राजनीतिक पार्टियां तथा सरकार ‘भरोसे का सेतु’ बनाएं
punjabkesari.in Tuesday, Oct 20, 2020 - 03:29 AM (IST)
जम्मू -कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्रियों (डा. फारूक अब्दुल्ला तथा उमर अब्दुल्ला) तथा पी.डी.पी. की नेता महबूबा मुफ्ती ने पिछले सप्ताह श्रीनगर में एक साथ चित्र खिंचवाया, जो एक असामान्य बात दिखाई दी। यह महबूबा के पिता तथा पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ही थे जिन्होंने 2017 में सरकार बनाने के लिए भाजपा के साथ गठबंधन किया था, ने कहा था कि यह उत्तरी ध्रुव तथा दक्षिण ध्रुव का मिलन है। अब अब्दुल्ला तथा मुफ्ती जोकि दोनों ही प्रभावशाली परिवार हैं, राजनीतिक मजबूरी के चलते इकट्ठे हो गए हैं।
राजनीतिक प्रक्रिया की शुरूआत की महत्ता को देखते हुए 6 गैर-भाजपा पाॢटयों ने इकट्ठे होकर 5 अगस्त 2019 से पहले की घाटी की स्थिति बहाल करने तथा लोगों के अधिकारों की वापसी की मांग की है। डा. फारूक अब्दुल्ला ने दावा किया है कि ‘‘हमारी लड़ाई एक संवैधानिक लड़ाई है।’’ उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि ऐसे समय में राज्य के राजनीतिक मुद्दे को जितनी जल्दी हो सके, सुलझा लेना चाहिए तथा यह केवल बातचीत के माध्यम से ही संभव हो सकता है और इसमें उन सभी हिस्सेदारों को शामिल किया जाए जो जम्मू-कश्मीर की समस्या में शामिल हैं।
4 अगस्त 2019 को एक नया गठबंधन जिसका नाम गुपकार रखा गया, ने कश्मीर के विशेष दर्जे की सुरक्षा करने के लिए वचनबद्धता दोहराई। एक वर्ष बाद 22 अगस्त को ये नेता एक बार फिर से मिले और वही बात दोहराई। औपचारिक गठबंधन की घोषणा महबूबा मुफ्ती के 14 माह तक हिरासत में रहने के बाद की गई। नैकां के अलावा पी.डी.पी. प्रमुख महबूबा मुफ्ती, पीपुल्स कान्फ्रैंस प्रमुख सज्जाद लोन के साथ-साथ अवामी नैशनल कान्फ्रैंस तथा पीपुल्स मूवमैंट के नेता भी शामिल हुए। एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी जो इस गठबंधन से जुड़ी है, वह माकपा है। कांग्रेस जिसने इस अगस्त में एक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए थे, ने निमंत्रण मिलने के बावजूद भी इस गठबंधन से दूरी बनाए रखी।
नया गठबंधन अभी उबर रहा है। सभी पार्टियां एक महत्वपूर्ण मुद्दे को लेकर एक साथ जुटी हैं। उनके पास इकट्ठे होने के अलावा दूसरा कोई विकल्प ही नहीं है। इस गठबंधन के संगठनात्मक ढांचे पर चर्चा अगली बैठक में होगी। 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर को 2 केंद्रीय शासित प्रदेशों में बांटने के बाद से पिछले एक वर्ष के दौरान घाटी में राजनीतिक गतिविधियां चल रही थीं। आर्टीकल 35-ए को भी बदल दिया गया, जो जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासियों का उल्लेख करता है। नई दिल्ली में केंद्र सरकार ने दावा किया था कि ऐसे उपायों से क्षेत्र में शांति तथा विकास लाया जाएगा जोकि 3 दशकों से संघर्ष झेल रहा है।
जम्मू-कश्मीर में आर्टीकल-370 के निरस्त होने के बाद घाटी लॉकडाऊन तथा घेराबंदी में है। राजनीतिक नेताओं को हिरासत में रखा गया तथा लॉकडाऊन ने सीधे तौर पर जीवन के सभी पहलुओं पर प्रभाव डाला। स्कूल तथा कालेज बंद पड़े हैं। स्वास्थ्य क्षेत्र बुरी तरह से प्रभावित हुआ है और कोविड मामलों के कारण बोझ के तले है। वास्तव में लोगों के लिए यह दोहरी मार है। क्या यह गठबंधन राज्य के लोगों की स्वीकृति पा लेगा? लोग राजनीतिक पाॢटयों तथा केंद्र सरकार में विश्वास खो बैठे हैं। कइयों का मानना है कि विशेष दर्जे की वापसी से ही चुनावी आधार स्थापित हो सकेगा।
अब्दुल्लाओं तथा महबूबा के समक्ष पहली चुनौती लोगों का विश्वास दोबारा हासिल करने तथा पार्टयों को और सशक्त करने की होगी। अगले विधानसभा चुनाव तथा हदबंदी आपस में जुड़े हैं तथा यह बात कोई नहीं जानता कि यहां पर चुनाव कब आयोजित होंगे। इस दौरान जिला परिषदों का सीधा चुनाव आयोजित करने का एक नया प्रयोग केंद्र का पहला प्रयास होगा।
इस योजना के तहत प्रत्येक जिले को 14 प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में बांटना तथा परिषदों का सीधा चुनाव करना है। इसके तहत जिला विकास बोर्डों को बदला जाएगा। विधायक इस परिषद के सदस्य होंगे, मगर उनकी शक्तियां कम कर दी जाएंगी। इसमें दो राय नहीं कि अभी घरेलू तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कश्मीरी समस्या समझने की जरूरत है। राजनीतिक प्रक्रिया शुरू करने का यह कदम स्वागतयोग्य है। हालांकि राजनीतिक पाॢटयों तथा सरकार को एक-दूसरे पर भरोसे का सेतु बनाना होगा। विधानसभा चुनावों को आयोजित करना तथा राज्य के विशेष दर्जे की वापसी से इस प्रक्रिया में मदद मिल सकती है।
कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि जब तक हम 1996 के माडल की ओर वापसी नहीं कर लेते तब तक समस्या इस तरह ही चलती रहेगी। इससे आगे बढ़ कर सरकार को पाकिस्तान के साथ बातचीत की प्रक्रिया को फिर शुरू करना चाहिए। पाकिस्तान को भी इस मुद्दे को जल्द से जल्द हल करना चाहिए क्योंकि यह सीधे तौर पर घाटी में सामान्य जीवन के साथ जुड़ा है।-कल्याणी शंकर
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