‘सुधारवादी’ तथा ‘साहसिक कदम’ बिना किसी योजना के उठाए गए

punjabkesari.in Monday, Nov 22, 2021 - 03:24 AM (IST)

दो तरह के लोगों ने उस घोषणा पर तीव्र प्रतिक्रिया दी है कि कृषि कानून वापस लिए जा रहे हैं। प्रदर्शनकारी किसान, जिनमें से अधिकतर पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश से हैं, ने इसकी खुशी मनाई है। उनके प्रतिरोध ने उनको एक प्रसिद्ध सामाजिक अधिकार विजय दिलाई है। दूसरी तरह के लोग वे हैं जो इस निर्णय से गुस्से में हैं और वे मध्यमवर्गीय तथा मीडिया के लोगों में से हैं जो किसान नहीं हैं। वे प्रधानमंत्री के समर्थक हैं और उनके लिए यह एक ऐसा कदम था जो अस्वीकार्य है क्योंकि यह पीछे मुडऩे जैसा है। 

दूसरी किस्म के लोगों का कृषि से कोई लेना-देना नहीं और कानून सीधे तौर पर उन्हें नहीं छूते। वे तथा उनके जैसे लोग बिना समझे ही इसका अर्थ क्या है शब्द ‘रिफार्म’ का इस्तेमाल करते हैं। यह शब्द सकारात्मक रूप से चाज्र्ड है, अर्थात जब हम इसका इस्तेमाल करते हैं तो हम यह बताने का प्रयास करते हैं कि यह कोई ऐसी चीज है जो अच्छी है। 
शब्दकोष हमें बताता है कि रिफार्म का अर्थ किसी चीज में बदलाव करना है ताकि उसमें सुधार हो। 

इस घटनाक्रम में प्रदर्शनकारी किसानों के अनुसार कृषि कानूनों का नकारात्मक प्रभाव पडऩे वाला था, उनकी खरीद प्रणाली तथा कृषि उत्पादों के बाजारों पर। वे सही थे या गलत? क्या यह अच्छा सुधार था या खराब? यह उन लोगों के लिए कैसे संभव है, जिनका कभी ए.पी.एम.सी. से वास्ता नहीं पड़ा या वे किसी आढ़ती से नहीं मिले तथा जो बाजरे अथवा ज्वार के बीच अंतर नहीं बता सकते? और फिर गैर-कृषक भी हैं जो सुधारों के पक्ष में मजबूती से खड़े हैं। 

भारत में और विशेषकर गत 8 वर्षों में सुधारवादी तथा साहसिक कदम बिना किसी योजना के उठाए गए। 8 नवम्बर 2016 को किसी महत्वपूर्ण चीज पर चर्चा करने के लिए कैबिनेट को बुलाया गया मगर मंत्रियों को अपने मोबाइल फोन छोड़ कर आने को कहा गया। बैठक के बाद प्रधानमंत्री ने भारतीयों को बताया कि उनके 1000 तथा 500 रुपए के नोट अब वैध नहीं रहे। चूंकि कैबिनेट मंत्रियों को नहीं बताया गया था कि क्या निर्णय लिया जाने वाला है, उनके मंत्रालयों को नहीं पता था कि क्या होने वाला है। उनके विभागों को यह समझने के लिए समय ही नहीं दिया गया कि इसके परिणाम, जोखिम, समस्याएं तथा समाधान क्या होंगे। यह सब घोषणा किए जाने तथा नोटों के विमुद्रीकरण के बाद किया जाना था। हम सब जानते हैं कि उसके बाद क्या हुआ। 

गत वर्ष 24 मार्च की रात को भारतीयों को बताया गया कि अगले 3 सप्ताहों तक वे घर में ही बंद रहेंगे। बहुत से लोग भोजन तथा धन व बिना किसी काम के तालाबंद हो गए। इस वर्ष मार्च में बी.बी.सी. ने सरकार के पास 240 आर.टी.आई. (सूचना का अधिकार आवेदन) दाखिल की। वे जानना चाहते थे कि उस रात राष्ट्रीय लॉकडाऊन की घोषणा से पहले किन मंत्रालयों से सलाह की गई। उन्होंने पाया कि निर्णय लेने तथा उसे लागू करने से पहले किसी भी मंत्रालय तथा विशेषज्ञ से सलाह नहीं की गई। एक बार फिर हमने इसके परिणामों को महसूस किया। 

लॉकडाऊन से कुछ दिन पूर्व श्रीलंका में सरकार ने निर्माण स्थलों को अपना काम बंद करने तथा अपने तंत्र को आसपड़ोस में भोजन बांटने के लिए कहा और उसके बाद ही लॉकडाऊन लागू किया गया। भारत में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। सब चुटकी बजाते हो गया। जिस तरह से अचानक सोच-समझ कर चीजों में बदलाव किया गया इसे व्यवधान कहा जाता है। शब्दकोष में इस शब्द की परिभाषा ‘किसी चीज को होने से रोकना, विशेषकर एक प्रणाली, प्रक्रिया अथवा घटना को सामान्य तथा आशा के अनुरूप जारी रहने से’ है। यह मध्यमवर्ग तथा मीडिया इस शब्द का इस्तेमाल सकारात्मक के तौर पर करता है, यह भी ध्यान में अवश्य रखा जाना चाहिए कि जिन लोगों के जीवन में व्यवधान पड़ा और उनके लिए व्यवधान का क्या अर्थ है।

सबसिडीयुक्त अनाज प्राप्त करने के लिए आधार के आवश्यक इस्तेमाल का अर्थ यह है कि बहुत से गरीब अपनी इस सुविधा को प्राप्त नहीं कर सकते क्योंकि कनैक्टिीविटी खराब है अथवा मजदूरी करके उनकी उंगलियों की छाप खत्म हो चुकी है तथा रिकार्ड से भिन्न है। मीडिया के लिए आधार का इस्तेमाल यह सुनिश्चित करने के लिए है कि लाभ केवल उन लोगों तक पहुंचे जो इसके पात्र हैं। मगर उन लोगों के लिए जो रिफॉर्म कहलाती इस प्रक्रिया से वास्तव में गुजरे हैं, के लिए पैदा हुई समस्याएं असली तथा नुक्सानदायक हैं। मेरे तथा मेरे जैसे लोगों के लिए विमुद्रीकरण बहुत अधिक समस्या नहीं थी क्योंकि ऑनलाइन तथा कार्ड पेमैंट्स के माध्यम से धन तक पहुंच थी। 

इस मायने से हमारे लिए यह एक व्यवधान नहीं था। मगर उन लोगों के लिए अर्थ व्यवस्था का हिस्सा बंद पड़ गया जो नकदी से लेन-देन करते थे। हममें से कुछ यह सोचते हैं कि मजबूत, साहसिक तथा कड़े निर्णय निर्दयी तथा सख्त होते हैं और दूसरों के लिए अनचाहे। जब हम यह देखते हैं कि कृषि कानूनों के साथ क्या हुआ हमें इस पर विचार करने की जरूरत है। इन्हें इसलिए वापस लिया जा रहा है क्योंकि जो लोग यह समझते हैं कि इन कानूनों पर उनके जीवन तथा उनकी आजीविका और उनके परिवारों के लिए क्या मतलब है, वे 1 वर्ष तक मजबूती से डटे रहे और इनको न कही।-आकार पटेल


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