पुलिस में ‘वाजे’ जैसी काली भेड़ें रहेंगी

punjabkesari.in Monday, Apr 05, 2021 - 04:38 AM (IST)

दिल्ली के पूर्व पुलिस आयुक्त तथा केंद्रीय गृह मंत्रालय में विशेष सचिव टी.आर. कक्कड़ (1964 बैच के आई.पी.एस. अधिकारी) मुखर होने के लिए जाने जाते हैं। पूर्व दिल्ली पुलिस प्रमुख पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की भारत यात्रा के दौरान पूर्वी दिल्ली के साम्प्रदायिक दंगों से निपटने के लिए तत्कालीन दिल्ली पुलिस आयुक्त ए.के. पटनायक की आलोचना की थी। 

कक्कड़ ने अप्रैल 1997 में दिल्ली पुलिस आयुक्त का चार्ज लिया था जब कनाट प्लेस शूट आऊट के चलते दिल्ली पुलिस का मनोबल बहुत कम था। इस शूट आऊट में दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा की एक टीम ने एक निर्दोष व्यापारी की हत्या कर डाली थी। 

कक्कड़ ने सिटी पुलिस बल का मनोबल तथा आत्मविश्वास बढ़ाने की मांग की थी। वास्तव में कक्कड़ शायद एकमात्र दिल्ली पुलिस आयुक्त हैं जो आई.पी.एस. में शामिल होने से पहले एक सैन्य अधिकारी की तरह लड़े। उन्होंने देश की प्रमुख सुरक्षा एजैंसी एन.एस.जी. का नेतृत्व किया। अपने कार्यकाल के बाद वह केंद्रीय गृहमंत्रालय में विशेष सचिव (आंतरिक सुरक्षा) के रूप में शामिल हुए। 

कक्कड़ ने एक साक्षात्कार के दौरान पुलिस-राजनेता की सांठगांठ पर प्रकाश डाला। जब उनसे पूछा गया कि पुलिस-राजनेता के बीच सांठ-गांठ एक खुला हुआ सीक्रेट है और पूर्व मुम्बई पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह द्वारा हाल ही में लगाए गए आरोप हैरान कर देने वाले हैं तो इस पर कक्कड़ ने कहा कि, ‘‘यह वास्तविकता है कि पुलिस और राजनेताओं के बीच एक तरह की सांठ-गांठ विकसित हो गई है। इसने करीब एक दशक पहले एक गंभीर मोड़ लेना शुरू कर दिया था। आमतौर पर राजनेताओं को पुलिस द्वारा राजनीति के अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाने या राजनीति में बने रहने के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है। 

राजनीति में बने रहने के लिए राजनेता पुलिस का इस्तेमाल करते हैं। यह स्पष्ट है कि राजनेताओं द्वारा उपयोग किए जाने वाले पुलिस अधिकारियों को बदले में कुछ एहसान तो जरूर मिलता है। दूसरे शब्दों में कहें तो मेरा मानना है कि पुलिस अधिकारियों ने राजनेताओं के लिए कुछ गैर-कानूनी या गंदे काम किए हैं। उनके राजनीतिक संरक्षण के कारण सभी प्रकार के भ्रष्टाचार में लिप्त हो गए। समय-समय पर राजनेताओं ने विभिन्न प्रकार की लूट और अवैध गतिविधियों के माध्यम से पैसे निकालने के लिए पुलिस का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया। कक्कड़ ने कहा कि यहां उन्हें कहना होगा कि सभी पुलिस अधिकारी ऐसे नहीं हैं। हालांकि प्रमुख पदों पर तैनात पुलिस अधिकारियों का बहुमत ऐसे अवैध और अनाधिकृत लूट के लिए पार्टी बन गया है। 

एक वित्तीय राजधानी होने के कारण मुम्बई में बॉलीवुड, होटल, डांस बार, तस्करों और कई लोगों से जबरन वसूली के अधिक अवसर हैं जो अन्य नापाक गतिविधियों में लिप्त हैं। लेकिन क्या यह अजीब नहीं है कि एक पूर्व पुलिस कमिश्रर ने राज्य के गृहमंत्री पर आरोप लगाए हैं। इस पर कक्कड़ ने कहा कि यह वास्तव में अनसुना है कि एक अनुशासित बल के एक अधिकारी ने महाराष्ट्र के गृहमंत्री पर आरोप लगाया। मैं इस मामले के गुणों में नहीं जाऊंगा क्योंकि एन.आई.ए. जांच में लगी हुई है और वह सभी पहलुओं पर ध्यान रखेगी। आप प्रार्थना करें कि बाम्बे हाईकोर्ट पूर्व पुलिस आयुक्त द्वारा लगाए गए आरोपों की सी.बी.आई. जांच का आदेश दे। 

परमबीर सिंह ने यह भी दावा किया है कि सहायक इंस्पैक्टर सचिन वाजे सीधे तौर पर महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख से निर्देश ले रहे थे। क्या यह बात मौजूदा प्रोटोकॉल और पुलिसिंग व्यवस्था को ध्वस्त नहीं करेगी? इसका जवाब देते हुए कक्कड़ ने कहा कि पुलिस बल में एक सख्त पदानुक्रम है। एक निरीक्षक स्तर का अधिकारी सहायक आयुक्त या सबसे उपायुक्त रैंक के अधिकारी को रिपोर्ट करता है। एक पुलिस कमिश्रर उसके लिए बहुत बड़ा होता है। वास्तव में एक इंस्पैक्टर को अपने पूरे सेवाकाल के दौरान पुलिस कमिश्रर से बातचीत करने का मौका ही नहीं मिलता। 

राज्य के गृह मंत्री के साथ बातचीत करने वाला एक निरीक्षक अनसुना कर रहा है। यह अजीब बात है कि राजनेताओं ने अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं को पूरा करने के लिए पुलिस तंत्र में कैसे प्रवेश किया है। वाजे को पुलिस कमिश्रर के ज्ञान के बिना सभी गंदे खेल खेलने के लिए गृहमंत्री के साथ सम्पर्क में होना चाहिए था। इसमें अपने राजनीतिक आकाओं के लिए जबरन वसूली भी शामिल थी। मैं इस मामले में पूरे विवरण में नहीं जाऊंगा। जब उनसे पूछा गया कि वाजे के पूर्व सर्विस रिकार्ड को देखते हुए क्या आपका मानना है कि वह पुलिस मुख्यालय में ऐसे संवेदनशील पद के लिए हकदार था? तो इस पर कक्कड़़ ने कहा कि यह आश्चर्यजनक और बेहद गंभीर है। एक व्यक्ति कैसे आया जिसके खिलाफ गंभीर मामले लम्बित थे। उसे 16 सालों तक निलम्बित रखा गया था। मुम्बई पुलिस के शीर्ष अधिकारी क्या कर रहे थे? 

मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि सचिन वाजे को बहाल करने वाले पुलिस अधिकारी ने कायरतापूर्ण कत्र्तव्य निभाया। उन्होंने पुलिस और राज्य के प्रति मोह भंग कर दिया। मैं मानता हूं कि वाजे को बहाल करने के लिए पुलिस राजनीतिक दबाव में थी, तो पुलिस आयुक्त (परमबीर सिंह) उसे कुछ गैर-संवेदनशील पोस्टिंग में स्थानांतरित कर सकते थे। हर सिस्टम में काली भेड़ें रहेंगी। पुनरावृति को रोकने के लिए समाधान सरल है। वह यह कि स्थानांतरण और पोस्टिंग पर सुप्रीमकोर्ट के दिशा-निर्देशों का पालन करें।-विजय ठाकुर


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