विधायकों के वेतन-भत्तों में बढ़ौतरी पर ‘जनविरोध’ शुरू

punjabkesari.in Wednesday, Sep 04, 2019 - 01:45 AM (IST)

जिस राज्य पर करीब 52000 करोड़ का कर्ज हो और 8 लाख से अधिक बेरोजगार अपने लिए रोजगार के अवसर तलाश रहे हों, कर्मचारी पुरानी पैंशन स्कीम और नियमित होने की जंग लड़ रहे हों, वहां की सरकार और विपक्ष की सोच जन उत्थान के इर्द-गिर्द घूमनी चाहिए न कि अपने वेतन-भत्तों की बार-बार बढ़ौतरी की ओर। 

हिमाचल प्रदेश में जब कभी भी विधायकों के वेतन-भत्तों की बढ़ौतरी का प्रस्ताव आया है तो सत्तापक्ष और विपक्ष ने सदैव एकजुटता दिखाई है लेकिन जन समस्याओं को लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष कभी भी राजनीति करने से बाज नहीं आए हैं। इस बार विधानसभा के मानसून सत्र में विधायकों के सालाना सैर-सपाटे के लिए यात्रा खर्च में हुई वृद्धि से हिमाचल प्रदेश के लोगों में काफी रोष देखने को मिल रहा है। सोशल मीडिया से लेकर प्रदेश के लगभग सभी हिस्सों में पढ़े-लिखे बेरोजगार युवा और सामाजिक संगठनों से जुड़े लोग विधायकों के लिए जगह-जगह चंदा इकट्ठा कर अपना विरोध दर्ज कर रहे हैं।

यही नहीं, शिमला में तो एक व्यक्ति ने चंदा इकट्ठा करने के लिए बूट पालिश कर अपना विरोध जताया है। विधायकों को सालाना देश-विदेश की यात्रा के लिए मिलने वाले 2.50 लाख रुपए में वृद्धि कर उसे 4 लाख रुपए किया गया है जबकि पूर्व विधायकों के लिए यह राशि 1.25 लाख से बढ़ाकर 2.50 लाख रुपए की गई है। जनता का दर्द शायद विरोध का रूप लेकर इसलिए भी फूट रहा है कि इसी मानसून सत्र में स्वयं मुख्यमंत्री की ओर से सरकारी सेवा में कार्यरत हजारों कर्मचारियों को पुरानी पैंशन सेवा का लाभ देने से साफ इन्कार किया गया है। वहीं आऊटसोर्स पर सरकारी क्षेत्र में नियुक्त 12 हजार से अधिक कर्मचारियों के नियमितीकरण का भी कोई रास्ता अभी तक सरकार बना नहीं सकी है। ऐसी परिस्थितियों में अगर विधायकों के सैर-सपाटे के लिए यात्रा भत्ते में बेतहाशा वृद्धि होती है तो जनता का सड़कों पर उतर कर विरोध करना जायज भी है। 

माकपा के इकलौते विधायक का विरोध
विधायकों के वेतन-भत्तों के प्रस्ताव पर जब सदन में चर्चा हो रही थी तो माकपा के इकलौते विधायक राकेश सिंघा ने ही इस पर अपना विरोध दर्ज करने का साहस दिखाया। उन्होंने प्रदेश सरकार के सिर चढ़े कर्ज के कारण राज्य की खराब आर्थिक स्थिति के मद्देनजर यात्रा भत्ते की बढ़ौतरी के प्रस्ताव को वापस लेने की बात सदन में रखी, लेकिन विपक्षी दल कांग्रेस के विधायकों ने खुलकर इसका समर्थन किया और लगे हाथों अपने लिए मुख्य सचिव से ज्यादा वेतन और सरकारी वाहन सहित अन्य कई सुविधाएं भी मांग लीं। तर्क ये भी दिए गए कि बड़े संघर्ष के बाद विधायक बनते हैं और जब विधायक नहीं रहते तो कोई नहीं पूछता। रोजाना 2000 रुपए चाय का खर्च होने की बात तक भी सदन में कही गई। यही नहीं, सोशल मीडिया और सड़कों पर उतर चुके जनविरोध के बावजूद भी मुख्यमंत्री से लेकर विपक्ष के वरिष्ठ नेता अभी भी इस यात्रा भत्ते की बढ़ौतरी को लेकर आज के समय की जरूरत बताकर स्पष्टीकरण देते फिर रहे हैं। 

जिस दिन विधानसभा में यह विधेयक लाया जाना था ठीक उसी दिन कांग्रेस के युवा विधायक विक्रमादित्य सिंह ने सोशल मीडिया पर इसे मौजूदा संदर्भ में गैर-जरूरी बताकर अपना निजी विरोध प्रकट किया था। 6 बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह के पुत्र विक्रमादित्य सिंह चाह कर भी सदन के अंदर अपना विरोध प्रकट नहीं कर पाए क्योंकि सदन के अंदर कांग्रेस विधायक दल ने इस पर अपना समर्थन देने की रणनीति बना ली थी। कांग्रेस के ही पूर्व विधायक नीरज भारती ने भी खुलकर यात्रा भत्ते में हुई वृद्धि का विरोध किया है। 

हिमाचल के विधायकों के वेतन-भत्ते अन्य राज्यों से अधिक
पिछले कुछ सालों में वर्ष 2013, 2015, 2016, 2017 और अब 2019 में वेतन, भत्तों तथा अन्य सुख-सुविधाओं में भारी वृद्धि के बाद हरेक विधायक को प्रतिमाह 2.10 लाख रुपए मिलते हैं जोकि देश के कई अन्य राज्यों की तुलना में ज्यादा हैं। इसके अलावा 1800 रुपए डी.ए., 18 रुपए प्रति किलोमीटर यात्रा भत्ता, देश व विदेश यात्रा के लिए 4 लाख रुपए सहित मैडीकल और अन्य कई प्रकार की आर्थिक सुविधाएं प्राप्त होती हैं। वहीं एक बार विधायक बनने के बाद सभी भत्तों सहित 84,240 रुपए मासिक पैंशन मिलती है। कुछ पूर्व विधायक ऐसे भी हैं जिन्हें 1.48 लाख रुपए तक मासिक पैंशन मिलती है। मात्र 4 प्रतिशत साधारण ब्याज पर 50 लाख रुपए तक का ऋण भी विधानसभा से उन्हें मिलता है। प्रदेश के विधायकों का सालाना आयकर जो कि करीब 11 करोड़ रुपए बनता है, का भुगतान भी विधानसभा द्वारा किया जाता है। मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष, मंत्रियों और विधानसभा उपाध्यक्ष के वेतन पर लगने वाले करोड़ों के आयकर का भुगतान भी राज्य सरकार के खजाने से होता है। 

विधायकों को जमीन देने का रास्ता भी तलाश रही सरकार
विधायकों को आशियाने बनाने के लिए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की सरकार राजस्व विभाग के मौजूदा लीज नियमों में भी संशोधन करने जा रही है। पिछली कांग्रेस सरकार में विधानसभा चुनावों से ठीक पहले सभी विधायक और पूर्व विधायकों की द हिम लेजिस्लेचर भवन निर्माण सहकारी सभा ने 36 बीघा जमीन की मांग की थी। हालांकि इस सभा को पहले भी दो बार 20 बीघा जमीन सरकार दे चुकी है। उस लीज भूमि पर कइयों के आलीशान भवन बने हैं और उनका व्यावसायिक प्रयोग भी हो रहा है। जबकि वर्तमान लीज नियम यह कहते हैं कि सरकारी भूमि की लीज केवल विशेष परिस्थितियों में ही दी जा सकती है और उस श्रेणी में विधायकों की सभा नहीं आती है। तब यह मामला खटाई में पड़ गया था। हालांकि उस दौरान विपक्ष के नेता के रूप में प्रो. प्रेम कुमार धूमल सहित कांग्रेस के पूर्व विधायक नीरज भारती और भाजपा के पूर्व विधायक रूप सिंह ठाकुर ने लीज पर मिलने वाली जमीन के फैसले पर अपनी आपत्ति जताई थी।-डा. राजीव पत्थरिया 
    


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