुए खून बहाते हैं तथा हमारे अस्थिर पड़ोसी देश हमेशा युद्ध जैसे हालात पैदा करते हैं, ऐसे में रक्त का पर्याप्त आरक्षित भंडार होना अत्यंत आवश्यक हो जाता है।-देवेन्द्रराज सुथार
 


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