‘सत्ता सिर्फ पक्ष से नहीं, विपक्ष से भी चलती है’

punjabkesari.in Monday, Jan 04, 2021 - 03:14 AM (IST)

किसी भी देश का शीर्ष नेतृत्व इस बात .से इंकार नहीं कर सकता है कि सत्ता सिर्फ पक्ष से नहीं, विपक्ष से भी चलती है। विगत कुछ वर्षों में जिस तेजी से विपक्ष राज्य और केंद्र में कमजोर हुआ है, कहीं न कहीं, जनता का हित भी उतना ही प्रभावित हुआ है और हम ऐसी राह पर बढ़ते चले जा रहे हैं जहां शायद विरोध के लिए कोई जगह नहीं है। कई बातों के मूल में जाकर बहस करने से सभी बचते हैं। 

छोटी-छोटी बातों पर आरोप-प्रत्यारोप अब आम बात है। पर क्या यह वास्तविक रूप से लम्बे समय में राष्ट्र को मजबूत बनाएगा? इस पर प्रमाणित उत्तर किसी के पास नहीं है, बल्कि असमंजस की स्थिति जरूर है। स्वतंत्रता की सीमा तब घट जाती है जब आप विरोध करते हैं जब आप सहयोग करते हैं तो कई बातों में आप क्षम्य हो सकते हैं। 135 वर्षों के अपने लम्बे इतिहास में कांग्रेस आज जन मानस के बीच कमजोर दिख रही है। 

जिस पार्टी के अनेकों निर्णयों से देश में कई क्रांतियों का आरंभ हुआ, आज वही पार्टी इतनी कमजोर है कि अपने वजूद को बचाने का संघर्ष कर रही है। इसमें जितनी खुद की कमियां जिम्मेदार हैं उससे कहीं अधिक सत्ताधारी पार्टी का भी योगदान है, जो अपनी कार्यशैली और निर्धारित नीति से जन मानस को यह समझाने में अब तक सफल रही है कि अब देश के पास मात्र अब एक विकल्प है। राष्ट्र विरोध, भ्रष्टाचार, परिवारवाद, जैसे शब्दों से आज वे लोग भी परिचित हो चुके हैं, जिनके लिए कभी ये शब्द अबूझ पहेली बने हुए थे। 

यही हाल राज्य सरकारों का भी है जहां सुशासन से अधिक अपने प्रतिद्वंद्वी पाॢटयों की गतिविधियों को रणनीति बनाकर नियंत्रित किया जा रहा है। आज अनेकों लोगों से बात करेंगे तो उनकी बात विचार व्यवहार में मीडिया की अभूतपूर्व भूमिका देखने को मिलेगी। कई मीडिया आज सरकारों के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करने लगे हैं जबकि कभी इनका मुख्य काम जनता के हितों के लिए कार्य करना होता था। यानि कि दो अलग-अलग विचारधारा, कार्य प्रणाली आज एक हो चुकी है जिसका परिणाम लोगों पर पडऩा शुरू हो गया है। लोग आज सोचने, समझने और तर्क करने की क्षमता का भी प्रयोग नहीं करते हैं। जबकि जो आप देखते हैं, सुनते हैं, पढ़ते हैं उसकी सत्यता को जांचने का मुख्य आधार आपकी जानकारी और तर्क करने की शक्ति पर ही निहित है। अमूमन लोग इस बात को भूल जाते हैं कि ‘कोई भी नीति/सरकार शत-प्रतिशत सही नहीं हो सकती और न ही शत-प्रतिशत गलत’। 

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने प्रभावशाली व्यक्तित्व, कार्य प्रणाली और जनमानस तक तेजी से पहुंचने की तकनीक से जहां आम जनता को यह महसूस कराया है कि सरकार उनके हित के लिए कार्य कर रही है, वहीं राहुल गांधी अपने शब्दों, कार्य प्रणाली से जनता से दूर होते चले जा रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस के साथ-साथ देश का भी बड़ा नुक्सान इस बात का है कि मजबूत विपक्ष केंद्र में नहीं है। 
कबीर जी ने कहा था -
‘‘निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय’ 

अर्थात जो हमारी निंदा करता है, उसे अपने अधिकाधिक पास ही रखना चाहिए। वह तो बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बता कर हमारे स्वभाव को साफ करता है। परन्तु यह वाक्य आज किसी भी नेतृत्व पर लागू नहीं होता। वर्ष 1999 से 2019 तक कुल पांच लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की तरफ से पार्टी नेता सोनिया गांधी रही हैं जबकि इसी अवधि में भारतीय जनता पार्टी में दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण अडवानी और नरेन्द्र मोदी पार्टी नेता रहे हैं। यह अंतर अपने आप में इस बात की पुष्टि करता है कि समय पर बदलाव न करने पर न केवल जनता का विश्वास आप में कम होता है बल्कि विपक्ष मजबूत होता है।

हमेशा सत्ता पक्ष के सभी निर्णय शत-प्रतिशत सही हों यह जरूरी नहीं है पर विपक्ष का कमजोर होना, लिए गए निर्णयों में अपनी बात न रखना, स्वयं के कमजोर होने के साथ-साथ जनता को कमजोर करता है। सत्ताधारी पार्टी को 2019 लोकसभा चुनाव में 37.36 प्रतिशत (22.91 करोड़) वोट प्राप्त हुए थे। जबकि अन्य पार्टियों को 22.22 प्रतिशत (13.64 करोड़) कांग्रेस को 19.49 प्रतिशत (11.95 करोड़), वोट मिले थे। यानि कि सत्ताधारी पार्टी की तुलना में विपक्ष में कुल 62.64 प्रतिशत (38.44 करोड़) वोट मिले थे। ऐसे में जनता की आवश्यकता और मांग का मूल्यांकन कोई आसानी से नहीं कर सकता। 

जनतंत्र की विशेषता यही है कि विजेता पार्टी सत्ता में शासन करती है, पर इसका मतलब यह नहीं हो सकता कि सत्ताधारी पार्टी के सभी निर्णय शत-प्रतिशत सही हों और बड़े समूह के लोगों के लिए लाभकारी भी हो। ऐसे में विपक्ष की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है जो लिए गए निर्णयों को आम जनता के हितों से जोड़ कर देखता है और उचित संगठित विरोध करता है।-डा. अजय कुमार मिश्रा
 


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