कोरोना की दूसरी लहर : सरकार और जनता

punjabkesari.in Monday, Apr 12, 2021 - 03:25 AM (IST)

पिछले साल हम अति उत्साह में अपना सीना तान रहे थे कि कोरोना को नियंत्रित करने में भारत दुनिया में सबसे आगे निकल गया है। लेकिन आज हम फिर भयाक्रांत हैं। कोरोना से लडऩे के लिए केंद्र और राज्य सरकारें अपने-अपने तरीके से भिन्न-भिन्न कदम उठा रही हैं। जहां असम, बंगाल और केरल जैसे चुनावी राज्यों में कोई प्रतिबंध नहीं है, वहीं दूसरे कई राज्यों में मास्क न पहनने पर पुलिस पिटाई भी कर रही है और चालान भी। यह बात लोगों की समझ में नहीं आ रही कि जिन राज्यों में चुनाव होता है वहां  घुसने से कोरोना क्यों डरता है? इसका जवाब न तो किसी सरकार के पास है न तो किसी वैज्ञानिक के पास है। 

जिस तरह कुछ राज्यों में कोरोना की रोकथाम के लिए रात का कफ्र्यू लगाया गया है, उससे लोगों को भय सता रहा है कि कहीं चुनावों के बाद फिर से लाकडाऊन न लगा दिया जाए। पिछले लाकडाऊन का उद्योग और व्यापार पर भारी विपरीत प्रभाव पड़ा था, जिससे देश की अर्थव्यवस्था अभी उबर नहीं पाई है। सबसे ज्यादा मार तो छोटे व्यापारियों और कामगारों ने झेली। इसलिए आज कोई भी लाकडाऊन के पक्ष में नहीं है। 

छोटे व्यापारी की तो समझ में आती है लेकिन उद्योगपति अनिल अम्बानी के बेटे अनमोल अम्बानी तक ने ट्वीट कर एक शृंखला पोस्ट कर पूछा है कि, ‘जब फिल्म अभिनेता शूटिंग कर सकते हैं, क्रिकेटर देर रात तक क्रिकेट खेल सकते हैं, नेता भारी जनसमूह के साथ रैलियां कर सकते हैं, तो व्यापार पर ही रोक क्यों? हर किसी का काम उनके लिए महत्वपूर्ण है।’ अनमोल ने इसके साथ ही अपने ट्वीट में कोरोना ‘पैनडेमिक’ के प्रसार को रोकने के लिए लगाए जाने वाले लाकडाऊन को ‘स्कैमडैमिक’ तक कह दिया। 

उधर भारत के वैज्ञानिकों ने दिन रात शोध और कड़ी मेहनत के बाद कोरोना का वैक्सीन बनाया है। पर बहुत कम लोगों को यह पता है कि कोरोना महामारी को वैक्सीन की ढाल देकर भारतीय कम्पनी भारत बायोटैक द्वारा निर्मित कोरोना की वैक्सीन ‘कोवैक्सिन’ की सफलता के पीछे हैदराबाद के समीप ‘जिनोम वैली’ का हाथ है। ‘जिनोम वैली’ असल में एक जीव विज्ञान के शोध का केंद्र है।

इस समय यह दुनिया में तीसरे दर्जे पर है, जहां लाखों की तादाद में वैक्सीन की ईजाद और निर्माण होता है। 1996 में जब एक प्रवासी भारतीय वैज्ञानिक डा. कृष्णा इला ने भारत बायोटैक कम्पनी की स्थापना ‘जिनोम वैली’ में की थी तो उन्हें इस बात की जरा भी कल्पना नहीं होगी कि एक दिन ‘जिनोम वैली’ ही दुनिया को कोरोना महामारी से लडऩे वाली वैक्सीन प्रदान करेगी। 

‘जिनोम वैली’ को विकसित करने में तेलंगाना कैडर के वरिष्ठ आई.ए.एस. अधिकारी बी.पी.आचार्य और उनकी टीम का महत्वपूर्ण योगदान रहा। जिन्होंने रात-दिन एक कर के इस कामयाबी को हासिल किया है। आज ‘जिनोम वैली’ जीव विज्ञान का एक एेसा केंद्र बन चुका है जहां 300 से अधिक दवा कम्पनियां हैं। जो न सिर्फ कोरोना व अन्य बीमारियों के वैक्सीन का निर्माण कर रही हैं, बल्कि 20 हजार से ज्यादा लोगों को रोजगार भी दे रही है।

यह देश के लिए एक गर्व की बात है। कई दशक पहले उठाए गए इस कदम की बदौलत आज हम कोरोना जैसी महामारी से लडऩे में सक्षम हुए हैं। यह डा. कृष्णा इला की दूरदॢशता और बी.पी. आचार्य जैसे कर्मठ अधिकारियों की वजह से ही संभव हुआ है। बावजूद इस सबके कोरोना की दूसरी लहर के साथ कोरोना पूरे दम से लौट आया है। कुछ ही महीनों पहले जब इसका असर कम होता दिखा तो लोगों ने इस विषय में सावधानी बरतना कम कर दिया था। 

उधर दिल्ली उच्च न्यायालय के एक फैसले ने नया विवाद खड़ा कर दिया है। इस फैसले के अनुसार यदि आप अपनी बंद गाड़ी में अकेले भी सफर कर रहे हैं तो भी मास्क लगाना अनिवार्य है। यह बात समझ से परे है इसलिए सोशल मीडिया पर इस फैसले को लेकर काफी बहस छिड़ गई है। लोग प्रश्न पूछ रहे हैं कि बंद गाड़ी में अकेले सफर करने वाले को कोरोना के संक्रमण का खतरा अधिक है या राजनीतिक रैलियों और कार्यक्रमों में बिना मास्क आने वाली भीड़ को? उधर उत्तर प्रदेश के सहारनपुर का एक वीडियो वायरल हो रहा है जहां कुछ अधिकारी एक दुकानदार को ठीक से मास्क न पहनने पर धमकाते हुए नजर आ रहे हैं। 

संतोष की बात यह है कि कोरोना की दूसरी लहर भारत में तब आई है जब हमारे पास इससे लडऩे के लिए वैक्सीन के रूप में एक नहीं बल्कि दो-दो हथियार हैं। पर अभी तो देश के कुछ ही लोगों को वैक्सीन मिली है। फिर भी भारत ने कोरोना वैक्सीन को दूसरे देशों में भेज दिया है। यह अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति की दृष्टि से सराहनीय कदम हो सकता है, पर देशवासियों की सेहत और जिंदगी बचाने की दृष्टि से सही कदम नहीं था। सरकारों को वैक्सीन लगाने की मुहिम को और तेज करना होगा, जिससे इस महामारी के कहर से बचा जा सके।-विनीत नारायण


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