सत्ता दिलाने की टिकट है राजनीति

punjabkesari.in Monday, May 24, 2021 - 05:56 AM (IST)

डॉ.मनमोहन सिंह ने सत्ता को खोने से एकदम पहले कहा कि इतिहास उनके लिए दयालु होगा। मुझे यकीन नहीं है कि ऐसा होगा मगर इस तरह के इतिहास का लिखा जाना जल्दबाजी होगी। हालांकि अच्छे डाक्टर यह नहीं जानते कि मात्र 7 वर्षों में चीजें इतनी बदल जाएंगी। हम उनके विचारों को स्नेह और उदासी के साथ प्रदूषित नहीं करेंगे बल्कि बुद्धि की पहचान के तौर पर उन्हें याद करेंगे जिसे हमने भुला दिया।

यह बात मुझे एकदम से चुभी जब मेरी दोस्त सीमा चिश्ती ने व्हाट्सएप पर मनमोहन सिंह के एक इंटरव्यू लिंक को भेजा जो उन्होंने 1999 में बी.बी.सी. को दिया था। बतौर वित्त मंत्री उनके सुनहरी दिन खत्म हो चुके थे। अब वह राज्यसभा में विपक्ष के नेता थे। किसी ने भी यह सोचा न था कि एक दिन मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बनेंगे। इसलिए यह एक अंतरकाल था। यह ऐसा समय भी था जब उन्होंने ईमानदारी, दृढ़ता से बात की और वही कहा जिसे हमें सुनने की जरूरत थी। इंटरव्यू को देखना डा. मनमोहन सिंह को फिर से तलाशने के बराबर था। 

उन्होंने जो कहा उसे सुनिए। ये बातें न केवल आपके दिलो-दिमाग को छू जाएंगी बल्कि ये गहरे सवालों के जवाब देंगी। यह शून्य को भर देंगी जिसने हमें घेर रखा है। पहली बात जो उन्होंने कही वह यह है कि हमारी राजनीति सिकुड़ कर रह गई। 

‘‘उनके अनुसार राजनीति एक उद्देश्यपूर्ण सामाजिक बदलाव का वाहन बन कर रह गई। यह सत्ता दिलाने की टिकट है। यह सत्ता पाने की शक्ति है। समाज के लिए कुछ अच्छा करने का यह यंत्र नहीं है।’’ उन्होंने पूरी तरह से हमारे नेताओं पर दोष मढ़ दिया। मनमोहन सिंह ने आगे कहा, ‘‘कुछ राजनेता संकीर्ण सा प्रदायिक कारणों के लिए बांटने वाली राजनीति करते हैं। एक क्षण के लिए यह अच्छी राजनीति हो सकती है मगर हमारे देश के लिए एक तरह की यह तबाही हो सकती है।’’ 

इसलिए हमें क्या करने की जरूरत है?
‘‘मेरा मानना है कि हमें एक नई किस्म की राजनीति की जरूरत है। हमें वाक्य की स्पष्टता वाली राजनीति की जरूरत है। एक ऐसी राजनीति लोगों को यह बताती है कि चीजें उनकी तरह सीधी हैं। हम अपने लोगों को मूर्ख नहीं बना सकते। 50 वर्षों के राजनीतिक सफर के लिए मेरा मानना है कि नेता हमारे लोगों को एक सवारी के तौर पर देखते हैं और मैं महसूस करता हूं कि यहां पर एक बड़ा खतरा है। यदि नेताओं द्वारा किए जाने वाले वायदे और उनकी कथनी में बड़ा अंतर हो जाए।’’ 

इस नई राजनीति की गहराई से डा. मनमोहन सिंह ने एक नए नेतृत्व की ओर देखा, ‘‘नेतृत्व मामले की जड़ है। नेताओं को नेता होना है। उन्हें गति निर्धारक होना चाहिए। ये लोग नहीं हैं जो एक लोकप्रिय दिमाग में क्षण भर के लिए उनका अनुसरण करते हैं। भारतीय नेतृत्व बिना किसी सशक्त धारणा के अच्छा दे नहीं सकता है।’’ उन्होंने आगे दो टूक लहजे में कहा कि, ‘‘हमें नए विचारों की जरूरत है। हमें उन लोगों के दिमाग को बदलने की जरूरत है जो हमारे राष्ट्रीय जीवन के लिए महत्वपूर्ण सत्तारूढ़ निर्णय लेते हैं। फिर चाहे यह राजनीति, अर्थशास्त्र या फिर सामाजिक इंजीनियरिंग में हो। सभी स्तरों पर हमें एक बड़े बदलाव की जरूरत है। मगर इन सबसे ऊपर उनके लिए जो हमारे नेता हैं।’’ 

इसलिए राजनीति के लिए इसका मतलब क्या है? हमारे समय की बदलती हुई जरूरतों के लिए हमारे देश के नेता अपनी सोच को समायोजित नहीं करते। हमारे राजनेता वह महसूस करते हैं जिसे उन्होंने अपने बचपन में सीखा था। उनके लिए विश्व में सभी चीजों पर उच्चारण करने के लिए पर्याप्त भंडार होता है। मेरा मानना है कि यहां पर ज्ञान के लिए अवमानना है। जब तक हमारे राजनेता ज्ञान का मूल्य नहीं समझेंगे तब तक वे सामाजिक बदलाव का उद्देश्यपूर्ण साधन नहीं बन सकते।’’ यदि इनमें से कुछ भी नहीं घटता तो क्या होगा? वास्तव में यदि चीजें और बदतर हो जाएं, इस पर डा. सिंह ने अपने शब्दों को नहीं बताया। 

हमें यह नहीं मानना चाहिए कि यहां पर एक आलौकिक नियति है जो भारत के फलने-फूलने और खुशहाल होने को यकीनी बनाएगी। हम अपने मामलों को उलझा लें। सोवियत यूनियन जैसा बड़ा राष्ट्र इस धरती के तल से गायब और नष्ट हो गया। यदि भारतीय राजनीति सही ढंग से नहीं होती तब हमें भी इसी तरह का खतरा हो सकता है। मैं यह नहीं कह रहा कि हमारे लिए यह सब कुछ सीधा ऐसा ही है या फिर यह अपरिहार्य, मगर यदि हम अपनी अर्थव्यवस्था का प्रबंधन सही नहीं करेंगे, यदि हम अपने देश को जाति, धर्म और अन्य बांटने वाले मुद्दों के आधार पर बांटना निरंतर जारी रखेंगे तब मेरा मानना है कि देश में एक बड़ा खतरा हो सकता है। निश्चित तौर पर यह एक गंभीर खतरा है।-करण थापर


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