डर लगता है ‘पंजाब की तस्वीर’ देख कर

punjabkesari.in Sunday, Sep 08, 2019 - 01:52 AM (IST)

पिछले दिनों मैं पंजाब से बाहर दक्षिण की ओर था। एक भले व्यक्ति ने सहज ही पूछ लिया कि पंजाब का क्या हाल है? क्या बताऊं, एक घटना ही काफी है, अंदाजाआप खुद लगा लेना। यह कहकर मैंने उसे घटनाबताई,जिसे सुनकर उसकी आंखें नम हो गर्ईं। घटना ऐसेथी : मुक्तसर जिले के एक गांव में एक साधारण किसान का बेटा चिट्टा (स्मैक) लेने लग पड़ा। जमीन भी थोड़ी थी। 

अभावों तथा कर्जे केे मारे बाप ने लड़के को सीधे रास्ते डालने के लिए बड़े प्रयास किए मगर परिणाम यह निकला कि लड़के ने अपने बाप को भी चिट्टे पर लगा लिया। दोनों बाप-बेटे चिट्टे ने निचोड़ लिए। नशे की प्राप्ति के लिए पैसे न मिलने के कारण जमीन बेचने लगे तो बहू तथा सास ने एकता कर ली और कोर्ट में जाकर स्टे ले लिया। गुस्से में आए बाप-बेटे ने दोनों महिलाओं को मारना चाहा। किसी तरह मांतो बच गई मगर लड़के ने आंगन में बैठी कपड़े धो रही पत्नी के सिर में कस्सी मारकर उसे खत्म कर दिया। बाप-बेटा जेल में हैं और घर में दुखों की मारी अकेली औरत रह गई है। वह क्या करे? जीते जी मरों जैसी है।

ऐसी घटनाएं अब पंजाब में आम हो गई हैं। प्रश्न मुंहबाए खड़ा है कि क्या यह वही पंजाब है जिसकी तस्वीर देखते अब डर लगने लगा है? गुरुओं-पीरों, ऋषियों-मुनियों, कवियों-कलाकारों, योद्धों-शूरवीरों तथा देशभक्तों का पंजाब? किसने बनाई है मेरे पंजाब की खून में भीगी ऐसी तस्वीर? लगता है कि पंजाब की तस्वीर को खून के साथ-साथ चिट्टे का नशा भी लग गया है, जो कभी इस पर से उतरना नहीं। धुंधली तथा उदासी की मारी मेरे पंजाब की तस्वीर देखने वालो कब तक इसे देखते रहोगे। सोचते और कोसते रहोगे अपने आप को। तस्वीर मेरे हाथों में है, अनेकों प्रश्र मन-मस्तिष्क में शोर मचा रहे हैं। अजीब अवस्था है। 

रंगले पंजाब की महिमा गाने वाले गायक गूंगे हो गए हैं और कहते हैं कि पंजाब रंगला नहीं बल्कि कंगला बनकर रह गया है और उनसे झूठे गीत बनाकर नहीं गाए जाने। पंजाब की सिफ्तें सुनाने तथा गाने वालों के मुंह पर ताले लग गए हैं। अपना ‘डायरीनामा’ लिखते हुए दिल में हूक उठ रही है लेकिन यदि ये बातें हमने नहीं करनी तो और कौन करेगा? 

कोई समय था कि शाम के समय यदि लाल आंधी चढऩी तो बुजुर्गों ने कहना कि आज खैर-सुख नहीं है, जरूर किसी नौजवान का कत्ल हो गया है और अब बिना लाल आंधी चढ़े ही दिन-दिहाड़े पंजाब में नौजवानों के अंधाधुंध कत्ल हो रहे हैं और लाशों के ढेर लग रहे हैं। कोई मां को काट रहा है, कोई पत्नी को, कोई बेटे को, कोई बेटी को और कोई जालिम बेटा बाप को टुकड़े-टुकड़े कर रहा है। गत दिवस मोगा के गांव नत्थुवाल गर्बी में एक परिवार के सदस्यों के इक_े कत्ल ने पंजाबियों के सीनों में आग लगा दी। इससे पहले मजीठा जिले में इश्क में अंधे एक व्यक्ति ने घर के सारे सदस्य नहर में बहा दिए। लाशें बोरों में मिलीं। ऐ पंजाब, कैसी मानसिकता हो गई है तेरे बेटों की?

जड़ों में बैठ गया है चिट्टा
यह चिट्टा पता नहीं क्या शै है? हर ओर चिट्टा-चिट्टा हो रहा है। चिट्टा चाट गया है पंजाब के बेटों को और अब बेटियों को निगलने लगा है। घरों के घर तबाह कर दिए हैं चिट्टे ने। मांओं ने सिरों पर सफेद चुन्नियां ओढ़ ली हैं और पल्ले सारी उम्र का रोना पड़ गया। चिट्टे की ओवरडोज से मरते लड़कों की वीडियोज देख कर दिल दहल जाता है। कोई दिन सूखा नहीं जाता जब नशे की ओवरडोज से लड़कों के मरने की खबरें न आती हों। चिट्टे के उजाड़े परिवारों के दिलों की सुनो, हाल जानो तो रौंगटे खड़े हो जाते हैं। एक के बाद एक लड़के दुनिया से रुख्सत हो रहे हैं। कारें, नारें, हवेलियां तथा जमीनें पीछे लावारिस रह गई हैं। ऐ पंजाब प्यारे, तूने कभी यह सोचा था कि नौबत यहां तक आ जाएगी? मैं स्पष्ट कहता हूं कि चिट्टे के सौदागरों को न अभी नत्थ पड़ी है और न पड़ती दिखती है। 

परदेसों को चली जवानी
पंजाब के थाने, अदालतें, अस्पताल, दफ्तर और यहां तक कि श्मशानघाट भी पूरी तरह से भरे नजर आते हैं। जिधर मर्जी चले जाओ, रोना-धोना है, रोष मुजाहिरे हैं। गोली चलानी तो अब बहुत छोटी और सामान्य बात हो गई है, कोई परवाह नहीं, जब और जहां मर्जी गोली चला दी। और तो और, अभी हाल ही की बात है बाढग़्रस्त लोगों को सामान बांटने को लेकर एक गांव में शोर पड़ गया और गोली चला दी, कई जख्मी कर दिए। परमात्मा के कोप का ताप तो अभी तक झेल ही रहे थे, अब साथ में मानवीय कोप भी शामिल हो गया। इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि सड़क हादसों ने पंजाब में घरों के घर खाली कर दिए और होते जा रहे हैं। कैंसरहर गली, हर मोड़ तथा हर घर में मुंह फाड़े घूम रहा है। 

कहीं पढ़ा था, किसी विद्वान ने लिखा था कि यदि व्यक्ति को अपने ही घर से डर लगने लगे तो उस घर में रहना मुश्किल हो जाता है। बात करता हूं पंजाब की पढ़ी-लिखी जवानी की। 12वीं की, आईलैट्स से बैंड लिए और जहाज पकड़ परदेस की ओर चल दिए। पंजाब के लाखों बेटे-बेटियां परदेस जा बैठे हैं जिन्होंने कभी वापस नहीं लौटना। हमारे बुजुर्ग कहा करते थे कि दूध और पूत (बेटे)कभी बेचे नहीं जाते। हमने परदेस भेजते समय बेटों के साथ पैसे भी दिए हैं। एक विद्यार्थी के पीछे कम से कम 15 लाख रुपए और यदि साढ़े तीन वर्षों को जोड़ें तो पंजाब का चार लाख से भी अधिक बच्चा परदेस गया है तो बात अरबों रुपयों तक जाएगी। क्या पंजाब का यह गया पैसा कभी वापस आएगा? उत्तर न में मिलता है। किसी भी एयरपोर्ट पर चले जाओ, विशेषकर दिल्ली या अमृतसर, स्टडी वीजा पर जा रहे लड़के-लड़कियों की कतारें इतनी लम्बी हैं कि इमीग्रेशन जांच वालों को सिर पकड़ कर बैठे मैं खुद देख आया हूं। 

ऐ पंजाब प्यारे, तेरे पास क्या रह गया है, जब पढ़ी-लिखी तथा डिग्री-डिप्लोमों वाली जवानी तुझसे मुंह फेर चली है। कालेज तथा यूनिवर्सिटियों में दाखिले नहीं हुए। इन्हें खाली देखकर अध्यापक भी दौडऩे लगे हैं। कहा करते थे कि पंजाब का किसान देश का पेट भरता है, अन्नदाता है। खूब अनाज पैदा करता है मगर मालवा क्षेत्र में लगातार फांसी लगा रहे और स्प्रे पी रहे अन्नदाताओं के घरों को पीछे कौन देखेगा? कोई भी नहीं। किसानों की आत्महत्याएं न तो केन्द्र रोक सका और न स्थानीय सरकारें। ऐ पंजाब प्यारे, ये तो तेरी उदासी भरी फीकी फोटो में से देखी कुछ ही झलकियां हैं। गहरे हरे रंगों तथा सुंदरता भरी तेरी तस्वीर देखने की चाहत के लिए तो सिर्फ कामना ही की जा सकती है।-मेरा डायरीनामा निंदर घुगियाणवी
 


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