किसकी नजर लगी मेरे पंजाब को

punjabkesari.in Monday, May 17, 2021 - 12:11 PM (IST)

सिंधु घाटी सभ्यता इस दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से सबसे प्राचीन है। इस सभ्यता पर पूरी दुनिया मान करती थी। यह सभ्यता सिंधु नदी तथा उसमें मिलने वाली अन्य नदियों के इलाके वाली सभ्यता थी। इस सभ्यता में सबसे बड़ा प्रभावशाली तथा भौगोलिक क्षेत्र का नाम पंजाब था। सिंधु घाटी सभ्यता का नाम सिंध नदी से पड़ा है और इसे बिगाड़ कर हिंदुस्तान का नाम यूरोपियनों ने इंडिया कर दिया। पंजाब का नाम अपने आप में स्वः प्रभाषित है। 'पंज' से मतलब पांच तथा 'आब' से मतलब पानी है।


यह फारसी शब्द है और दरियाओं वाली धरती पंजाब की नदियां जेहलम, चिनाब, रावी, व्यास और सतलुज हैं। यह उत्तरी पंजाब में तिब्बत से शुरू होकर हिंदूकुश की पहाड़ियों से चलते हुए सिंध के साथ लगता आखिरकार राजस्थान से घूमता हुआ क्षेत्र था। पंजाब पूरे विश्वभर में प्रगति की एक जीती जागती मिसाल थी। सिंध के तट पर स्थापित तक्षशिला शहर में विश्व प्रसिद्ध तक्षशिला यूनिवर्सिटी का निर्माण हुआ। इस यूनिवर्सिटी में रोमन, पर्शियन और हिंदुस्तान के अलग-अलग क्षेत्रों में से प्रख्यात विद्वानों का बसेरा था और यहां पर एक बहुत बड़ी लाइब्रेरी भी थी। यह वही इलाका है जहां पर विश्व की सबसे पुरानी भाषा संस्कृत का जन्म हुआ। इसी भाषा में से एशिया और यहां तक कि रूस तक इसके प्रभाव से अनेकों नई भाषाओं का जन्म हुआ। सबसे पुरानी सभ्यता हड़प्पा और मोहनजोदाड़ो काभी विस्तार इसी पंजाब में हुआ। 

 

राजनीति के चलते अंग्रेजों ने पंजाब को कमजोर करने की नीति के अंतर्गत इसका विभाजन किया। उल्लेखनीय है कि कलकत्ते के रास्ते हिंदुस्तान में अपने पांव पसारने से पहले अंग्रेजों ने सिंधु नदी के द्वारा इस इलाके में अपने पांव पसारने की कोशिश की और नाकामयाब रहे। हिंदुस्तान पर अपनी हुकूमत स्थापित करने के बाद पंजाब अंग्रेजों की पकड़ में आने वाला अंतिम राज्य था। अंग्रेजों की गुलामी भी पंजाब ने सबसे कम समय के लिए की है। दो विश्व युद्धों में अंग्रेजों की जीत को यकीनी बनाने के लिए पंजाब के योद्धाओं का बड़ा योगदान रहा है। अंग्रेजों और जर्मनी में युद्ध में जीत का फर्क केवल पंजाबी सेना के कारण रहा है जिसकी मिसाल आज तक भी पूरे यूरोप में लोक गाथाओं में प्रचलित है। आज पंजाब सिकुड़ता हुआ हिंदुस्तान के लोकतंत्र में 13 संसदीय सोटों वाला एक छोटा-सा राज्य बन चुका है। बेशक पंजाब ने हरित क्रांति द्वारा देश के खाद्यान्न संकट की पूर्ति की और औद्योगिक क्षेत्र में विश्व स्तर पर पंजाब ने अपनी छाप छोड़ी।

 

पंजाब एक सशक्त आर्थिक ढांचे वाले राज्य के तौर पर जाना जाता था और पंजाब की प्रति व्यक्ति आय हिंदुस्तान में सबसे ज्यादा थी मगर आज पंजाब 13वें स्थान पर आ चुका है। इस मामले में हरियाणा पंजाब से आगे है। हिमाचल प्रदेश पंजाब के बराबर है। पंजाब का आर्थिक सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) 45.5 प्रतिशत घाटे वाला है। पंजाब का बजट 24828 करोड रुपए घाटे वाला है। आज पंजाब की हिंदुस्तान के राज्यों में वृद्धि दर नीचे से दूसरे नंबर पर है तथा केवल मणिपुर पंजाब से पीछे है। पंजाब का ऋण करीब 3 लाख करोड़ रुपए हो चुका है। अर्थ शास्त्रियों के अनुसार इस राज्य का ऋण 2024-25 में 3,73, 988 करोड़ रुपए तक पहुंच जाएगा जो 31 मार्च 2019 के कर्ज राशि 1,79,130 करोड़ से दोगुणा होगी।

 

हिंदुस्तान के लोकतंत्र में प्रत्येक राज्य का भविष्य तथा उसकी लगाम विजेता राजनीतिक नेताओं के हाथ होती है। आज पंजाब की लगाम कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के हाथों में है। पिछले विधानसभा चुनावों में 77 विधायकों की जीत के साथ अमरेन्द्र सरकार को स्थिर बहुमत हासिल है। आज पंजाब आर्थिक मंदी, बेरोजगारी, उद्योगों का पतन, शिक्षा का गिरता स्तर, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, जमीनी पानी का गिरता स्तर, नशों तथा पड़ोसी देश की ओर से घुसपैठ आदि से जूझ रहा है तथा इसके अलावा पिछले एक साल से कोरोना महामारी का प्रकोप भी पंजाब झेल रहा है।

 

वर्तमान समय में सरकार या उसके चुने हुए विधायकों की ओर से पंजाब के गंभीर हालातों से निपटने के लिए कोई ठोस नीति नहीं बनाई गई। बल्कि रोजाना समाचार पत्रों में इसके नेताओं की ओर से अपनी कुर्सी बचाने के लिए या अपने राजनीतिक भविष्य को बचाने की खातिर महाभारत चलता नजर आ रहा है। क्या पंजाब इसके काबिल नहीं है कि पंजाब के मुद्दों को सुलझाने के लिए इसके सत्ताधारी नेता अपनी पूरी कोशिश कर कोई ठोस नीति अपनाएं? क्या पंजाब की सत्ताधारी पार्टी से पंजाब के लोग उम्मीद न रखें कि गंभीर मुद्दों के समाधान ढूंढे जाएं? आज पंजाब के लोग बेबसी वाले हालातों में अपने आप को क्यों महसूस कर रहे हैं? आज मुझे अमृता प्रीतम द्वारा लिखी गई वे लाइनें याद आ रही हैं : अज्ज आखां वारिस शाह नं. कित्थो कबरां विच्चों बोल, ते अज्ज किताब-ए-इश्क दा, कोई अगला वरका फोल । इक रोई सी धी पंजाब दी, तूं लिख-लिख मारे वैन, अज्ज लक्खां धीयां रोदियां, तैनू वारिस शाह नूं कैन। वे दर्द मंदां देआ दर्दिया, उठ तक्क अपना पंजाब, अज्ज बेले लाशां बिछियां, ते लहू दी भरी चनाब। पंजाब आज के हालातों का हकदार नहीं है और मैं सिर्फ यही कह सकता हूं कि आखिर किसकी पंजाब को नजर लग गई है। (हरीश राय ढांडा, पूर्व विधायक लुधियाना)


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