सैनेटरी नैपकिन बदलते दौर में ‘कानाफूसी’ का विषय नहीं

punjabkesari.in Sunday, Sep 06, 2020 - 04:07 AM (IST)

देशभर के लगभग 6000 जन औषधि केंद्रों में 27 अगस्त से ‘सुविधा’ नाम से ऑक्सो बायोडिग्रेडेबल सैनेटरी नैपकिन का मात्र 1 रुपए में उपलब्ध होना गरीबी रेखा के भीतर जीने वाली महिलाओं के लिए सुखद आश्चर्य और राहत भरी खबर कही जानी चाहिए। आजादी के 73 साल बीत जाने पर भी जिस विषय पर बात करने में लोग संकोच करते हैं, माननीय प्रधानमंत्री जी द्वारा लाल किले की प्राचीर से सैनेटरी नैपकिन की बात करना अत्यंत दुर्लभ है। 

विश्व भर में कहीं भी ऐसा उदाहरण नहीं मिलता जहां किसी प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम संबोधन में पहले शौचालय, फिर सैनेटरी नैपकिन की बात कही हो। वास्तव में यह दोनों मुद्दे स्त्रियों के लिए मूलभूत आवश्यकता तथा पर्सनल हाइजीन होने के कारण अत्यंत महत्वपूर्ण तथा संवेदनशील हैं। विडंबना यह है कि इस पुरुष प्रधान समाज में इस संवेदनशील विषय पर खुली चर्चा करने के प्रति अरुचि ही दिखाई गई है। 

‘माय पीरियड’ ब्लॉग की एक पोस्ट की मानें तो एक आश्चर्यजनक सत्य हमारे समक्ष उद्घाटित होता है कि सैनेटरी पैड्स को सर्वप्रथम महिलाओं के लिए नहीं बल्कि पुरुषों की सुरक्षा के दृष्टिकोण से बनाया गया था। इसका प्रयोग प्रथम विश्व युद्ध में घायल होने वाले सैनिकों के अत्यधिक बहते रक्तस्राव को रोकने के लिए हुआ था और उस समय फ्रांस की नर्सों ने बेंजामिन फ्रैंकलीन के एक आविष्कार से प्रेरित होकर इसे तैयार किया था और उनके द्वारा बनाए गए इस नैपकिन का उद्देश्य था-आसानी से अत्यधिक बहते रक्तस्राव को रोकना और एक बार प्रयोग के बाद इसे डिस्पोज कर देना। 

इन्हीं पैड्स को बाद में फ्रांस में कार्यरत अमेरिकी नर्सों ने पीरियड्स के दौरान प्रयोग में लाना आरंभ किया। यहीं से यह महिलाओं के स्वास्थ्य का प्रहरी बन गया। अब यदि हम भारत की बात करें तो इस 21वीं सदी में भी दुर्भाग्यपूर्ण सत्य ही हमारे सामने आता है। पिछड़े इलाकों तथा झुग्गी-झोंपडिय़ों में रहने वाली महिलाएं अज्ञानतावश तथा आॢथक तंगी के कारण ऐसे अस्वास्थ्यकारी साधनों का इस्तेमाल करती हैं जिन पर विश्वास ही नहीं होता और जिनका उनके स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। 

ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि जन औषधालय सैनेटरी पैड्स की उपलब्धता के साथ उसकी गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दें और इस्तेमाल की समयावधि के बारे में भी महिलाओं को समझाएं।  इसके साथ ही यह भी आवश्यक है कि निचले इलाकों और झुग्गी-झोंपडिय़ों में रहने वाली महिलाओं को भयावह बीमारियों से बचाने के लिए इसके प्रभावी वितरण की भी गंभीर कोशिशें की जाएं। 

असम, बिहार, केरल आदि राज्यों का बाढ़ की चपेट में आने पर बाढ़ पीड़ित महिलाओं के लिए सरकार से सैनेटरी पैड्स उपलब्ध कराने की बात कही जाती है। प्रधानमंत्री जी के भाषण के अनुसार महिलाएं कोयले की खान से लेकर फाइटर प्लेन उड़ाकर आसमान की बुलंदियां चूम रही हैं ऐसे में इसकी सहज उपलब्धता पर प्रत्येक महिला का अधिकार है अत: स्टेशन, बस स्टैंड, कालेज, स्कूल, अस्पताल, एयरपोर्ट आदि स्थानों पर सैनेटरी पैड वैंडिंग मशीन होनी ही चाहिए तथा इनकी गुणवत्ता का भी पूरा-पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए क्योंकि इनका सीधा संबंध महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ा होता है। 

अत: यह हैल्थ पैरामीटर के तहत ही निर्मित होने चाहिएं क्योंकि समाचार यह बताते हैं कि कई स्थानों पर इन मशीनों के होने पर भी नैपकिन की गुणवत्ता के अभाव में इनका प्रयोग नहीं हो पाता। वस्तुत: यह एक ऐसा विषय है जिस पर घर के कमरे में भी धीमे स्वर में बात की जाती रही है परन्तु जहां ‘पैडमैन’ फिल्म ने इस धीमे स्वर में आवाज भरी, वहीं प्रधानमंत्री के उद्घोष ने तो इस ‘टैबू’ को देश निकाला देकर स्वतंत्रता की वर्षगांठ पर रूढि़वादी सोच की गांठ को खोल दिया। 

यद्यपि ‘फेयर एंड लवली’ द्वारा अपना नाम बदलकर ‘ग्लो एंड लवली’ किया जा चुका है। ऐसी ही मांग ‘व्हिस्पर’ सैनेटरी नैपकिन के लिए भी की गई थी। पी. एंड जी. कम्पनी द्वारा निर्मित सैनेटरी नैपकिन का नाम जहां यू.एस., यूके, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी और अफ्रीका में ‘ऑलवेज’ है, वहीं भारत में इसका नाम ‘व्हिस्पर’ है। बेंगलुरू की श्रेया गुप्ता ने ऑनलाइन पटीशन याचिका दायर की है कि इस नाम को बदला जाए। 

आज की युवा पीढ़ी का कहना है, नाम हमारी सोच को दर्शाता है और ‘व्हिस्पर’ का अर्थ है-‘कानाफूसी करना’। बदलते दौर में अब यह विषय कानाफूसी का नहीं रहा बल्कि सामान्य चर्चा का हो चुका है। इसी सत्य पर मुहर लगाई है-सुप्रसिद्ध जोमैटो कम्पनी के सी.ई.ओ. ने। अपने महिला कर्मचारियों तथा ट्रांसजैंडर को पीरियड लीव देने का जोमैटो का यह कदम देश की अन्य बड़ी और मल्टीनैशनल कम्पनियों के लिए भी प्रेरणा स्रोत होना चाहिए, जहां बड़ी संख्या में महिलाएं 10 से 12 घंटे तक कार्यरत रहती हैं।-डा. रंजना
 


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