शिक्षा क्षेत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की क्रांतिकारी पहल
punjabkesari.in Monday, Jan 08, 2018 - 04:00 AM (IST)

भगवान श्रीकृष्ण के गुरु संदीपनि मुनि के गुरुकुल की छत्रछाया में आगामी 28 अप्रैल से ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ उज्जैन से विद्यालयी शिक्षा के क्षेत्र में ऐतिहासिक क्रांति का शंखनाद करने जा रहा है। मैकाले की ‘गुलाम बनाने वाली शिक्षा’ ने गत 200 वर्षों से भारत को इतनी बुरी तरह जकड़ रखा है कि हम उससे आज तक मुक्त नहीं हो पा रहे हैं। प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा के बोर्ड शिक्षा व्यवस्था में कोई नवीनता लाने को तैयार नहीं हैं। सब लकीर के फकीर बने हैं
पिछले 70 साल में हर शिक्षाविद् ने यह बात दोहराई कि मौजूदा शिक्षा प्रणाली के कारण हमारी युवा पीढ़ी परजीवी बन रही है। उसमें जोखिम उठाने, हाथ से काम करने, उत्पादक व्यवसाय खड़ा करने, अपने शरीर और परिवेश को स्वस्थ रखने व अपने अतीत पर गर्व करने के संस्कार नहीं हैं। उस अतीत पर जिसने भारत को सोने की चिडिय़ा बनाया था। वे आज भी औपनिवेशिक मानसिकता से ग्रस्त होकर सरकार की बाबूगिरी को जीवन का लक्ष्य मानते हैं। यह बात दूसरी है कि सरकारी नौकरियां नगण्य हैं और आवेदकों की संख्या करोड़ों में। इससे युवाओं में हताशा, कुंठा, हीन भावना और हिंसा पनप रही है।
संघ से जुड़े बुद्धिजीवियों का लंबे समय से यह मानना रहा है कि जब तक भारत की शिक्षा व्यवस्था भारतीय परिवेश और मानदंडों के अनुकूल नहीं होगी तब तक मां भारती अपना खोया हुआ वैभव पुन: प्राप्त नहीं कर पाएगी। इसके लिए एक समानांतर शिक्षा व्यवस्था खड़ी करने की आवश्यकता है जो आत्मनिर्भर, स्वाभिमानी, उत्पादक, संस्कारवान व प्रखर प्रज्ञा के युवाओं को तैयार करे। इस दिशा में अहमदाबाद के उत्तम भाई ने अभूतपूर्व कार्य किया है। हेमचंद्राचार्य संस्कृत पाठशाला, साबरमती में विशुद्ध गुरुकुल शिक्षा प्रणाली से शिक्षण और विद्यार्थियों का पालन पोषण कर उत्तम भाई ने विश्व स्तर की योग्यता वाले मेधावी छात्रों को तैयार किया है जिसके विषय में इस कालम में गत वर्षों में मैं दो लेख पहले लिख चुका हूं जिन्हें पढ़कर,देशभर से अनेक शिक्षाशास्त्री और अभिभावक साबरमती पहुंचते रहे हैं।
उज्जैन के सम्मेलन में इस गुरुकुल के प्रभावशाली अनुभवों और उपलब्धियों के अलावा देश के अन्य हिस्सों में चल रहे ऐसे ही दूसरे गुरुकुलों के साझे अनुभव से प्रेरणा लेकर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पूरे देश में लाखों गुरुकुलों की स्थापना की तैयारी कर रहा है जिसका एक अलग शिक्षा बोर्ड सरकारी स्तर पर भी बने, ऐसा लक्ष्य रखा गया है, जिससे इस गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था में औपनिवेशिक शिक्षा व्यवस्था के घालमेल की संभावना न रहे। इस अनुष्ठान में वेद विज्ञान गुरुकुलम (बेंगलूर), प्रबोधिनी गुरुकुलम हरिहरपुर (कर्नाटक), मैत्रेयी गुरुकुलम (मेंगलूर), सिद्धगिरि ज्ञानपीठ (महाराष्ट्र), आदिनाथ संस्कार विद्यापीठ (चेन्नई), श्री वीर लोकशाह संस्कृत ज्ञानपीठ गुरुकुल (जोधपुर), महर्षि याज्ञवल्क्य ज्ञानपीठ (गुजरात) व नेपाल के 6 गुरुकुल भी भाग ले रहे हैं।
उज्जैन में इस सागर मंथन के बाद, जो अमृत कलश निकलेगा, वह पुन: स्थापित होने जा रही, भारत की गुरुकुल शिक्षा प्रणाली का आधार बनेगा। अनादिकाल से भारतीय शिक्षा पद्धति नालंदा, तक्षशिला, वल्लभी व विक्रमशिला जैसे गुरुकुलों के कारण विश्वविख्यात रही है। जहां सहस्त्रों छात्र और सैंकड़ों आचार्य एक साथ रहकर अध्ययन व शिक्षण करते थे। वैदिक सनातन परम्परा के साथ ही बौद्ध और जैन मतों के गुरुकुल का भी प्रचलन रहा। 1823 तक देश के प्रत्येक ग्राम में बड़ी संख्या में पाठशालाएं होती थीं, जिनमें सभी वर्गों के लोगों को जीवनोपयोगी शिक्षा दी जाती थी। आवासीय व्यवस्था व समग्र शिक्षा से मंजे हुए युवा तैयार होते थे जो जीवन के हर क्षेत्र में अपना श्रेष्ठ योगदान करते थे। बाद में लार्ड मैकाले ने यह अनुभव किया कि भारत की इस सशक्त शिक्षा व्यवस्था को नष्ट किए बिना भारतीयों को गुलाम नहीं बनाया जा सकता इसलिए उसने एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था हम पर थोपी, जिसने हमें हर तरह से अंग्रेजियत का गुलाम बना दिया और हम आज तक उस गुलामी से मुक्त नहीं हुए।
‘भारतीय शिक्षण मंडल’ शिक्षा के भारतीय प्रारूप को पुनस्र्थापित करने का कार्य कर रहा है जिससे एक बार फिर भारत के गांवों में ही नहीं, नगरों में भी, गुरुकुल शिक्षा पद्धति स्थापित हो जाए जिससे बालकों का सर्वांगीण विकास हो। उज्जैन में होने जा रहे गुरुकुल शिक्षा के इस कुंभ में देशभर से शिक्षाविद् और आचार्यगण भाग लेंगे। अगर इस मंथन में गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था के प्रारूप पर आम सहमति बनती है तो भारतीय शिक्षण मंडल इस प्रस्ताव को माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के पास लेकर जाएगा और उनसे गुरुकुल शिक्षा का एक अलग निदेशालय या बोर्ड गठित करने को कहेगा।
चूंकि मैंने स्वयं कई बार साबरमती में हेमचंद्राचार्य संस्कृत पाठशाला की गतिविधियों को वहां रहकर निकट से देखा है और उसके छात्रों के प्रदर्शन को भी देखा है इसलिए मुझे इस सम्मेलन से बहुत आशा है। काश इसमें सहमति बने जो शायद वहां सरसंघचालक डा. मोहन भागवत जी की उपस्थिति और सदे्च्छा के कारण संभव होगी। इसमें भारत की किशोर आबादी को बहुत लाभ होने वाला है क्योंकि आज शिक्षा का इतना व्यवसायीकरण हो गया है कि अब शिक्षण संस्थानों में छात्रों का भविष्य नहीं बनता बल्कि उनका वर्तमान भी उनसे छीन लिया जाता है। विरले ही हैं जो अपनी मेधा और पुरुषार्थ से आगे बढ़ पाते हैं। जो शिक्षण संस्थान आज भी देश में अच्छी शिक्षा देने का दावा करते हैं, उनके छात्र भी भौतिक दृष्टि से भले ही सफल हो जाएं पर उनके व्यक्तित्व का विकास समग्रता में नहीं होता।-विनीत नारायण