कृषि क्षेत्र का पुनर्जीवन एवं किसानों का सशक्तिकरण

punjabkesari.in Thursday, Sep 30, 2021 - 04:16 AM (IST)

कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। हमारे देश का लगभग 44 फीसदी श्रमबल खेती और इससे जुड़े काम-धंधों से रोजगार प्राप्त करता है, या यूं भी कहा जा सकता है कि देश की 70 फीसदी आबादी खेती पर ही निर्भर है। इतनी बड़ी आबादी के कृषिकार्य से जुड़े होने के बावजूद चिंता का विषय यह है कि इस क्षेत्र का देश के सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में योगदान सिर्फ 18 फीसदी ही है। 

आजादी के बाद देश सरकारों ने अपने राजनीतिक लाभ अथवा पॉलिसी पैरालिसिस की जकडऩ में कृषि क्षेत्र को किसानों के भरोसे ही छोड़ दिया और हालात ये हुए कि किसान की आय उसकी लागत से भी कम नजर आने लगी। कृषि क्षेत्र का पुनर्जीवन कर इसे मुख्यधारा में लाने के कई अहम प्रयास विगत 7 वर्षों में हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार द्वारा किए गए हैं। साहस के साथ कृषि क्षेत्र में किए गए सुधारों के सकारात्मक परिणाम दृष्टिगोचर होने लगे हैं। 

कृषक उपज व्यापार तथा वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) अधिनियम, 2020 के माध्यम से किसानों को मंडी में ही अपनी उपज बेचने की बाध्यता से मुक्ति मिली है। देश में हर निर्माता अपना उत्पाद अपनी मंडी सहित कहीं पर भी बेच सकता है। सरकार का यह कदम कृषि के क्षेत्र में ‘एक देश-एक बाजार’ की संकल्पना को पूर्ण करता है। 

किसानों के सामने एक संकट यह भी रहा है कि वे आश्वस्त नहीं रहते थे कि वे जो खेत में बो रहे हैं उसके उचित दाम मिलेंगे भी या औने-पौने दाम में बिकने के बाद लागत से भी कम पूंजी हाथ में आएगी। बुवाई से पहले ही उचित मूल्य की गारंटी दिलाने के उद्देश्य से ही कृषि (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम, 2020 का प्रावधान किया गया है। संविदा खेती के माध्यम से किसानों को खेती के लिए आधुनिक संसाधन एवं सहयोग भी प्राप्त हो सकेगा। यहां मैं फिर से स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि संविदा खेती में करार सिर्फ उपज का होता है, जमीन का नहीं। इसलिए जमीन पर से किसानों का मालिकाना हक कोई नहीं छीन सकता। 

किसानों की आय सुधारने के विषय में सबसे पहला सवाल यही उठता रहा है कि उसे उपज के उचित और लाभकारी दाम नहीं मिलते। सरकार ने रबी, खरीफ तथा अन्य व्यावसायिक फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) में ऐतिहासिक बढ़ोत्तरी की है। 2018-19 से उत्पादन लागत पर कम से कम 50 प्रतिशत मुनाफा जोड़कर एम.एस.पी. तय की जा रही है। 

इससे प्रत्यक्ष लाभ तो एम.एस.पी. पर उपज बेचने वाले किसानों को हुआ ही, बाजार में भी तुलनात्मक रूप से दाम बढ़े हैं और किसानों को लाभ पहुंचा है। वर्ष 2013-14 से 2021-22 की तुलना में धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 48 प्रतिशत से ज्यादा तो गेहूं के समर्थन मूल्य में लगभग 44 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। दलहन-तिलहन का रकबा बढ़ाना हमारा प्राथमिक उद्देश्य है और इसीलिए दलहन-तिलहन के समर्थन मूल्य पर उपार्जन में रिकार्ड वृद्धि कर किसानों को लाभ पहुंचाया गया है। विगत पांच वर्षों में दलहन की खरीद पर 56,798 करोड़ रुपए का व्यय किया गया जो यू.पी.ए. शासनकाल से 88 गुना ज्यादा है। इसी तरह तिलहन की खरीद पर 25,503 करोड़ रुपए किसानों के खाते में डाले गए जो यू.पी.ए. शासनकाल से 18.23 गुना ज्यादा हैं। ‘एक राष्ट्र, एक एम.एस.पी., एक डी.बी.टी.’ की अवधारणा ने किसानों के सशक्तिकरण की दिशा में अहम भूमिका का निर्वहन किया है। 

प्रतिवर्ष किसानों को 3 समान किस्तोंं में कुल 6,000 रुपए की सम्मान निधि देने का उद्देश्य यह है कि वे समय पर खाद, बीज, सिंचाई जैसी आवश्यकताओं के साथ ही परिवार की जरूरतें भी पूरी कर पाएं। 2019 से प्रारंभ हुए इस अभियान के तहत अब तक 11.36 करोड़ किसान परिवारों को 1,58,527 करोड़ रुपए प्रदान किए जा चुके हैं। तत्कालीन फसल बीमा योजनाओं की विसंगतियों को दूर करते हुए ‘वन नेशन-वन स्कीम’ की अवधारणा को मूर्त रूप देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने 13 जनवरी, 2016 को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के रूप में एक ऐसा अभेद्य छत्र किसानों को दिया है, जिसने खेती के कई जोखिमों को दूर कर दिया है। इस योजना में किसानों ने अब तक 21,484 करोड़ रुपए का प्रीमियम भरा है, जबकि उन्हें दावों के रूप में 99.04 हजार करोड़ रुपए का भुगतान किया गया है। 

किसान की एक बड़ी समस्या कृषि में लगने वाली लागत एवं समय पर धनराशि की व्यवस्था न हो पाना रही है। ऐसे में किसान बाजार से कर्ज लेकर सूदखोरी के जाल में फंसता रहा है। विगत 7 वर्ष में सरकार ने इस समस्या को समाप्त करने का कार्य किया है। भारत सरकार किसानों को फसल ऋण पर 5 प्रतिशत की ब्याज सहायता देती है, किसानों को सिर्फ 4 प्रतिशत ब्याज ही देना पड़ता है। वर्ष 2007 से 2014 के मध्य कुल कृषि ऋण प्रवाह 32.57 लाख करोड़ रुपए था जो 2014 से 2021 के दौरान 150 प्रतिशत की वृद्धि के बाद 81. 57 लाख करोड़ रुपए हो गया। वर्ष 2020-21 तक कुल 6.60 करोड़ किसानों को किसान क्रैडिट कार्ड प्रदान किए जा चुके हैं। 

भारत में लगभग 86 फीसदी किसान ऐसे हैं जो 2 हैक्टेयर या उससे कम जमीन पर खेती करके अपनी आजीविका चलाते हैं। छोटे किसान संसाधनों की कमी चलते न तो उन्नत खेती कर पाते हैं और न मार्केट लिंक से जुड़ कर बेहतर लाभ अर्जित कर पाते हैं।  देश में 10 हजार नए कृषक उत्पादक संगठन (एफ.पी.ओ.) का गठन करके उनके माध्यम से छोटे किसानों को जोड़ कर उनके सशक्तिकरण का संकल्प प्रधानमंत्री मोदी ने लिया है। सरकार इन एफ.पी.ओ. के गठन एवं उन्हें आगे बढ़ाने के लिए 6865 करोड़ रुपए खर्च कर रही है। प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत 1 लाख करोड़ रुपए के कृषि अवसंरचना कोष की स्थापना कर इसके माध्यम से गांवों में फसलोपरांत प्रबंधन अवसंरचना एवं सामुदायिक कृषि परिसंपत्तियों के निर्माण पर 2 करोड़ रुपए तक के ऋण पर 3 प्रतिशत ब्याज छूट और कृषि गांरटी सहायता प्रदान की जा रही है। कोष की स्थापना के एक साल के भीतर ही अब तक 6,500 परियोजनाओं के लिए 4,500 करोड़ रुपए का ऋण स्वीकृत किया जा चुका है। 

अर्थशास्त्र के विशेषज्ञों का प्रबल मत है कि भारत में कृषि क्षेत्र में सिर्फ 1 प्रतिशत की दर से की गई वृद्धि, गैर कृषि क्षेत्रों के मुकाबले 3 गुना ज्यादा लाभदायक साबित होती है। यह वह समय है जब भारतीय कृषि नव परिवर्तन के दौर से गुजर रही है। दुनिया में हर 9वां कृषि तकनीकी आधारित स्टार्टअप भारतीय है। 7 दशकों से जिन कृषि सुधारों की सिर्फ बातें की जाती रही थीं, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दृढ़ संकल्पशक्ति ने उन्हें जमीन पर उतारा है। कृषि और किसान दोनों आत्मनिर्भर बनें, यही राष्ट्र का संकल्प है।-नरेन्द्र सिंह तोमर (केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री)


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