शिपयार्ड घोटाले में सरकारी बैंकों की भूमिका

punjabkesari.in Tuesday, Mar 01, 2022 - 05:19 AM (IST)

ए.बी.जी. शिपयार्ड पर 22,000 करोड़ रुपए का सरकारी बैंकों को चूना लगाने का आरोप है। इस कंपनी ने पिछले 16 वर्षों में पानी के 165 जहाज बनाए, जिनमें से 46 का निर्यात किया गया। इतनी बड़ी संख्या में जहाजों का निर्यात करना इस बात को दर्शाता है कि कंपनी सुदृढ़ थी। इसके अतिरिक्त कंपनी को अंतर्राष्ट्रीय जहाजरानी रेटिंग एजैंसियां, जैसे लॉयड्स, ब्यूरो वैरिटास, अमेरिकन ब्यूरो ऑफ शिपिंग एवं अन्य द्वारा अच्छी रैंकिंग दी गई थी। लेकिन 2008 के वैश्विक संकट ने कंपनी को झटका दिया। इनके द्वारा बनाए गए जहाजों की मांग कम हो गई और धीरे-धीरे यह कंपनी घाटे में जाने लगी। 

2013 में इस कंपनी के द्वारा लिए गए लोन को नॉन परफॉॄमग एसैट यानी खतरे के लोन बताया जाने लगा। तब भी इसमें घोटाले का कोई आरोप नहीं था। इसके बाद कंपनी की 2016 की ऑडिट रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया कि कंपनी के खाते पारदर्शी रूप से प्रस्तुत किए गए हैं, यद्यपि कंपनी को घाटा अवश्य हुआ। पुन: घोटाले का कोई संकेत नहीं दिया गया। जनवरी 2018 में इस कंपनी को लोन देने वाले बैंकों की एक मीटिंग में तय किया गया कि इसके खातों का आपराधिक ऑडिट कराया जाए। इस कार्य के लिए अंतर्राष्ट्रीय सलाहकारी कंपनी अन्स्र्ट एंड यंग को नियुक्त किया गया, जिसने जनवरी 2019 में अपनी रिपोर्ट में बताया कि कंपनी ने कुछ रिसाव किया है। कंपनी की विदेशी सबसिडियरियों के माध्यम से कुछ रकम कंपनी के निदेशकों आदि के व्यक्तिगत खातों में ट्रांसफर की गई है। 

ए.बी.जी. शिपयार्ड को लोन देने वाले बैंक मुख्यत: सरकारी हैं। आई.सी.आई.सी.आई. इनका लीड बैंक है, यानी इस विशाल लोन को मैनेज करने की प्रमुख जिम्मेदारी इस बैंक की थी। इसके प्रमुख शेयरधारक एल.आई.सी., स्टेट बैंक म्युचुअल फंड और एच.डी.एफ.सी. म्युचुअल फंड हैं। यद्यपि तकनीकी दृष्टि से यह प्राइवेट बैंक है, परन्तु इसका संचालन इन्हीं सरकारी इकाईयों द्वारा किया जाता है, इसलिए मैं इसे सरकारी बैंक ही मानता हूं। अन्य सरकारी बैंक, जैसे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, आई.डी.बी.आई बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, इंडियन ओवरसीज बैंक आदि मुख्यत: आई.सी.आई.सी.आई. बैंक द्वारा लिए गए निर्णयों का अनुसरण करते थे। जनवरी 2018 में आपराधिक ऑडिट कराने की पहल स्टेट बैंक द्वारा की गई। इसके द्वारा ही नवंबर 2019, अगस्त 2020 एवं अगस्त 2021 में क्रमश: 2 शिकायतें और अंत में सी.बी.आई. इन्क्वायरी की बात की गई। स्पष्ट है कि आई.सी.आई.सी.आई. बैंक, जिसकी प्रमुख जिम्मेदारी इस लोन को मैनेज करने की थी, चुप बैठा हुआ था और वर्तमान में भी चुप बैठा हुआ है। 

ऐसा प्रतीत होता है कि ए.बी.जी. शिपयार्ड ने अपनी क्षमता से अधिक काम बढ़ा लिया था। जैसे कार को यदि ज्यादा तेज चलाया जाए तो वह गर्म हो जाती है, इसी प्रकार यह कंपनी अपनी महत्वाकांक्षा के कारण संभवत 2008 के संकट के बाद घाटे में आ गई। स्थिति यह है कि सरकारी बैंक के मुख्याधिकारी और सरकारी बैंक के स्वयं के उद्देश्यों में अंतॢवरोध होता है। जैसे मान लीजिए मुख्याधिकारी को 2 करोड़ रुपए प्रति वर्ष वेतन मिलता है। इन्हें यदि 20 करोड़ रुपए की घूस देकर कोई कंपनी 2,000 करोड़ रुपए का घटिया लोन देने के लिए कहे तो मुख्याधिकारी के लिए घटिया लोन देना लाभप्रद हो जाता है क्योंकि अगले 10 वर्षों में जितना यह वेतन कमाते हैं, उतना इन्हें एक ही दिन में घूस के रूप में मिल जाता है। बैंक को 2,000 करोड़ का घाटा पड़े तो वह उनके व्यक्तिगत वित्तीय स्वार्थों को प्रभावित नहीं करता। 

इसके विपरीत प्राइवेट बैंक में यदि उसके मालिक को वही कंपनी 20 करोड़ रुपए की घूस देकर 2,000 करोड़ रुपए का घटिया लोन देने के लिए कहे तो मालिक के लिए हानिप्रद होता है, क्योंकि 2,000 करोड़ रुपए का जो घाटा लगेगा, वह उसका व्यक्तिगत घाटा भी हो जाता है क्योंकि वह कंपनी का मालिक है। इसलिए सरकारी बैंकों के मुख्याधिकारी के उद्देश्य बैंक के हित के विपरीत चल सकते हैं, जबकि प्राइवेट बैंक के मुख्याधिकारी के उद्देश्य मूलत: बैंक के हितों के साथ सामंजस्य में चलते हैं। यही कारण है कि अपने देश में सरकारी बैंकों के तमाम घोटाले होते रहे हैं और मैं दावे के साथ कह सकता हूं यह आगे भी होते रहेंगे। 

इसका यह अर्थ नहीं कि निजी बैंकों में घोटाले नहीं होते, लेकिन निजी और सरकारी बैंकों के घोटालों में अंतर हैं। पहला यह कि निजी बैंक में घोटाला हो जाए तो वह रकम जनता से टैक्स वसूल कर के भरपाई नहीं की जा सकती, दूसरा अंतर यह है कि निजी बैंक में अक्सर जमाकत्र्ता ऊंची ब्याज दर के लोभ में रकम जमा करते हैं, इसलिए उन्हें इस ऊंचे ब्याज दर की रिस्क का खामियाजा भी भुगतना पड़ता है। तीसरा यह कि यदि निजी बैंक में गड़बड़ी होती है तो रिजर्व बैंक के पास पर्याप्त अधिकार है कि उसे ठीक करे, जैसा कि कई निजी बैंकों के सम्बन्ध में किया गया है। इससे निजी बैंकों में दीमक पूरे बैंक को खा ले, तुलनात्मक रूप से ऐसा कम होता है। इसलिए समय आ गया है कि सरकारी बैंकों का पूर्ण निजीकरण किया जाए और रिजर्व बैंक की नियंत्रक की भूमिका को सुदृढ़ किया जाए, तभी देश इस प्रकार के घोटालों से बच सकेगा।-भरत झुनझुनवाला


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