राजनेता जल्दी करें, कहीं गाड़ी छूट न जाए

punjabkesari.in Sunday, Jan 30, 2022 - 07:37 AM (IST)

2022 की पांच विधानसभा के चुनावों ने तो जन साधारण को अचंभित ही कर दिया है। राजनेता गाड़ी छूट जाने के भय से भगदड़ में हैं। सुबह एक पार्टी में तो शाम होते-होते दूसरे दल के नेता बने हुए मिल रहे हैं। 

कमाल का दृश्य है कि श्री हरगोबिंदपुर के विधायक छ: दिन पहले कांग्रेस छोड़ कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए और छ: दिन बीते भी नहीं कि विधायक महोदय पुन: कांग्रेस में चले गए। यह बात अलग है कि वह विधायक बेचारे न घर के रहे न बाहर के। इनकी टिकट ही किसी अन्य को मिल गई। फिरोजपुर में एक सज्जन ‘आप’ की टिकट लेकर महीना भर घूमते रहे अचानक मुख्यमंत्री चन्नी का हाथ उनके सिर पर क्या फिरा कि कांग्रेस की टिकट लेकर भागने लगे। 

मजीठा हलके में सच्चर नाम के नेता तो ऐसेे निकले कि 24 घंटों में पाला बदल कांग्रेस की झोली में पुन: विराजमान हो गए। मोगा का नजारा भी ताजा-ताजा है। एक बहन मु बई से आई और मोगा से कांग्रेस की टिकट लपक कर ले गई। बेचारे पांच साल जनता की सेवा की दुहाई देने वाले विधायक कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में विराजमान हो गए। 

सुजानपुर में कांग्रेस के प्रत्याशी पांच साल मारे-मारे पंजे का पटका डाल भागते रहे, गनीमत यह हुई कि उन्हीं को हराने वाले कांग्रेस की टिकट ले आए। बेचारे ‘आप’ में शामिल हो गए। सेवा ही तो करनी है, कांग्रेस नहीं तो ‘आप’ के होकर कर लेंगे। सेवा से कौन मना कर सकता है। क्या ऐसे दृश्य सिर्फ पंजाब में ही हैं? यू.पी. देख लें पांच साल भाजपा में मंत्री पद भोगा। सरकारी सुख-सुविधाएं भोगीं। चुनाव आया तो कई मौर्या, जाटव भाजपा को कोसते हुए सपा में मिल गए। 

अब सपा में उन्हें सब हरा ही हरा नजर आने लगा है। उत्तराखंड में मंत्री हरक सिंह रावत पर्दास्क्रीन पर ही रोने लगे। ‘मुझे तो भाजपा ने बर्बाद कर दिया। मैं तो पूरी तनदेही से जनता की सेवा कर रहा था। मैंने तो मात्र अपनी पुत्रवधू के लिए ही टिकट की मांग की थी। रसातल में जाए भाजपा। मुझसे सेवा का अधिकार ही खो लिया।’ 

इतनी जल्दी तो दल-बदल करने की हरियाणा के भूतपूर्व मुख्यमंत्री स्व. भजन लाल को भी नहीं थी। वह तो सारी की सारी ‘भजन मंडली’ ही लेकर दल-बदल कर गए थे। राजनेताओं में ‘सेवाभाव’ ढूंढ रही यह हिंदुस्तान की जनता मुझे क्षमा करे। कोई राजनेता सेवा नहीं करना चाहता उन्हें तो सिर्फ अपनी और अपने परिवार की सेवा करनी है इसलिए राजनेता राजनीति में हैं। 

राजनीति तो जनता को बेवकूफ बनाने का एक प्लेटफार्म है। ऐसे नेताओं के लिए? सत्ता मिलनी चाहिए, इस पार्टी में नहीं तो उस पार्टी में सही। क्या कहेगा मतदाता? क्या सोचेगा देश? कहां जाएगा, इस देश का लोकतंत्र? कहां जा रही है हमारे नेताओं की नैतिकता? ऐसे राजनेताओं को तो छोड़ो, पार्टियों ने भी ऐसे राजनेताओं के लिए अपने दरवाजे, खिड़कियां खोल दिए हैं। जो चाहे दाखिल हो लें। कोई रोक नहीं, कोई विचार नहीं। 

क्या राजनेता या राजनीतिक दल नहीं जानते कि दल-बदल को बढ़ावा देने से राजनीतिक अस्थिरता पनपती है? याद करें चौथे लोकसभा के चुनावों के बाद देश में अस्थिरता का वातावरण पैदा हो गया था? पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश तथा पश्चिम बंगाल के शासन में अस्थिरता आ गई थी।  इन प्रांतों में दल-बदल के कारण राष्ट्रपति शासन लागू हो गया था? इन प्रांतों में अनेक मंत्रिमंडल बने और गिरे थे? 

जुलाई, 1979 में प्रधानमंत्री मोरारजी भाई-देसाई को त्यागपत्र केंद्रीय मंत्रिमंडल से देना पड़ा था? 1980 हिमाचल के मुख्यमंत्री शांता कुमार को दल-बदल के कारण त्यागपत्र देना पड़ा था।  इसी दल-बदल के कारण ‘जनता पार्टी’ की सरकार से कांग्रेस (ई) की सरकार श्रीमती इंदिरा गांधी ने बना ली थी? नवंबर 1990 में इसी दल-बदल के कारण प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह को केंद्रीय मंत्रिमंडल से त्यागपत्र देना पड़ा और चंद्रशेखर की अल्पमत सरकार केंद्र में बनी? अप्रैल-मई, 1996 में स पन्न लोकसभा चुनावों में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने से राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो गई थी? दो मास में तीन-तीन प्रधानमंत्री बदले गए थे? 

दल-बदल के कारण विधायक अपने उत्तरदायित्व को भूलने लगे हैं। छोटे-छोटे राजनीतिक दल पैदा होने लगे हैं। जो अपनी पार्टी का सगा नहीं है वह दूसरी पार्टी का भी सगा नहीं होगा। दल-बदल करने वाले राजनेता के मुंह में खून लग जाता है। इसका खून पीकर वह दूसरे को चिमट जाएगा। 

‘आया राम और गया राम’ क्यों फलने-फूलने लगा है? इस पर राष्ट्रीय पार्टियों को चिंतन करना होगा। अपनी दौलत पर गर्व करना होगा। सत्ता और गद्दी सब कुछ नहीं अपना कार्यकत्र्ता अपना गौरव है। अपने गौरव को ठुकराओ और विदेशी माल की महिमा मंडित करते जाओ। यह घातक राजनीति है। आया राम, गया राम को पद और मंत्री बनाओ अपने कार्यकत्र्ताओं को सिर्फ ‘चुनावी मशीनरी’ समझो। ऐसी सोच अपने कार्यकत्र्ताओं का अपमान है। 

राष्ट्रीय पार्टियां यह क्यों नहीं सोचतीं कि अपने निष्ठावान कार्यकत्र्ताओं से पार्टियों के महल बने हैं। अपना कार्यकत्र्ता भूखा-प्यासा रह कर नेताओं की जय-जयकार करता रहता है। उसके गौरव का स्थान भला ‘आया राम, गया राम’ क्यों ले जाए?-मा.मोहन लाल(पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)
 


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