श्रीजा के हौसले को सलाम

punjabkesari.in Monday, Aug 01, 2022 - 05:15 AM (IST)

श्रीजा नाम की बच्ची ने बिहार में दसवीं की परीक्षा में सी.बी.एस.ई. बोर्ड में टॉप किया है। बताया जा रहा है कि मां की मृत्यु के बाद इस बच्ची को पिता ने छोड़ दिया था और दूसरा विवाह कर लिया था। फिर कभी इसकी खोज-खबर नहीं ली। वह अपने नाना-नानी के यहां रहकर पढ़ी-लिखी है। 

आज जब वह अपनी मेहनत से सुर्खियों में है तो वही पिता उससे सम्पर्क करना चाहता है, जिसने इतने दिनों में कभी उसकी खोज-खबर नहीं ली। पांच साल की उम्र की इस बालिका से किनारा कर लिया। हमारे समाज में यह नृशंसता की नई बात तो नहीं है। कहावत प्रचलित है कि मां दूसरी तो बाप तीसरा। मां के चले जाने के बाद बच्चों पर क्या गुजरती है, ये तो वही जानते हैं। श्रीजा सौभाग्यशाली है कि उसे सहारा देने के लिए उसके नाना-नानी, मामा आदि मौजूद थे, वरना न जाने उसका क्या होता। 

ऐसा क्या था कि मां के अभाव में पिता ने इस बच्ची को पालना तो दूर इससे मुंह ही मोड़ लिया। आखिर कानून में ऐसे व्यक्ति की क्या सजा निर्धारित है। पिता के परिवार में उसके अलावा और लोग भी तो रहे होंगे। दादा-दादी, चाचा-चाची, ताऊ, बुआ। क्यों उन्होंने इस बच्ची की कोई खोज-खबर नहीं ली। वैसे भी लड़की की जिम्मेदारी भला कोई क्यों उठाए। बल्कि लड़की-लड़का क्या, दूसरे के बच्चे की जिम्मेदारी उठाने के लिए अक्सर ही कोई तैयार नहीं होता। जब पिता ही अपना नहीं, तो फिर अपना कौन है। 

ज्यादा से ज्यादा वे उसे किसी अनाथालय के भरोसे छोड़ आते। यही नहीं वह स्त्री जिससे श्रीजा के पिता ने विवाह किया, वह भी तो कुछ मानवीयता दिखा सकती थी। लेकिन क्यों दिखाती, एक जिम्मेदारी सिर पर न आन पड़ती। जिम्मेदारी से बचने के आसान रास्ते हमें बहुत अच्छी तरह से मालूम होते हैं। 

वैसे भी सौतेली मांओं के अत्याचारों की कहानियां आज की बात नहीं हैं, इनसे तो हमारी बहुत-सी प्राचीन कहानियां भरी पड़ी हैं। कोई कह सकता है कि इस मामले में मां की तो कोई भूमिका ही नहीं है, अपराध तो पिता का है। सही है। लेकिन मां भी अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती। सिर्फ स्त्री होने के नाते किसी को अपराध से बरी नहीं किया जा सकता। आखिर श्रीजा भी तो एक लड़की ही है। वह बिना किसी अपराध के सिर्फ इस कारण से कि उसकी मां नहीं रही, सारी मुसीबतें झेलने के लिए अकेली क्यों छोड़ दी गई। यूं हम बड़े मानवीय समाज होने का दावा करते हैं। खुद को अहिंसक कहते हैं। इससे बड़ी हिंसा क्या होगी कि एक बच्ची को इस तरह से भटकने के लिए छोड़ दिया जाए। परिवार से दर-बदर कर दिया जाए।

ऐसे दुर्भाग्यशाली बच्चों की कहानियां अक्सर सामने आती ही रहती हैं कि परिवार के बिना जीवन बिताने के लिए जब वे मजबूर हुए, तो उन्हें किन-किन आफतों से गुजरना पड़ा। कभी खाने को कुछ मिला, कभी न मिला, पढ़ाई-लिखाई की तो बात कौन करे। बहुत से अपराधियों के चंगुल में फंस गए और वहां से कभी निकल नहीं सके। बहुत से जान से ही हाथ धो बैठे। अपने घर तो कभी लौट ही नहीं सके। लौटते भी कैसे, वहां कौन उनका स्वागत करने के लिए बैठा था। ऐसे में यदि लड़की हुई तो उसके दर्दिन और दुर्भाग्य के कहने ही क्या। 

सोचें कि अगर श्रीजा के नाना-नानी का घर न होता तो वह कहां जाती, किसी परीक्षा में अव्वल रहना तो दूर की ही बात है। जो लोग इन दिनों हर बात पर परिवार को कोसते हैं, उन्हें यह देखना चाहिए कि हमारी एक्सटैंडेड फैमिलीज किस तरह से किसी परेशान बच्चे का सहारा बनती हैं। इन रिश्तों को जिलाए रखने की जरूरत है। रिश्ते सिर्फ बोझ ही नहीं होते, वे वक्त और जरूरत पडऩे पर कितना सहारा बनते हैं, मदद करते हैं, ये इस बच्ची के उदाहरण से समझा जा सकता है। 

क्या पता इस बच्ची के पिता को अपनी गलती महसूस हुई है या बच्ची की सफलता ने उसे उससे मिलने को बाध्य किया है क्योंकि किसी की सफलता में हिस्सेदारी सब बंटाना चाहते हैं। उसे सब तरफ तारीफ मिल रही है। लाखों लोग उसके वीडियो को देख चुके हैं। उसे बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है। सातवीं कक्षा में भी उसे सर्वश्रेष्ठ छात्रा का ईनाम मिल चुका है। वह कत्थक नृत्य भी जानती है। कायदे से तो सरकार को इस बच्ची की हर तरह से मदद करनी चाहिए। उसके नाना-नानी और मामा को सलाम, जिन्होंने इस बच्ची को अकेला नहीं छोड़ा। काश, फिर कोई श्रीजा इस देश में न बने। उसके पिता की तरह कोई पिता ऐसा न हो, जो अपनी बच्ची को इस तरह से छोड़ दे।-क्षमा शर्मा 
 


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