‘न्यायपालिका द्वारा जारी की गई’‘जनहितकारी टिप्पणियां और आदेश’
punjabkesari.in Friday, Jan 07, 2022 - 05:27 AM (IST)
आज जबकि कार्यपालिका और विधायिका निष्क्रिय हो रही हैं, न्यायपालिका जनहित के महत्वपूर्ण मुद्दों पर सरकारों को झिंझोडऩे के साथ-साथ शिक्षाप्रद टिप्पणियां कर रही है। इसी संदर्भ में सुप्रीमकोर्ट व अन्य न्यायालयों द्वारा हाल ही में की गई 7 जनहितकारी टिप्पणियां निम्र में दर्ज हैं :
* 3 जनवरी को सुप्रीमकोर्ट ने कहा, ‘‘यदि कोई कर्मचारी साक्ष्य के अभाव में अदालत द्वारा बरी कर भी दिया गया हो, तब भी उसके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई के तथ्यों और कदाचार की रिपोर्ट के आधार पर उसे नौकरी से निकाला जा सकता है।’’
* 3 जनवरी को ही मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने भोपाल की एक तीन वर्षीय मासूम बच्ची को आवारा कुत्तों द्वारा बुरी तरह काटने की घटना का स्वत: संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार, गृह एवं शहरी प्रशासन विभाग तथा भोपाल नगर निगम को नोटिस जारी करके इस बारे जवाब तलब किया है।
* 4 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के माननीय न्यायाधीशों न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर तथा सी.टी. रवि कुमार ने विजय पाल सिंह नामक याचिकाकत्र्ता को उत्तराखंड हाई कोर्ट और राज्य सरकार के अधिकारियों के विरुद्ध दायर याचिका रद्द करते हुए 25 लाख रुपए का जुर्माना लगाया। याचिकाकत्र्ता का आरोप था कि एक शाही परिवार की सम्पत्ति की बिक्री और इंतकाल के मामले में अधिकारियों ने घोटाला किया है।
अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा, ‘‘अब बहुत हो चुका। किसी को थप्पड़ मार कर ‘सॉरी’ बोलने की प्रथा समाप्त करनी होगी। आवेदक ने तिरस्कारपूर्ण आरोप लगाने का दुस्साहस किया है। व्यक्ति को निराधार आरोप लगाने से बचना चाहिए।’’ उन्होंने हरिद्वार के जिला कलैक्टर को चार सप्ताह के अंदर विजय पाल सिंह से जुर्माने की राशि की वसूली का आदेश भी दिया।
* 4 जनवरी को ही पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय ने तलाक के केस में महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा, ‘‘पति-पत्नी के बीच विवाद की स्थिति में, जब समझौते तथा उनके एक साथ रहने की संभावना न बची हो, तब उन्हें तलाक की अनुमति न देना विनाशकारी होगा। विवाह दो पक्षों के बीच एक गठबंधन है जिसमें इकट्ठे रहने की मजबूरी नहीं है।’’
* 5 जनवरी को देश में बढ़ रही कोरोना महामारी के संकट के बीच उत्तराखंड हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग को वर्चुअल रैलियों के आयोजन तथा ऑनलाइन मतदान करवाने पर विचार करने को कहा है। इसके साथ ही उत्तराखंड में कोरोना संक्रमण के दृष्टिगत चुनाव स्थगित करने की मांग संबंधी जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार मिश्र और जस्टिस आलोक कुमार वर्मा पर आधारित पीठ ने राज्य में होने वाले चुनावों में चुनाव आयोग को बड़ी चुनावी सभाओं पर रोक लगाने के लिए दिशा-निर्देश जारी करने और इस बारे एक सप्ताह में जवाब देने को कहा है।
* 5 जनवरी को ही पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस संत प्रकाश ने अपने दादा-दादी के पास रह रही एक 5 वर्षीय बच्ची की कस्टडी मांगने संबंधी उसकी मां की याचिका रद्द करते हुए कहा :
‘‘बच्ची अपनी मर्जी से दादा-दादी के पास रह रही है और उसका कहना है कि वह उनके पास ही रहना चाहती है। माता-पिता को ही बच्चे की कस्टडी मिलना जरूरी नहीं है। कस्टडी का मतलब बच्चे की फिजिकल कस्टडी ही नहीं बल्कि उसकी निगरानी, देखभाल और हित संबंधी सभी पहलुओं को देखना भी आवश्यक है।’’ अभी कुछ ही दिन पूर्व एक युवती के अपहरण और उसके साथ बलात्कार करने वाले आरोपितों को निचली अदालत द्वारा सुनाई गई उम्र कैद की सजा को चुनौती देने वाली याचिका को रद्द करते हुए पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि ‘‘किसी लड़की का अपहरण और बलात्कार एक घृणित अपराध है और ऐसा करने वाले लोग दया के पात्र नहीं हैं।’’
साक्ष्य के अभाव में अदालत से बरी होना, आवारा कुत्तों की समस्या, बिना सोचे-विचारे इल्जाम तराशी, दाम्पत्य जीवन, कोरोना काल में मतदान, बच्चे की कस्टडी तथा अपहरण और बलात्कार से संबंधित उक्त सभी टिप्पणियां न सिर्फ जनहितकारी व शिक्षाप्रद बल्कि एक मिसाल हैं, जिनके लिए मान्य न्यायाधीश बधाई के पात्र हैं।—विजय कुमार
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