घटिया राजनीति से गणतंत्र दिवस जैसे पवित्र दिनों का माहौल खराब न हो

punjabkesari.in Tuesday, Jan 25, 2022 - 06:11 AM (IST)

घटिया राजनीति को गणतंत्र दिवस अथवा स्वतंत्रता दिवस मनाने के पवित्र माहौल को खराब नहीं करना चाहिए। दुर्भाग्य से सत्ताधारी तथा विपक्ष के बीच ऐसे विवाद पैदा होते हैं जिनसे बचा जा सकता है।

उदाहरण के लिए जहां गणतंत्र दिवस परेड के लिए झांकियां चुनने के लिए एक स्थापित प्रणाली है वहीं लगभग प्रत्येक वर्ष यह प्रक्रिया क्षेत्रीय राजनीति के लिए एक ज्वलंत मुद्दा बन जाती है। इस वर्ष भी विपक्ष शासित राज्यों में गुस्सा है क्योंकि केंद्र ने पश्चिम बंगाल, केरल तथा तमिलनाडु के अतिरिक्त अन्य कुछ राज्यों की झांकियों को नकार दिया है। ममता बनर्जी (पश्चिम बंगाल) तथा एम.के. स्टालिन (तमिलनाडु) जैसे संबंधित मुख्यमंत्रियों ने प्रधानमंत्री  को इस निर्णय पर पुनर्विचार करने के लिए लिखा परंतु कोई फायदा नहीं हुआ। 

समय की कमी के कारण केवल 12 राज्य सूची में स्थान बना सके। चुनी हुई झांकियों में चुनावी राज्य उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब तथा गोवा शामिल हैं। उनका तर्क यह था कि गणतंत्र दिवस परेड में आवश्यक तौर पर भारत की सांस्कृतिक विविधता तथा आधुनिक भारत बनाने में विभिन्न समुदायों की भूमिका को प्रदर्शित किया जाए। क्यों नहीं प्रत्येक राज्य को राजपथ पर परेड में अपनी चीजें प्रदर्शित करने का अवसर मिले क्योंकि भारत में अलग-अलग तरह की संस्कृतियां हैं। 

इस वर्ष गणतंत्र दिवस महत्वपूर्ण है क्योंकि इस बार का थीम भारत @ 75 है तथा परेड में स्थान प्राप्त करना राज्यों के लिए प्रतिष्ठा का मामला है। यह कोविड महामारी के बीच भी हो रहा है जिसने दुनिया भर को झकझोर कर रख दिया है। गणतंत्र दिवस उस दिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है जब भारत ने अपना एक लिखित संविधान प्राप्त किया और एक स्वतंत्र गणराज्य बन गया। 

बुधवार को 73वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर हमें अवश्य पहले गणतंत्र दिवस को याद करना चाहिए जो काफी साधारण था। तब भारत के अंतिम गवर्नर जनरल सी. राजगोपालाचारी ने गुरुवार की ठंडी सुबह 10.18 बजे नए गणतंत्र तथा भारत के पहले राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद के चयन बारे उद्घोषणा पढ़ी। संविधान सभा ने 26 नवंबर, 1949 को भारत के संविधान को अपनाया तथा 26 जनवरी, 1950 को यह प्रभाव में आया। ऐतिहासिक तौर पर यह 26 जनवरी, 1930 का दिन था, जब कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज के लिए राष्ट्रवादी आंदोलन का प्रण लिया। 

पहला गणतंत्र दिवस दिल्ली स्थित इरविन ए फीथिएटर (अब मेजर ध्यान चंद स्टेडियम) में आयोजित किया गया था। इसमें प्रस्तुतियां तथा झांकियां नहीं थीं। यह सेना के बैंड, झंडा फहराने तथा राष्ट्र गान के साथ एक साधारण समारोह था। परेड की पर परा अगले गणतंत्र दिवस से ही शुरू हुई। यह भारत के गणतंत्र दिवस समारोहों का मुख्य आकर्षण है जो तब से 3 दिनों तक जारी रहता है। 

परेड मुख्य तौर पर एक सैन्य मामला है। इसमें हमारी रक्षा सेवाओं की ताकत प्रदॢशत की जाती है, जिनमें नवीनतम टैंक, मिसाइलें, राडार प्रणालियां, वायु सेना के विमान रक्षा संचार प्रणालियां आदि जिन्हें ट्रकों पर लगाया गया होता है, परेड में शामिल होती हैं जिनके बाद सांस्कृतिक झांकियां प्रदॢशत की जाती हैं। यही वह समय होता है जब राज्य देश को अपनी वशिष्ट संस्कृति तथा उपलब्धियां दिखाते हैं। इनका चयन कई तरह के कारकों के मिश्रण पर निर्भर होता है जिनमें दर्शनीय आकर्षण, विचार, थीम, संगीत तथा छोटे-छोटे ब्यौरे शामिल होते हैं। 

1950 से 1954 तक परेड लाल किला, नैशनल स्टेडियम, किंग्सवे कैंप तथा रामलीला मैदान में आयोजित की गईं। 1955 से राजपथ इसका नियमित स्थल बन गया। परेड 1963 में नहीं हुई जब देश चीन के साथ युद्ध लड़ रहा था, जिसकी जगह एक जलूस निकाला गया जिसमें प्रधानमंत्री नेहरू, उनके मंत्रिमंडल के सदस्य, राज्यों से राजनीतिक प्रतिनिधि, दिल्ली विश्वविद्यालय से विद्यार्थी तथा अध्यापक आदि शामिल थे। उसके अगले वर्ष परेड फिर बहाल कर दी गई।

यद्यपि वे केंद्र द्वारा झांकियों से इंकार करने से निराश थे, संबंधित विपक्षी मुख्यमंत्रियों ने अपने राज्यों को दिखाने के लिए मीडिया के माध्यम से एक नया तरीका पैदा कर लिया। वे महसूस करते हैं कि केंद्र चयन के मामले में राजनीति खेल रहा है। उदाहरण के लिए, ममता बनर्जी ने एक बिंदू उठाया कि उनकी झांकी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती के अवसर पर उनके योगदानों को समर्पित थी और उस पर ईश्वर चंद्र विद्यासागर जैसे अन्य नेताओं के चित्र थे। उन्होंने गणतंत्र दिवस परेड के दौरान वही झांकी कोलकाता स्थित रैड रोड पर प्रदर्शित करने का फैसला किया है। 

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने भी अपनी खारिज की गई झांकी को गणतंत्र दिवस परेड में दिखाने तथा राज्य के अन्य जिलों में भी इसे ले जाने का प्रस्ताव दिया है। संभवत: अन्य राज्य भी, जिनको इस वर्ष प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया, उनका अनुसरण करेंगे। जहां यह सच है कि क्षुद्र राजनीति के माध्यम से पवित्र समारोह को बाधित नहीं किया जाना चाहिए, सभी राज्यों को एक विकल्प दिया जा सकता था।

आखिरकार भारत राज्यों का एक संघ है। यदि किसी कारण से कोई तनाव पैदा होता है तो अधिकारी एक लाटरी सिस्टम अपना सकते हैं। खारिज किए गए राज्यों के लिए एक अन्य विकल्प राज्यों में आयोजित होने वाले गणतंत्र दिवस समारोहों में ममता तथा स्टालिन का अनुसरण करना है। प्रत्येक राज्य द्वारा दिल्ली में आयोजित होने वाली परेड में अपनी विशिष्ट संस्कृति का अपनी झांकियों तथा नृत्यों के माध्यम से प्रदर्शन राज्यों के संघ में एक नए देश की भावना पैदा कर सकता है। यही समय है कि केंद्र तथा राज्य मिल कर बिना किसी नाराजगी के एक अच्छी चयन प्रक्रिया तैयार करें।-कल्याणी शंकर
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News