अब नए ‘समीकरणों’ के साथ दिखाई देगी राज्यसभा

punjabkesari.in Tuesday, Jun 23, 2020 - 03:11 AM (IST)

जब राज्यसभा मानसून सत्र के लिए पुन: इकट्ठी होगी तो यह सदन की संरचना में बदलाव के साथ, नए समीकरणों के साथ दिखाई देगी। यह एक सिकुड़ा हुआ विपक्ष और एक बेहतर एन.डी.ए. देखेगी। भाजपा इस सप्ताह के राज्यसभा चुनाव के बाद बहुमत की ओर बढ़ रही है। एन.डी.ए. ने 100 का आंकड़ा पार कर लिया है। हालांकि 245 सीटों वाले सदन में 123 की जादुई संख्या तक पहुंचने में थोड़ा समय लग सकता है। अकेले भाजपा के पास 86 सीटें हैं। अगले 4 वर्षों में मार्च, 2024 तक 100 के करीब सांसद सेवानिवृत्त हो रहे हैं। 

भाजपा में सुधार होने की संभावना है। लोकसभा चुनावों से पूर्व 2021 और 2023 में क्रमश: 8 सीटों के लिए तथा 2022 में 77 और 2024 में 4 सीटों के लिए चुनाव होगा। इसमें कोई शंका नहीं थी कि जब 2014 में भाजपा भारी जनादेश के साथ सत्ता में आई तब कांग्रेस के नेतृत्व वाला विपक्ष एक सुदृढ़ स्थिति में था और उसके पास बहुमत भी था जिसके चलते मोदी सरकार को एक झटका लगा था। उस समय अकेले कांग्रेस के पास 68 सीटें थीं। एन.डी.ए. की कुल ताकत सिर्फ 59 थी। तीन तलाक, भूमि विधेयक और बीमा विधेयक जैसे विधानों को राज्यसभा में पारित करवाने के लिए मोदी सरकार को अध्यादेश का रास्ता अपनाना पड़ा। मगर आज स्थिति बदल चुकी है। विपक्ष धीरे-धीरे सिकुड़ रहा है और इसकी कुल गिनती 65 सीटों की है। कांग्रेस सिमट कर 41 सीटों पर आ गई। 

द्विवार्षिक चुनावों में राज्यसभा की कुल 61 सीटों में 43 प्रथम बार निर्वाचित हुए और 12 पुन: निर्वाचित हुए। क्रास वोटिंग के कारण अपनी क्षमता से ज्यादा भाजपा ने 17 सीटें जीतीं। कांग्रेस को 9, जद (यू) को 3, बीजद और टी.एम.सी. को 4-4, अन्नाद्रमुक और द्रमुक को 3-3, एन.सी.पी., आर.जे.डी. और टी.आर.एस. को 2-2 सीटें मिली हैं। दिलचस्प बात यह है कि सदन में अब पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा, लोकसभा में कांग्रेस के पूर्व नेता मल्लिकार्जुन खडग़े, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन जैसे कुछ दिग्गज मौजूद हैं। अन्य दो पूर्व मुख्यमंत्री शरद पवार तथा दिग्विजय सिंह की वापसी हुई है। 

तो राजनीतिक रूप से इसका क्या मतलब है? बड़ों के सदन में भाजपा के ज्यादा सशक्त होने के कारण पार्टी को अधिक राजनीतिक लाभ होगा। सबसे पहले यह मोदी सरकार को संसद के दोनों सदनों में बहुत आवश्यक सुधारों और बिलों के साथ आगे बढऩे में सक्षम बनाएगा। इसके विपरीत एक जुझारू विपक्ष ने कई उपायों को अवरुद्ध कर दिया। हालांकि मोदी 2.0 के साथ भाजपा अनुच्छेद-370, तीन तलाक तथा नागरिक संशोधन विधेयक सहित कई महत्वपूर्ण एजैंडों को आगे धकेलने में कामयाब रही। यह सब एक विभाजित विपक्ष के कारण संभव हुआ है जिसका मोदी सरकार ने फायदा उठाया।

सरकार बीजद, वाई.एस.आर. सी.पी. और टी.आर.एस. जैसे कुछ तटस्थ दलों का समर्थन जुटाने में भी कामयाब रही। अफसोस यह कि अधिक सदस्यों के साथ एन.डी.ए. को अपने विधायी एजैंडे के माध्यम से आगे बढऩे में किसी प्रकार की बड़ी चुनौती का सामना करने की संभावना नहीं है। दूसरी बात यह है कि भाजपा के लिए यह एक मीठा बदला है। भगवा पार्टी ने कांग्रेस को पछाड़ कर अपने आपको लगभग दोगुनी संख्या (86) तक पहुंचा दिया है जोकि 2014 की स्थिति में एक बड़ा सुधार हुआ है। जब कांग्रेस एक नम्बर की पार्टी थी। 

विपक्ष के पास नेतृत्व की शून्यता है। विपक्ष एकजुट नहीं है और इसकी कोई संयुक्त मंजिल पाने की रणनीति भी नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने विपक्ष की बैठक भी बुलाई है लेकिन लगातार कोई रणनीति निर्धारित नहीं हुई है। केवल एक सतर्क और एकजुट विपक्ष ही सरकार को जवाबदेह ठहरा सकता है। अभी कई महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जैसे कोविड महामारी को संभालना, सीमा पर झड़पें, नेपाल के साथ आमना-सामना तथा अर्थव्यवस्था वगैरह-वगैरह। क्या कुछ मुट्ठी भर विपक्षी नेताओं ने राजीव गांधी के दौर में बोफोर्स घोटाले का खुलासा नहीं किया जब उनके लोकसभा में 415 सदस्य थे? वास्तव में देवेगौड़ा, शरद पवार और डा. मनमोहन सिंह इत्यादि जैसे भारी वजनी नेता अपने अमूल्य अनुभव का फायदा उठाएंगे, यदि वे कुछ रुचि लेंगे।-कल्याणी शंकर


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