कनाडा के संसदीय चुनावों में पंजाबियों का दबदबा

punjabkesari.in Saturday, Oct 19, 2019 - 02:07 AM (IST)

जब भारत में महाराष्ट्र तथा हरियाणा के मतदाता प्रादेशिक चुनावों के लिए तथा पंजाबी उपचुनावों के लिए वोट डाल रहे होंगे, ठीक उसी समय कनाडाई लोग अपने संसदीय वोट का इस्तेमाल कर रहे होंगे। हालांकि वहां प्री-पोल भी हो जाते हैं। कनाडा के चुनाव आयोग द्वारा 338 संसदीय सीटों के लिए 2146 उम्मीदवारों की सूची जारी की गई है। यहां लगभग 21 राजनीतिक दल पंजीकृत हैं। इनमें से भी 6 बड़ी पाॢटयों की चुनाव मैदान में भरपूर उपस्थिति है। ये हैं-लिबरल, कंजर्वेटिव, एन.डी.पी., ब्लाक क्यूबिक्वा, ग्रीन पार्टी तथा पीपुल्स पार्टी। मुकाबला बड़े स्तर पर जस्टिन ट्रूडो की लिबरल तथा कंजर्वेटिव पार्टियों के बीच ही माना जा रहा है।

जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, एन.डी.पी. के जगमीत सिंह का बढ़ता प्रभाव आशंका पैदा कर रहा है कि कहीं जीत के नजदीक जा रही लिबरल पार्टी को एन.डी.पी. का सहारा ही न लेना पड़ जाए। मगर इन चुनावों में दिलचस्प बात पंजाबियों का दबदबा है। पंजाब सहित दक्षिण एशिया के कुल 99 उम्मीदवारों में से लगभग 60 पंजाबी हैं। ऐसे ही 18 के करीब पंजाबी महिलाएं उम्मीदवार हैं। कई पंजाबियों तथा पंजाबणों के बीच तो सीधा मुकाबला है। पंजाबियों का यह राजनीतिक प्रभाव कनाडाई राजनीति को कैसे परिभाषित करता है? कैसे वे मंत्रियों की कुॢसयों पर काबिज होते हैं। कैसे वे वहां के नागरिकों का दिल जीतते हैं? कैसे वहां की समस्याओं के प्रति जागरूक भी हैं, उनके प्रति उदार भी हैं? कैसे वे जातीय भेदभाव का शिकार भी होते हैं, लेकिन इसके साथ जूझते हुए संघर्ष भी जारी रखते हैं। यह पंजाबियों के इतिहास, संस्कृति, संघर्षों की गाथा है। इसके बहुत से आयाम/पहलू हैं। 

पहले तो बहुत महत्वपूर्ण नुक्ता यही है कि कैसे और कहां-कहां पंजाबियों में सीधी आपसी टक्कर है। यह बहुत ही मजेदार पहलू है। बड़े घाघों में से एडमंटन मिल वूड्ज हलके से मंत्री अमरजीत सिंह सोही चुनाव मैदान में हैं और उनका मुकाबला कंजर्वेटिव टिम उप्पल से है। दोनों राजनीतिक दाव-पेंच के माहिर और पंजाबियों में पैठ रखने वाले हैं। 

बढिय़ा वक्ता, लगातार राजनीति के शीर्ष स्तर पर बैठे हुए गृह मंत्री हरजीत सिंह सज्जन वेंकूवर दक्षिण से लिबरल उम्मीदवार हैं और उनका मुकाबला कंजर्वेटिव वाई. यंग से है। सज्जन की कारगुजारी कनाडाई लोग देख चुके हैं और उनके कायल हैं। मंत्री मनदीप सिंह बैंस माल्कन से मैदान में हैं और मुकाबला कंजर्वेटिव टॉम वर्गीज से है। इसी तरह सरी न्यूटन से लिबरल सुख धालीवाल, कंजर्वेटिव हरप्रीत सिंह तथा एन.डी.पी. के. हरदीप सिंह गिल के बीच तिकोनी टक्कर है। सरी सैंटर से कंजर्वेटिव टीना बैंस, लिबरल रणदीप सिंह सराए तथा एन.डी.पी. के सुरजीत सिंह के बीच मुकाबला है। पूर्वी ब्रैम्प्टन से कंजर्वेटिव रामोना सिंह, लिबरल मनिन्द्र सिद्धू तथा एन.डी.पी. के शरणजीत सिंह के बीच कड़ा मुकाबला है। 

जातीय भेदभाव से भी नहीं डोलते पंजाबी
दूसरा महत्वपूर्ण नुक्ता यह है कि बेशक लिबरल द्वारा पंजाबियों को अधिक मान्यता दी गई है, पिछली सरकार में मंत्री पद मिले, उन्होंने काम भी किए, जस्टिन ट्रूडो के भारत दौरे ने कुछ कनाडाई प्रवासी पंजाबियों में निराशा भी पैदा की। जैसे भारत सरकार द्वारा उनको भरपूर समर्थन नहीं दिया गया और पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह द्वारा भी काली सूची सौंपने के अतिरिक्त उनका गर्मजोशी से स्वागत नहीं किया गया। मगर ट्रूडो का पंजाबी प्रेम फिर भी कहीं कम होता दिखाई नहीं दिया। इसीलिए पंजाबियों की दबदबापूर्ण स्थिति इन चुनावों में दिखाई दे रही है। इसके बावजूद उन्हें जातीय भेदभाव वाली टिप्पणियों का सामना करना पड़ रहा है। जिन बड़े नेताओं को इन टिप्पणियों की मार सहन करनी पड़ रही है, उनमें से पहले स्थान पर एन.डी.पी. नेता जगमीत सिंह का नाम है जो सबसे बांहें खोल कर मिलते हैं। वह इस व्यवहार को भी प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार कर रहे हैं। वह जब रंगभेद से ऊपर उठ कर उड़ान भरते हैं तो जातीय भेदभाव वाली मानसिकता को और भी परेशानी होती है। 

दूसरे बड़े नेताओं में जगमीत के भाई गुररतन, एन.डी.पी. के ही गुरिन्द्र सिंह, अमरजीत सोही, कंजर्वेटिव के मरियम इशाक को भी ये बाण सहने पड़ रहे हैं। हालत तो यहां तक है कि जस्टिन ट्रूडो भी इन टिप्पणियों से बचे नहीं क्योंकि उनको निशाना उनकी उदार इमीग्रेशन नीति के लिए बनाया जा रहा है। मगर जिस तरह से जस्टिन ट्रूडो ने वित्तीय नीति घोषित करते हुए घाटा सहना स्वीकार कर लिया है तो उसका वह अधिक प्रभाव डाल रहे हैं। लिबरलों का कहना है कि मौजूदा वर्ष का वित्तीय घाटा 19.8 अरब कनाडाई डालर है और अगले वर्ष यह बढ़ कर 27.4 अरब कनाडियन डालर हो जाएगा। उससे आगामी वर्षों में यह काफी घट जाएगा। लिबरल पार्टी सरकारी खर्च बढ़ा कर लोगों को टैक्स से छूट देकर, मौसमी परिवर्तन के प्रति खर्च, मध्यम वर्ग का कल्याण तथा विद्यार्थियों की बेहतरी पर खर्च करना चाहती है। यह लिबरल के बहुत ही प्रभावशाली कदम हैं और लोगों ने इनका समर्थन भी किया है। प्रवासी पंजाबियों का दिल भी ट्रूडो ने जीता है। केवल यही नहीं, हमारे यहां के पंजाब में भी ट्रूडो के लिए लोगों की सरगर्मियां देखने वाली हैं। 

पंजाबियों के राजनीतिक उत्थान की पृष्ठभूमि ‘गदर पार्टी’
अब तीसरे नुक्ते के दो पहलू हैं। पहला यह कि आखिर पंजाबी विदेशी धरती पर भी इतनी बड़ी सियासी मार कैसे मार जाते हैं। उज्जल दोसांझ की उपलब्धि के बाद कनाडा की धरती पर अनेक नाम हैं जिन पर लोग गर्व करते हैं। अब इस बार तो करीब 80 सीटों पर पंजाबी मुकाबले में हैं। दूसरा यह कि कनाडा के इस चुनाव में दखलअंदाजी वाले देशों में से भारत सबसे आगे है। बेशक चीन, पाकिस्तान तथा ईरान का भी नाम है, मगर भारत का नाम सबसे ऊपर है। एन.डी.पी. नेता जगमीत सिंह भी यह कहते हैं कि इस चुनाव में भारत का दखल बड़ा है। जस्टिन ट्रूडो की सुरक्षा में वृद्धि को इसी खबर से जोड़ कर देखा जा रहा है। 

खैर, पंजाबियों की जो राजनीतिक पैठ है, उसके पीछे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक कारण हैं। ये पहले से ही राजनीतिक तौर पर बड़े सजग लोग हैं। हम 19वीं शताब्दी के शुरूआती दौर को देखते हैं तो कैसे कनाडा/अमरीका की धरती से हिन्दुस्तान एसोसिएशन ऑफ पैसीफिक कोस्ट नामक संगठन राजनीतिक दाव खेलते हुए भारत के स्वतंत्रता संघर्ष की गौरवमयी गदर पार्टी में परिवर्तित होता है। कैसे भाई बलवंत सिंह, नंद सिंह सीहरा का प्रतिनिधिमंडल प्रवासियों की समस्याओं के समाधान हेतु भारत की अंग्रेज सरकार से मिलने आता है और स्वतंत्रता का नारा बन कर उभरता है। कैसे बाद में पंजाबी अपने वोट के अधिकार हासिल करते हैं। कामागाटामारू का संघर्ष। यह सारा इतिहास इनके संघर्षों तथा जागरूकता का सबूत है। इसी इतिहास से प्रवासी पंजाबी अपनी सांस्कृतिक पहचान को बरकरार रखते हुए राजनीति की ओर प्रयास करते हैं तथा लोगों के अधिकारों की लड़ाई को सुलगाए रखते हैं। आज उनका संघर्ष शिखर छू रहा है और दुनिया भर की नजरें इन पंजाबियों की चढ़त को सलाम कह रही हैं।-देसराज काली(हरफ-हकीकी)
 


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