‘सागर की लहरें कुछ और ही कह रही हैं’

punjabkesari.in Saturday, Oct 24, 2020 - 03:49 AM (IST)

राजनीति को जानने वाले थोड़ा-सा पंजाब के वर्तमान हालात पर नजर डाल कर बताएं कि समुद्र की लहरों का अनुमान क्या है? कोरोना की इस नाजुक परिस्थिति में खेतीबाड़ी के तीनों कानूनों का लागू हो जाना, शिरोमणि अकाली दल का भारतीय जनता पार्टी को अलविदा कह देना, पंजाब सरकार का केंद्र सरकार के इन कृषि कानूनों की आड़ में विरोध में डट जाना, किसान जत्थेबंदियों का उग्र होकर रेल पटरियों को रैन-बसेरा बना लेना, भाजपा पंजाब के प्रधान पर जानलेवा हमला होना, कांग्रेस के माननीय संसद सदस्य का सरे-बाजार यह कहना कि पंजाब प्रधान भाजपा पर मैंने हमला करवाया, आगे भी करवाऊंगा। 

तमाम घटनाक्रम क्या इशारा कर रहा है? सागर की लहरें कह रही हैं तूफान आने वाला है। यह तूफान पंजाब में 1980 से 1992 के बीच भी आया था। 25,000 मासूम जिंदगियों को यह तूफान लील गया था। कानूनी पहलू भी राजनेता देख लें। आतंकवाद के दौर में आतंकियों के बीसियों हमलों को नाकाम बनाने वाले कामरेड बलविंद्र सिंह को उसके घर में घुस कर मार दिया गया। 

लुधियाना में एक फाइनांस कम्पनी से 15 किलो सोना और नकदी लेकर लुटेरे फरार हो गए। आदमपुर की बैंक डकैती में छ: लाख रुपए और बैंक के सुरक्षागार्ड की हत्या कर लुटेरे भाग गए। पाकिस्तान नित्यप्रति टनों के हिसाब से हथियार और हैरोइन पंजाब और जम्मू-कश्मीर में भेजने में कामयाब हो रहा है। नेपाल, चीन और पाकिस्तान एक प्लेटफार्म पर आ गए हैं। पाकिस्तान सिख साइको (मनोविज्ञान) को अपने पालतू लोगों से उतार रहा है। आतंकियों को ट्रेनिंग दे रहा है। वहीं राजनीतिक पार्टियां चाहे आप हो या अकाली या कांग्रेस एकाएक केंद्र सरकार के विरुद्ध विष-वमन कर रही हैं। नरेन्द्र मोदी इन पार्टियों के लिए सांझा दुश्मन बन गया है। 

तीसरा 1980 के दशक में पंजाब कांग्रेस के दो शीर्ष नेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की चक्की में पिस गया। एक थे देश के गृहमंत्री ज्ञानी जैल सिंह, दूसरे थे पंजाब के मुख्यमंत्री स. दरबारा सिंह।  मोहरा बना लिया एक धार्मिक युवा चेहरा। उस युवक को आगे रख खालिस्तान के नाम पर एक खूनी खेल खेला गया। साधारण पंजाबी जिसे खालिस्तान की ए.बी.सी. का भी पता नहीं था, मार डाला गया। ङ्क्षहद समाचार पत्र समूह के संस्थापक वयोवृद्ध लाला जगत नारायण के खून से यह खेल शुरू हुआ तो देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पंजाब के मुख्यमंत्री स. बेअंत सिंह की हत्या के बाद बारह सालों में रुका यह खूनी खेल। आज पंजाब में फिर राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं में टकराव शुरु हुआ है। 

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह और कांग्रेस प्रधान सुनील जाखड़ एक तरफ, तो संसद सदस्य माननीय प्रताप सिंह बाजवा, भूतपूर्व कांग्रेस प्रधान और संसद सदस्य शमशेर सिंह दूलो दूसरी तरफ। एक तीसरी तरफ भी हैं नवजोत सिंह सिद्धू। यह सारी ताकतें सिख साइको से प्ले कर रही हैं। और यह सिख साइको सभी जानते हैं कि टकराना जानती हैं। भोले-भाले हैं सिख मित्र परन्तु आपा वारना इनको घुट्टी में मिला है। भारत में मुगलों का राज था तो उनसे टकरा गए। पंजाब 1980 से 1992 की अंधेरी रातों से बच कर फिर अपने पैरों पर जो खड़ा दिखाई दे रहा है तो उसमें मुझे कुछ राजनीतिक चेहरे और वह भी रणनीति में परिपक्व चेहरे याद आने लगे हैं। कहां डा. बलदेव प्रकाश, वीर यज्ञ दत्त शर्मा, बाबू हिताभिलाषी, बलराम जी दास टंडन, जत्थेदार गुरचरण सिंह टोहरा, स. प्रकाश सिंह बादल, स. सुरजीत सिंह बरनाला,  परन्तु  आज 1980 को पुन: जागृत किया तो पंजाब में ऐसे समझदार नेता कहां से लाएंगे? 

ले देकर कैप्टन अमरेन्द्र सिंह हैं परन्तु वह स्वयं आग लगाने वालों की पंक्ति में खड़े हो गए। आग बुझाएगा कौन? वहीं पाकिस्तान हर समय इस सूबे की नब्ज दबाए हुए है। इस पंजाब की सरहद पर दहाड़ रहा है। इस पंजाब में 90 प्रतिशत किसान सिख हैं। पकी हुई खेती छोड़ या सड़कों पर बैठा है या रेल की पटरियों पर लेटा है। एक पक्ष कह रहा है खेती संबंधी तीनों कानून किसान हितकारी हैं, दूसरा पक्ष कह रहा है यह तीनों कानून किसानों को तबाह करने वाले हैं। वर्तमान में पंजाब के जो हालात बने हुए हैं उन्हें ऐसे ही फैलने दें, फलने-फूलने दें? या श्री गुरु गोबिंद सिंह साहिब के सच्चे अनुयायी बन इस पंजाब को संवारने के लिए आपा वारने के लिए तैयार हो जाएं?

आप, कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल, कम्युनिस्ट, किसान जत्थेबंदियां और भाजपा भी जहां-जहां बैठे हैं वहां  से ऊपर उठ जाएं। राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं छोड़ इस पंजाब को 1980 से 1992 के काले दौर की तरफ न मुडऩे दें। श्री गुरु गोबिंद सिंह साहिब जी ने तो सब कुछ वार दिया था तो क्या हम उनके अनुयायी होकर अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं नहीं छोड़ सकते? राजनीतिक पार्टियां पंजाब बचाना चाहती हैं या 2022 का विधानसभा चुनाव जीतना? पंजाब बच जाएगा तो समझो सब कुछ बच गया और यदि पंजाब 1980-1992 की तरफ मुड़ गया तो चुनाव को छोड़ो, चुनाव लडऩे वाले भी नहीं बचेंगे। घाटे का सौदा करना भी राजनीतिक पार्टियां कभी-कभार सोच लिया करें।-मा. मोहन लाल (पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)


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