दुनिया का ‘निर्माण केंद्र’ बनने के लिए स्टील सैक्टर में सुधार जरूरी

punjabkesari.in Wednesday, Jun 08, 2022 - 04:42 AM (IST)

दो साल से आसमान छूती स्टील की कीमतों पर लगाम लगाने के लिए केंद्र सरकार ने मई में 15 प्रतिशत एक्सपोर्ट शुल्क लगाकर देश की अर्थव्यवस्था और रोजगार को रफ्तार देने के लिए मैन्युफैक्चरिंग एवं इंफ्रास्ट्रक्चर सैक्टर को बढ़ावा दिया। स्टील मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर की ‘ऑक्सीजन’ है। 

सरकार के इस कारगर कदम से स्टील एक्सपोर्ट 20 प्रतिशत तक घटने से घरेलू बाजार में दाम 8 से 10 फीसदी गिरे हैं, जिससे मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर के इंजीनियरिंग उत्पाद, ऑटोमोबाइल एवं पुर्जे, ट्रैक्टर एवं अन्य कृषि उपकरणों की उत्पादन लागत घटने से जहां देश के निर्यातकों को वैश्विक बाजार में अपनी पहुंच बढ़ाने में मदद मिलेगी, वहीं खेती-बाड़ी के बाद 11 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार देने वाले देश के 6.30 करोड़ एम.एस.एम.ई. को भी हल्की राहत मिली है। इन्हें स्टील की कीमतें 30 प्रतिशत तक घटने की दरकार है, ताकि देश के मंद इंफ्रास्ट्रक्चर विकास की रफ्तार तेज हो, रोजगार के नए रास्ते खुलें। 

घरेलू बाजार में सस्ते स्टील की आपूर्ति बहाली के लिए केंद्र सरकार ने कच्चे स्टील ‘लौह अयस्क’ का निर्यात घटाने के लिए एक्सपोर्ट शुल्क 30 से बढ़ाकर 50 प्रतिशत किया और घटे निर्यात की बड़ी कंपनियोंं को भरपाई करने के लिए फेरोनिकल, कोकिंग कोल और पी.सी.आई. कोयले पर इंपोर्ट शुल्क 2.5 प्रतिशत से शून्य कर दिया, ताकि देश की इन 5-7 बड़ी स्टील कंपनियों को भी उत्पादन लागत कम करने में मदद मिले। 

नि:संदेह केंद्र सरकार का यह कदम घरेलू बाजार में स्टील के दाम पर लगाम लगाने में मददगार है, पर हमारे नीति निर्माताओं को चीन से आगे भारत को दुनिया का मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने के लिए स्टील सैक्टर में जरूरी गहरे सुधारों पर विचार करना चाहिए। लौह अयस्क जैसे प्राकृतिक संसाधनों का दुनिया का 5वां बड़ा भंडार भारत के पास है, लेकिन चंद स्टील कंपनियों का इसकी खुदाई से लेकर तैयार उत्पादों पर कब्जा है। जबकि देश के प्रत्येक नागरिक को देश के प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग करने का संवैधानिक अधिकार है। अंत्योदय की भावना को ध्यान में रखते हुए इन प्राकृतिक संसाधनों का बराबर लाभ देश के आखिरी पायदान पर खड़े व्यक्ति को मिले। 

भारत जैसे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में हर कोई कारोबार से लाभ कमाने को स्वतंत्र है, लेकिन प्राकृतिक संसाधनों पर एकाधिकार और शोषण की कीमत पर नहीं। 5-7 बड़ी कंपनियों की घोर मुनाफाखोरी ने स्टील की चमक छीन ली है, क्योंकि यह प्राकृतिक संसाधन उनकी जागीर बन गया है। पिछले 2 साल में इन बड़ी स्टील कंपनियों के शुद्ध मुनाफे में 1000 प्रतिशत से भी अधिक की बढ़ौतरी से इन कंपनियों की जेब में 2 लाख करोड़ रुपए से अधिक गए हैं। यही 2 लाख करोड़ रुपए मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर में आते तो चीन के मुकाबले भारत तेजी से मैन्युफैक्चिरिंग हब के रूप में आगे बढ़ता, पर इससे जुड़े देश के 6.3 करोड़ एम.एस.एम.ई. 2020 से स्टील की कीमतें 100 फीसदी तक बढऩे से कारोबार में काफी पिछड़ गए। 

घरेलू बाजार में स्टील की कीमतें अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर रहीं। भारतीय स्टील बाजार की खुफिया एजैंसी स्टीलमिंट के मुताबिक, ‘अप्रैल 2022 में 79,000 रुपए प्रति टन तक पहुंचे स्टील के दाम मई 2020 में 40,000 रुपए प्रति टन थे। दो वर्षों में दामों में 95 प्रतिशत से अधिक की छलांग से बड़ी स्टील कंपनियां मालामाल हुईं, जबकि मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर से लेकर देश के इंफ्रास्ट्रक्चर विकास की रफ्तार मंद हो गई। गरीब की अपनी छत का सपना धूूमिल हुआ और एक किसान के लिए कृषि उपकरण जुटाना मुश्किल हो गया। 

आगे की राह : यदि लौह अयस्क जैसे प्राकृतिक संसाधनों को चंद कंपनियों की जागीर बनने दिया गया तो भविष्य में इसके भारी दुष्परिणाम होंगे। वैसे भी यह देश के संविधान की धारा 39(बी) का उल्लंघन है, जिसके तहत देश के हरेक नागरिक को प्राकृतिक संसाधनों के मालिक के तौर पर उपभोग का अधिकार है। इसलिए प्राकृतिक संसाधनों को समाज के आखिरी छोर पर खड़े व्यक्ति को ध्यान में रखते हुए बांटने की जरूरत है।  

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान  ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास’ से ‘आत्मनिर्भर भारत’ के सपने को साकार करने की दिशा मेंं यह बड़ा कदम होगा, यदि स्टील की कीमतों पर भविष्य में भी पक्की लगाम लगाने के लिए चंद स्टील कंपनियों के चंगुल से लौह अयस्क जैसे प्राकृतिक संसाधनों को मुक्त रखते हुए इन कंपनियों की गुटबंदी (कार्टेलाइजेशन) को तोड़ा जाए। अभी देश के प्राकृतिक संसाधनों के वितरण में पारदर्शिता और निष्पक्षता की भारी कमी है। इसी का नतीजा है कि 5-7 बड़ी स्टील कंपनियां लौह अयस्क के खनन पर अपने एकाधिकार का फायदा ले रही हैं, जो इनके मोटे मुनाफे की खान है। 

इसी मुनाफे में देश के पूूरे मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर को शामिल किया जाए तो भारत में न केवल चीन को पछाड़ कर दुनिया का सबसे बड़ा मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की क्षमता है, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था और रोजगार को नई रफ्तार भी मिलेगी। इसके लिए स्टील और बिजली की कीमतों में सामूहिक दृष्टिकोण के साथ गहरे सुधारों की जरूरत है।-डा. अमृत सागर मित्तल(वाइस चेयरमैन सोनालीका)
 


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